मानव इतिहास भीषण रक्तपात से भरा पड़ा है, लेकिन कुछ ऐसे भी बदकिस्मत लोग हुए, जिन्हें सबसे क्रूर और बुरी मौत मिली. यहां बात हो रही इतिहास में सबसे भयावह मृत्युदंडों में से एक माने जानी जाने वाली उस घटना की, जिसे सुन रोंगटे खड़े हो जाएंगे.
इतिहास में एक ऐसी घटना दर्ज है, जो भयानक यातनापूर्ण मृत्युदंडों में एक माना जाता है. वह बदकिस्मत आदमी जिसे ऐसी बुरी मौत मिली, वो हंगरी का एक विद्रोही था. यह कहानी हंगरी के क्रांतिकारी ग्योर्गी डोजा की है.
हंगरी के इस क्रांतिकारी को मिली थी सबसे बुरी मौत
द इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, डोजा का जन्म 1470 में हुआ था. उन्होंने देश के कुलीन वर्ग के खिलाफ एक किसान विद्रोह का नेतृत्व किया था. इतिहासकारों का दावा है कि डोज़ा हंगरी साम्राज्य में खुद शासन नहीं करना चाहते थे. वे राजनीतिक मंच पर लोगों, उनकी इच्छाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना चाहते थे.
ग्योर्गी डोज़ा अपने देश में सामाजिक व्यवस्था के बारे में हर मूलभूत चीज को बदलना चाहते थे. किसान वर्ग को नए अधिकार और धन दिलाना चाहते थे, कुलीन वर्ग को पूरी तरह से खत्म करना चाहते थे.डोजा ने किसानों की सेना बनाई. शुरुआती चरण में उन्होंने विद्रोही सेना में 40,000 सदस्य बना लिए थे.
हंगरी के कुलीन वर्ग के खिलाफ शुरू किया था विद्रोह
उन्होंने शहर दर शहर अधिक से अधिक लोगों को कुलीनों के विरुद्ध शामिल होने के लिए आह्वान किया. इससे लोगों में जमींदार विरोधी भावना तेजी से बढ़ रही थी.ग्योर्गी डोजा और उनके साथियों ने शासक वर्ग के हजारों सदस्यों को मार डाला था. उनकी जागीरें जला दी थी. अराद, लिप्पा और विलागोस के किलों पर कब्जा कर लिया था.
डोज़ा और उसकी सेना राजधानी के बेहद करीब पहुंच गई थी. रईसों को उसे हराना था. रईसों के पास अपनी रक्षा के लिए मौजूद भारी घुड़सवार सेना की तुलना में किसान सेना कम प्रशिक्षित और सुसज्जित थी.
अंत में राजा के सेना से हार गए थे विद्रोही
मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक, 15 जुलाई 1514 को, डोज़ा की सेना आधुनिक तिमिसोआरा (अब रोमानिया) के पास एक क्रूर युद्ध में हार गई. कुलीनों ने तेजी से फैल रही क्रांति को अंततः पराजित तो कर दिया, लेकिन उन्हें इसके केंद्र में मौजूद व्यक्ति को पूरी तरह से नष्ट करना था. इसके लिए उन्होंने उसे जो सज़ा दी, उसे कुछ लोगों ने इतिहास की सबसे क्रूर मौत कहा है.
डोजा को लोहे के सिंहासन पर बैठाकर नीचे से आग लगा दी गई
येल विश्वविद्यालय के इतिहासकार पॉल फ्रीडमैन के अनुसार , डोजा को इतनी बर्बरतापूर्ण मौत दी गई थी कि यूरोप भर में इसे सबसे वीभत्स सार्वजनिक तमाशा बताया गया था. फ्रीडमैन ने लिखा है कि डोजा को एक लोहे के सिंहासन पर बैठने के लिए मजबूर किया गया था. उसे लोहे का एक नकली मुकुट भी पहनाया गया था और उसके राज्याभिषेक समारोह का नाटक किया गया. फिर लोहे के सिंहासन को तबतक गर्म किया गया, जब तक डोजा का शरीर भुन न जाए.
जिंदा रहते आधा भुन गया था ग्योर्गी डोजा का शरीर
बताया जाता है कि लोहे का मुकुट के अलावा लोहे का एक राजदंड भी हाथ में पकड़ा दिया गया था. वो भी काफी गर्म था. यह सब उसे नेता बनने की कोशिश करने के लिए अपमानित करने की कोशिश में किया गया था. इस बीच, उसके नौ साथी विद्रोहियों को काफी दिनों से भूखा रखा गया था. बाद में उन भूखे लोगों को भी सजा में भागीदार बनने के लिए कमरे में लाया गया.
डोजा के समर्थकों को कई दिनों तक रखा गया था भूखा
डोजा का शरीर जो लोहे के गर्म सिंहासन पर आंशिक रूप से भुना हुआ बन गया था. उसे सिंहासन से हटा दिया. तब तक डोजा जिंदा था.फिर, उसके भूखे अनुयायियों को डोजा के आंशिक रूप से भुने शरीर को नोंच-नोंच कर खाने के लिए कहा गया. शुरुआत में उन लोगों ने मना कर दिया, लेकिन बाद में उन्हें तुरंत ही डोजा के शरीर के भुने मांस को नोंच-नोंच कर खाना शुरू कर दिया और उसे बेरहमी से मार डाला.
डोजा के जिंदा रहते ही नोंच-नोंचकर खा गए थे भूखे कैदी
उन भूखे कैदियों ने डोजा के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए, जो लोग डरे हुए बचे रहे, उन्होंने भी बाद में वही किया जो उन्हें बताया गया था. ऐसा दावा किया जाता है कि जब भूखे कैदी उसे अपने दांतों से फाड़ रहे थे. तब काफी देर तक डोजा जिंदा था. हंगरी के शासकों ने डोजा के समर्थकों को ही उसके शरीर को नोंच-नोंच कर खाने के लिए लिए इसलिए मजबूर किया, ताकि एक उदाहरण पेश किया जा सके.
मौत की इस सजा को इतिहास में सबसे बर्बर, क्रूर और यातनापूर्ण माना जाता है. इतिहासकारों का दावा है कि इससे बुरी मौत आजतक किसी को नहीं दी गई. डोजा के समर्थकों को ही उसे खाने पर मजबूर किया गया और उसके अपने लोगों ने ही उसे नोंच-नोंच कर खा लिया.