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जब पंडित जवाहर लाल नेहरू जी थे देश के PM, तब कितनी थी प्रधानमंत्री की सैलरी?

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को कितनी सैलरी मिलती होगी. ये बहुत ही दिलचस्प सवाल है. आज जब सांसदों और मंत्रियों को इतनी सारी सुविधाएं मिल रही हैं. ऐसे में आजादी के तुरंत बाद जब देश के हालात एकदम अलग थे. तब पहले प्रधानमंत्री कितनी सैलरी

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भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू राष्ट्र ने अपने वेतन में करवाई थी कटौती  (Photo - ITG Archive)
भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू राष्ट्र ने अपने वेतन में करवाई थी कटौती (Photo - ITG Archive)

आज विधानसभा चुनाव जीतकर MLA बनने वालों को सालाना लाखों सैलरी मिलती है. इसके अलावा भी कई सारे भत्ते और आवास व यात्रा जैसी सुविधाएं दी जाती है. ऐसे में समझ सकते हैं कि देश के प्रधानमंत्री का वेतन क्या होगा और उन्हें कितनी सारी सुविधाएं मिलती होंगी. लेकिन, क्या आप जानते हैं कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सैलरी क्या थी. साथ ही उन्हें और क्या सुविधाएं मिलती थीं. 

आजादी के बाद जब प्रधानमंत्री व अन्य कैबिनेट मंत्रियों और सांसदों का वेतन निर्धारित करने की बात आई तो इस पर पंडित जवाहर लाल नेहरू की सोच एकदम अलग थी. कहा जाता है कि वो मंत्रियों और खुद के लिए व्यक्तिगत तौर पूर  ज्यादा खर्च, भत्ते और सुविधाओं को लेकर सहमत नहीं थे. यही वजह है कि उन्होंने अपने वेतन में कटौती करवा दी थी. 

दो बार अपने वेतन में कराई थी कटौती
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संसद द्वारा प्रधानमंत्री और केबिनेट मंत्री के निर्धारित वेतन 3000 रुपये में कटौती कर दी थी. उन्होंने अपने लिए और अन्य मंत्रियों के लिए सिर्फ 2000 रुपये मासिक वेतन का ही प्रावधान करवाया था. इस तरह उन्हें सिर्फ 2000 रुपये मंथली सैलरी मिलती थी.

जवाहर लाल नेहरू ने दो बार अपने और अन्य मंत्रियों के वेतन में कटौती करवाई थी. उनके सचिव रह चुके एमओ मथाई ने अपनी किताब 'REMINISCENCES OF THE NEHRU AGE'में लिखा है कि जब आजादी के बाद भारत के प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों के वेतन निर्धारण की बात उठी तो कुछ प्रमुख कैबिनेट मंत्रियों, विशेषकर एन. गोपालस्वामी अय्यंगार ने,सुझाव दिया कि यूनाइटेड किंगडम की तरह, प्रधानमंत्री का वेतन अन्य कैबिनेट मंत्रियों से दोगुना होना चाहिए.

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वो प्रधानमंत्री के लिए पेंशन के प्रावधान के पक्ष में भी नहीं थे
नेहरू ने इस सुझाव को मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने यह सुझाव भी ठुकरा दिया कि, ब्रिटेन की तरह, संसद में एक अधिनियम पारित किया जाना चाहिए, जिसमें सेवानिवृत्ति पर प्रधानमंत्री को पर्याप्त पेंशन और अन्य सुविधाएं और विशेषाधिकार प्रदान किए जाएं.

खुद पर सरकारी धन खर्च करने से बचना चाहते थे 
मथाई लिखते हैं कि मुझे डर है कि नेहरू इन मामलों में सबकुछ अपने नजरिए से देखते थे और खुद को उस स्थान पर रखकर इन सुविधाओं की जरूरत के बारे में सोचते थे. उन्हें विश्वास था कि वह अपनी कलम से एक आरामदायक जीवन जीने लायक उपार्जन कर सकते हैं. इसलिए सरकारी धन का वेतन व अन्य भत्तों में इस्तेमाल इसका दुरुपयोग होगा.

मथाई लिखते हैं कि मैंने नेहरू से कहा कि उनके बाद जो प्रधानमंत्री बनेंगे, उनकी हालात ऐसी नहीं होगी.  वह एक गरीब आदमी भी हो सकता है. ऐसे में भविष्य में प्रधानमंत्री बनने वालों के हित में उन्हें संसद को ऐसा उपाय करने देना चाहिए. हां, अगर वह चाहते हैं तो  उन्हें व्यक्तिगत रूप से इन सुविधाओं का लाभ उठाने की आवश्यकता नहीं है.  फिर भी वह इस मामले में बहुत व्यक्तिपरक रहे.

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इतनी थी उनकी सैलरी
उस वक्त सैलरी के लिए जो अधिनियम पारित हुआ. उसके अनुसार कैबिनेट मंत्री के लिए 3,000 रुपये प्रति माह वेतन और 500 रुपये प्रति माह मनोरंजन भत्ते का प्रावधान है. नेहरू के समय में उन्होंने और मंत्रियों ने स्वेच्छा से वेतन में कटौती की और पहले वेतन को घटाकर 2,250 रुपये प्रति माह और फिर 2,000 रुपये प्रति माह कर दिया था.

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