scorecardresearch
 

भारत में कैसे शुरू हुआ था आरक्षण? जानिए 141 साल पुरानी वो कहानी

भारत में आरक्षण व्यवस्था की शुरुआत आजादी के से कई साल पहले हुई थी. आज से 141 साल पहले और आजादी से 65 साल भारत में आरक्षण की नींव रखी गई थी... और 1882 में हंटर आयोग का आयोग गठन हुआ था.

Advertisement
X
भारत में आरक्षण का इतिहास
भारत में आरक्षण का इतिहास

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बिहार में आरक्षण पर बहस तेज है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले राज्य में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाने के फैसले को मंजूदी दे दी है. नीतीश कुमार की कैबिनेट ने जाति आरक्षण 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया है. अन्य पिछड़ा वर्ग के 10% आरक्षण के साथ बिहार में आरक्षण सीमा 75 फीसदी हो सकती है. इस बीच आरक्षण में बदलाव और इसका इतिहास समझना भी जरूरी हो जाता है. आइए जानते हैं भारत में आरक्षण कब और कैसे शुरू हुआ था.

आरक्षण क्या है?
समाज में हाशिये पर मौजूद वर्गों में समानता लाने और सामाजिक अन्याय से बचाने के लिए आरक्षण उनकी जगह सुरक्षित करता है. खासकर रोजगार और शिक्षा के क्षेत्र में हाशिये पर मौजूद वर्गों को वरीयता देने का काम आरक्षण के माध्यम से किया जाता है. इसकी शुरुआत ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने के लिए की गई थी.  आरक्षण का काम यह सुनिश्चित करना है कि समाज में सबसे पिछड़े वर्ग को भी इसका लाभ मिले और जाति की प्रवाह किए बिना सभी को एक समान मंच मिल सके.

आरक्षण का इतिहास
भारत में आरक्षण व्यवस्था की शुरुआत आजादी के से कई साल पहले हुई थी. आज से 141 साल पहले और आजादी से 65 साल भारत में आरक्षण की नींव रखी गई थी. 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक ज्योतिराव गोविंदराव फुले ने नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरी नौकरियों में सभी के लिए आरक्षण-प्रतिनिधित्व की मांग की थी.

Advertisement

ज्योतिबा खुद को शिवाजी से प्रेरित बताते थे. वो ये दावा करते कि शिवाजी भी शूद्र थे और वो अपनी प्रजा के लिए हमेशा खड़े रहते, जो कि एक राजा का धर्म है. खुद भी वो ताउम्र इसी धर्म का पालन करते रहे. ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मणवाद को धता बताते हुए बिना किसी ब्राम्हण-पुरोहित के विवाह-संस्कार शुरू कराया और बाद में इसे मुंबई हाईकोर्ट से मान्यता भी दिलाई थी. उन्हीं की वजह से पिछड़े और अछूत माने जाने वाले वर्ग की भलाई के लिए 1882 में हंटर आयोग का आयोग गठन हुआ था.

1891 में त्रावणकोर के सांमती रियासत में सार्वजनिक सेवा में योग्य मूल निवासियों की अनदेखी करके विदेशी लोगों को भर्ती करने के खिलाफ प्रदर्शन के साथ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग उठी थी.

1901 - महाराष्ट्र के रियासत कोल्हापुर में शाहू महाराज ने आरक्षण की शुरू की थी. इस दौरान महाराज ने समान आधार पर अवसर मिलने के लिए काम किए. साथ ही वंचित समुदाय के लिए नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई. बताया जाता है कि आरक्षण को लेकर यह पहला सरकारी आदेश था.

1908 - अंग्रेजों ने भी प्रशासन में कम हिस्सेदारी वाली जातियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए और प्रशासन में उनका थोड़ा-बहुत हिस्सा तय करने के लिए आरक्षण शुरू किया गया है.

Advertisement

1909 - भारत सरकार अधिनियम 1909 और 1919 में आरक्षण का प्रावधान किया गया और इसमें कई बदलाव किए गए थे. उसके बाद ब्रिटिश सरकार ने अलग अलग धर्म और जाति के लिए कम्यूनल अवार्ड की भी शुरुआत की थी.

1921 - में मद्रास प्रेसीडेंसी ने गैर-ब्राह्मणों के लिए 44 प्रतिशत, ब्राह्मणों के लिए 16 प्रतिशत, मुसलमानों के लिए 16 प्रतिशत, भारतीय-एंग्लो/ईसाइयों के लिए 16 प्रतिशत और अनुसूचित जातियों के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था के लिए जातिगत सरकारी आज्ञापत्र जारी किया था.

1932 - पूणे की यरवदा सेंट्रल जेल में 24 सितंबर 1932 को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी द्वारा हस्ताक्षरित एक समझौता यानी पूना पैक्ट हुआ था. इस समझौते ने प्रांतीय और केंद्रीय विधान परिषदों में गरीबों के लिए सीटों की गारंटी दी, जिन्हें आम जनता द्वारा चुना जाना था. ब्रिटिश सरकार की ओर से कुछ सीटों को वंचित वर्ग के लिए आरक्षित किया गया. इससे 'अछूत' माने जाने वाले वर्गों को दो वोट का अधिकार मिलना था लेकिन महात्मा गांधी के विरोध के बाद पूना पैक्ट समझौता हुआ.

1942 - बी आर अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की. उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की.

Advertisement

1946 - भारत में कैबिनेट मिशन अन्य कई सिफारिशों के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव दिया.

1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के लिए कई फैसले लिए गए.

1953 में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए कालेलकर आयोग को स्थापित किया गया. इसकी रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचियों में संशोधन किया गया.

1979 - सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए मंडल आयोग को स्थापित किया गया. 

1980 - आयोग ने एक रिपोर्ट पेश की और मौजूदा कोटा में बदलाव करते हुए 22 फीसदी से 49.5 फीसदी वृद्धि करने की सिफारिश की.

1990-91 - मंडल आयोग की सिफारिशों को विश्वनाथ प्रताप सिंह द्वारा सरकारी नौकरियों में लागू किया गया. इसका भारी विरोध हुआ और बाद में 1991 में नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण शुरू किया. इसके बाद से लगातार आरक्षण संबंधी नियमों में लगातार बदलाव होते रहते हैं.

बिहार में 75 फीसदी आरक्षण का समीकरण
मंजूरी मिलने के बाद बिहार में अब अन्य पिछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग को 30% के बजाय 43%, अनुसूचित जाति को 16% के बजाय 20% और अनुसूचित जनजाति को एक की जगह 2% आरक्षण का लाभ मिलेगा. इसके अलावा पिछड़े सामान्य गरीब वर्ग के 10 फीसदी आरक्षण को मिलाकर इसे 75 फीसदी करने का प्रस्ताव है.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement