scorecardresearch
 

20 रुपये में आती है 100 में बिकने वाली खांसी की दवा! दवाइयों में कितना कमाते हैं मेडिकल वाले?

हमारी जेब से निकले हर सौ रुपये की दवा असल में मेडिकल स्टोर वाले को कितने की पड़ती है, यह बहुत कम लोग जानते हैं. दवा के पैकेट पर छपी MRP और दुकानदार की असली लागत के बीच इतना बड़ा अंतर होता है. यही वजह है कि दवा का कारोबार सबसे मुनाफ़ेदार बिज़नेस में गिना जाता है.

Advertisement
X
जेनरिक दवाइयों पर सबसे ज्यादा मुनाफा होता है. (Photo: AFP)
जेनरिक दवाइयों पर सबसे ज्यादा मुनाफा होता है. (Photo: AFP)

दवा की असली कीमत और उस पर मिलने वाला मुनाफा शायद ही आम लोगों को पता हो. हम और आप जिस दवा की स्ट्रिप 100 रुपये में खरीदते हैं, वही दवा मेडिकल स्टोर वाले को कितने में पड़ती है और उस पर कितना मार्जिन जुड़ता है, यह सुनकर आप चौंक सकते हैं. इसका जवाब जानने के लिए हमने दवाइयों के डिस्ट्रीब्यूटर अनीष से बात की. अनीष ने विस्तार से बताया कि दवाइयां बेचने पर कितना मार्जिन मिलता है. आइए, आपको भी बताते हैं.

जब हमने अनीष से पूछा कि मेडिकल वाले दवाइयों पर कितना प्रॉफिट कमा लेते हैं, तब उन्होंने बताया कि दवाइयों में प्रॉफिट मार्जिन, कंपनियों, दवा के प्रकार और कई जगहों पर निर्भर करता है. मुख्य तौर पर देखें तो दवाइयों का प्रॉफिट मार्जिन 4-5 तरह का होता है. 

फार्मा दवाइयों पर मार्जिन

सबसे पहले, फार्मा कैटेगरी की दवाइयों में 20 से 30% का मार्जिन होता है. इसमें न्यूनतम बीस प्रतिशत तो होता ही है. इस कैटेगरी में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव डॉक्टर को दवाई के लिए परामर्श देता है और उसके अनुसार जो दवाइयां बेची जाती हैं, उनमें बीस से पैंतीस प्रतिशत का मार्जिन मिल जाता है. 

जेनरिक दवाइयों पर ज्यादा फायदा

दूसरी तरह की दवाइयां होती हैं जेनरिक. जेनरिक दवाइयों में प्रॉफिट मार्जिन ज्यादा होता है. जेनरिक दवाइयां रिटेलर खुद अपने पास से बेचने की कोशिश करता है या ग्राहक को बेचता है. रिटेलर्स को इस तरह की दवाइयां बेचने में 50 से 75 प्रतिशत का प्रॉफिट होता है. 

Advertisement

डॉक्टर्स के जरिए भी होती है कमाई

इसके अलावा, तीसरी कैटेगरी है पर्सनल मोनोपोलाइज़्ड कंपनियां. इसमें डॉक्टरों को उन दवाइयों को रिकमेंड करने के लिए कहा जाता है, जिसमें डॉक्टर का कमीशन भी शामिल हो सकता है. इस तरह की दवाइयों में 30 से 35 फीसदी तक का प्रॉफिट मार्जिन होता है. इनमें मैटेरियल का प्रतिशत थोड़ा कम होता है.

medical

क्या क्वालिटी का मसला?

इसके अलावा, कुछ दवाइयां ऐसी होती हैं, जो अलग-अलग कंपनियां बनाती हैं. उनमें मैटेरियल का इस्तेमाल 90 फीसदी तक ही होता है और ऐसी दवाइयों में 90 फीसदी तक बचत होती है. 

दरअसल, दवाइयों में मैटेरियल उपयोग का क्राइटेरिया 90 से 110 फीसदी तक होता है. कई कंपनियां दवाइयों में 90 फीसदी तक के मैटेरियल का इस्तेमाल करती हैं, जो रिटेलर को काफी कम कीमत में मिलती है. जेनरिक में मैटेरियल 100 फीसदी तक होता है. सरकार के नियम हैं कि दवा 90% से कम या 110% से ज्यादा नहीं हो सकती. मतलब, 90% में भी अगर सामग्री पूरी तरह से है, तो दवा शुद्ध मानी जाएगी. 

 यही कारण है कि कई दवा कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाती हैं, क्योंकि वे दवा में मिनिमम मात्रा तक ही मैटेरियल मिलाती हैं. वहीं, बड़ी कंपनियां दवाइयों में अच्छी मात्रा में सामग्री मिलाती हैं. ऐसे में कुछ कंपनियों की दवाइयों में 90 फीसदी तक प्रॉफिट होता है. मान लीजिए अगर दवा 100 रुपये की है तो फार्मा की बड़ी कंपनी उसे 65 रुपये में बनाएगी. वहीं, जेनरिक दवा 25 रुपये में बनकर तैयार हो जाएगी. 

Advertisement

खांसी की दवाई पर कितना मार्जिन?

अनीष बताते हैं कि जो खांसी की जेनरिक दवाई होती है, वह 8 रुपये में बनकर आती है और दुकानदारों को 20 से 30 रुपये तक मिल जाती है. अब इसकी MRP 80-100 रुपये या ज्यादा होती है और ऐसे में इसमें अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement