
यमुना नदी, दिल्ली की जीवनरेखा के रूप में जानी जाती है, जो शहर की संस्कृति, इतिहास और पर्यावरण का महत्वपूर्ण हिस्सा है. हिमाचल प्रदेश के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली यह नदी दिल्ली को दो हिस्सों में बांटती है. यमुना के किनारे बसे ऐतिहासिक स्थल जैसे पुराना किला, लाल किला और ताजमहल (आगरा में) इसकी सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाते हैं. हालांकि, फैक्ट्रियों के कचरे, सीवेज और अतिक्रमण के कारण यमुना का पानी आज बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुका है. कुछ ऐसा ही दिल्ली की एक नदी के साथ हुआ था, जो अब गुमनाम है. ज्यादातर दिल्लीवासियों को वह नदी याद भी नहीं होगी.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं साहिबी नदी की. यह कभी दिल्ली में यमुना के साथ-साथ जीवन और संस्कृति का आधार थी, जो आज लगभग गायब हो चुकी है. साहिबी नदी का नाम आज दिल्लीवासियों के लिए अनजाना सा है, लेकिन इसका इतिहास और महत्व शहर के पर्यावरण और विरासत को समझने के लिए बेहद जरूरी है.
साहिबी नदी को "साबी" भी कहा जाता था, राजस्थान के अरावली पर्वतों में जयपुर के पास साई नदी के रूप में शुरू होती थी. यह हरियाणा के रेवाड़ी, गुड़गांव और दिल्ली के कुछ हिस्सों से होकर गुजरती थी और यमुना में मिल जाती थी. दिल्ली में इसकी सहायक नालियां, जैसे नजफगढ़ नाला, आज भी इसके अस्तित्व की गवाही देती हैं.
इतिहासकारों के अनुसार, साहिबी नदी मध्यकाल में दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में खेती, व्यापार और बस्तियों के लिए महत्वपूर्ण थी. मुगलकालीन दस्तावेजों में भी इसका जिक्र मिलता है, जब यह नदी दिल्ली के पश्चिमी हिस्सों में पानी की की पूर्ति के लिए महत्वपूर्ण थी. लेकिन एक तरफ शहर मॉर्डनाइजेशन की तरफ बढ़ रहा था वहीं दूसरी ओर अतिक्रमण साहिबी नदी को निगल रहा था. बढ़ती आबादी, औद्योगिक कचरे और अनियोजित निर्माण ने इस नदी को नालों और गंदे नाले में बदल दिया. नजफगढ़ नाला, जो कभी साहिबी की सहायक धारा थी, अब दिल्ली के सबसे प्रदूषित जल निकायों में से एक है.
हालांकि पर्यावरण कार्यकर्ता और स्थानीय संगठन साहिबी नदी को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. अभियान चलाए जा रहे हैं, सरकार से मांग की जा रही है कि नजफगढ़ नाले की सफाई और साहिबी के पुराने रास्तों को पुनर्जनन के लिए कदम उठाए जाएं. यह न केवल दिल्ली के पर्यावरण को बेहतर बनाएगा, बल्कि शहर की खोई हुई विरासत को भी वापस लाएगा.