इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी की बाहरी कक्षा में बना एक ऐसा किला है, जिसका कई तरह के रिसर्च और एक्सपेरिमेंट के लिए अंतरिक्ष यात्री इस्तेमाल करते हैं. पृथ्वी से दूर अंतरिक्ष में जहां न ऑक्सीजन है, न ग्रेविटी, इस किलेनुमा स्पेस स्टेशन को बनाने में काफी समय लग गया. आज भारत के शुभांशु शुक्ला Axiom 4 Space Mission के तहत इसी स्पेस स्टेशन पर जा रहे हैं. चलिए जानते हैं कितना बड़ा है ये स्पेस स्टेशन और ये कैसे बनाया गया. (Photo - Getty)
1984 में अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन ने मंजूरी दी थी और अमेरिकी कांग्रेस ने इसका बजट तय किया था. पृथ्वी से दूर अंतरिक्ष में इस स्पेस स्टेशन बनाना इतना आसान नहीं था. इसके लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारों की जरूरत थी जो इस कार्यक्रम में सहयोग कर सकें. इसलिए इसमें कनाडा, जापान और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के कई देशों ने हिस्सा लिया. (Photo - Getty)
2 नवम्बर 2000 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए पहला दल पृथ्वी से रवाना हुआ. इसे अभियान-1 कहा गया. आईएसएस के पहले अभियान के चालक दल के सदस्य विलियम एम. शेफर्ड, यूरी पी. गिदज़ेंको और सर्गेई के. क्रिकेलेव थे. पहली बार इन तीनों ने स्पेस स्टेशन पर कदम रखा था. इसके साथ ही पहले स्पेस वॉक के साथ अंतरिक्ष यात्रियों ने आईएसएस की मैनुअल असेंबलिंग शुरू की. इसके बाद दिसम्बर 2000 और अप्रैल 2003 के बीच, 38 अंतरिक्ष यात्रियों वहां जा चुके थे और 41 स्पेस वॉक के जरिए ISS की पूरी असेंबलिंग हो चुकी थी. (Photo - AFP)
आईएसएस के प्रत्येक टुकड़े को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया और जोड़ा गया. इसे जटिल रोबोटिक्स प्रणालियों और स्पेससूट पहने इंसानों ने लिक्विड लाइनों और विद्युत तारों से जोड़ा था. अंतरिक्ष में आईएसएस जोड़ने गए वैज्ञानिकों ने ही स्पेस वॉक की शुरुआत की. इसी की बदौलत आज स्पेस स्टेशन अपना मौजूदा रूप ले पाया है. पिछले 25 साल से 270 अंतरिक्ष यात्री यहां आ चुके हैं. (Photo - Getty)
आईएसएस पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली अब तक की सबसे बड़ी मानव निर्मित वस्तु है. इसका वजह 400,000 किलोग्राम से अधिक है. क्योंकि, यहां हमेशा अंतरिक्ष यात्री आते-जाते रहते हैं और उनके लिए रसद और खाने भी आते हैं. इस वजह से इसका वजन घटता-बढ़ता रहता है. आईएसएस का कुल क्षेत्रफल 2,247 वर्ग मीटर (24,187 स्क्वायरफीट ) है. (Photo - Getty)
ISS के पैनल व अन्य स्ट्रक्चर की कुल लंबाई 109 मीटर है. इसके ऐरीज 51 मीटर लंबे हैं. आईएसएस पृथ्वी से 370-460 किमी ऊंचाई पर स्थित है. यह एक जगह पर स्थिर नहीं है, बल्कि पृथ्वी की परिक्रमा करता रहता है. वायुमंडलीय घर्षण के कारण यह लगातार पृथ्वी की ओर गिरता रहता है. यही वजह है कि इसके ऑरबिट को बढ़ाने के लिए समय-समय पर रॉकेट दागने की आवश्यकता होती है. (Photo - Getty)
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन अपने शुरुआती दौर में एक अंतरिक्ष प्लेटफार्म से अब एक माइक्रो ग्रेविटी प्रयोगशाला में बदल चुका है. आईएसएस के शुरू होने से अबतक 25 वर्षों में यहां कई सारे प्रयोग हुए हैं. यहां स्थापित माइक्रोग्रैविटी प्रयोगशाला ने विभिन्न क्षेत्रों से प्रौद्योगिकी, रिसर्च और वैज्ञानिक जांच की मेजबानी की है. (Photo - Getty)