हिन्दू धर्म में भगवान शिव का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता माना जाता है. हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है. और भगवान शिव सृष्टि के तारणहार और स्वभाव से सहज भोले भंडारी हैं. हिंदू धर्म में शिवरात्रि पर भगवान शिव के गौरा से विवाह की चर्चा होती है.
इस दिन शिव बारात की चर्चा भी होती है. शरीर पर भस्म लपेटे शिव का यह रूप किसी देवता की सुंदर और सुसज्जित छवि से एकदम अलग है. शिव के इन रूपों से एक साधारण इंसान अपने मनोभावों के साथ भक्ति की सहूलियत रखता है. उनके डमरू से उपजे संगीत ने भी भारतीय पौराणिक मान्यताओं में अपना खास महत्व बनाया है.
भारतीय हिंदू धर्म के विश्वास में संगीत नृत्य, गायन, वादन सबके प्रथम आचार्य शिव ही माने जाते हैं. सामवेद में संगीत के साथ साथ नृत्य का उल्लेख मिलता है. भरत मुनि का नाट्य शास्त्र नृत्यकला का सबसे प्रथम व प्रामाणिक ग्रंथ माना जाता है. इसको पंचम वेद भी कहा जाता है. यही नहीं सृष्टि के आरम्भिक हिन्दू ग्रंथों और पुराणों में शिव-पार्वती के नृत्य का भी वर्णन मिलता है.
संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है. इसके आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया. ऐसा कहा जाता है कि दुनिया भर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं. यही नहीं हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है.
शिव महापुराण में बताया गया है कि शिव के पहले संगीत के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं थी. कहते हैं कि नृत्य, वाद्य यंत्रों को बजाना और गाना उस समय कोई नहीं जानता था, क्योंकि शिव ही इस ब्रह्मांड में सर्वप्रथम आए हैं.
इसके अलावा जब नृत्य की बात होती है तो सबसे पहले भगवान भोलेनाथ तांडव नृत्य करते हैं. ऐसी मान्यता है कि शिव अपने क्रोध में वो बिना डमरू के तांडव नृत्य करते हैं और सृष्टि में एक रोष और भय छा जाता है. वहीं जब वो डमरू की धुन में तांडव करते हैं तो प्रकृति में आनंद की बारिश होती है. ऐसे समय में शिव परम आनंद से पूर्ण होते हैं और सृष्टि को उल्लास देते हैं. वहीं जब वो शांत समाधि में होते हैं तो नाद करते हैं.