16 जुलाई, 1950. ब्राजील का मेरेकेना स्टेडियम 2 लाख ब्राजिलियन फैन्स से खचाखच भरा हुआ था. यहां ब्राजील और उरुग्वे के बीच फीफा वर्ल्ड कप का फाइनल खेला जाना था. सुबह-सुबह ही ब्राजील के अख़बारों में ब्राज़ील को चैंपियन बताती हेडलाइन छप चुकी थी. देश के लिए ये मैच जीतना नेशनल प्रायोरिटी था ताकि वो दुनिया की नज़रों में आ सके. मैच शुरू हुआ और शुरुआती कुछ मिनटों में ही ब्राजील ने गोल कर स्कोर अपने पक्ष में कर लिया. पूरे स्टेडियम में शोर गूंज उठा. ब्राजील-ब्राजील की आवाज़ें थीं. मगर तभी मैच पलटा और 66वें मिनट में उरुग्वे के जुआन अलबर्टो ने गोल दाग स्कोर बराबर कर दिया. लाखों लोग जो अब तक चिल्ला रहे थे, खामोश हो गए. मैच में अब 11 मिनट का समय बाकी था, और तभी बॉल वापस से अलबर्टो के पास आयी......गोल
उरुग्वे ने ब्राजील पर 2-1 की बढ़त ले ली. ब्राजील की जीत का सपना संजोए बैठे लाखों लोगों के लिए ये धक्का था, बहुत बड़ा धक्का. कुछ देर बाद फाइनल विस्ल बजी मगर स्टेडियम अब भी पूरी तरह से शांत. ब्राजील 2-1 से फाइनल हार चुका था. लोग रोते हुए बाहर जा रहे थे. ठीक यही हालत ब्राजील के बौरु में रेडियो पर मैच सुन रहे फुटबॉलर देना दीन्हो की थी. वो फफक फफक कर रो रहे थे. तभी वहीं पास खड़े आठ साल के बेट ने उनका हाथ पकड़ा और बोला- पापा, आप रोइए मत. ब्राजील के लिए वर्ल्ड कप मैं जीतूंगा. मैं आपसे वादा करता हूँ.
1958 का आगमन हो चुका था, अब इंतज़ार था जून महीने का. स्वीडन में फीफा वर्ल्ड कप का आगाज़ होने को था. लेकिन फरवरी में ही फुटबॉल जगत के लिए बुरी ख़बर आ गई.
इंग्लैंड की मैनचेस्टर यूनाइटेड फुटबॉल टीम को ले जा रही फ्लाइट क्रैश कर गई. कई दिग्गजों से भरी इस टीम को दुनिया जानती थी. यहां से दस हज़ार कि.मी दूर ब्राजील में वर्ल्ड कप फुटबॉल टीम की घोषणा हो रही थी. सबको उम्मीद थी कि इस बार वर्ल्ड कप ब्राजील ही जीतेगी.
वर्ल्ड कप से पहले सबकी फेवरेट मानी जा रही इंग्लैंड टीम के लिए ये बड़ा झटका था. इन्हीं दिनों यूरोप से दूर अफ्रीका के ब्राज़िल में पेले का परिवार रेडियो लेकर ब्राजील फुटबॉल टीम की घोषणा सुन रहा था.
17 साल के एडसन उर्फ पेले टीम में चुन लिए गए थे. कुछ साल पहले तक गली मोहल्ले में फुटबॉल खेलने वाले पेले नेशनल टीम का हिस्सा थे जिसमें सबसे बड़ा योगदान था.. सांतोस फुटबॉल क्लब का जिसके लिए खेलते हुए पेले ने 10 महीने पहले ही घरेलू टूर्नामेंट में 17 गोल दागे थे. इसी प्रदर्शन की बदौलत वो सलेक्टर्स की नज़रों में आए थे.
वर्ल्ड कप में कुछ ही महीने बाकी थे. प्रैक्टिस शुरू हुई. कोच विंसेंट फ्योला का निर्देश था कि कोई भी प्लेयर बॉल ज्यादा देर तक अपने पास नहीं रखेगा. सबने ये बात मान ली सिवाय पेले के. वो आक्रामक तरीके से खिलाड़ियों को छकाते और खुद गोल दागने का प्रयास करते. फ्योला ये सब देख रहे थे, उन्होंने पेले को पास बुलाया और डांटते हुए कहा- पेले.. ये तुम्हारा गली मोहल्ला नहीं है जहां तुम सबको बीट करते आगे बढ़ते रहो. तुम्हारे सामने दुनिया के बेस्ट खिलाड़ी होंगे, तुम अगर बॉल पास नहीं करोगे, तो सामने वाला खिलाड़ी तुम्हे ब्लॉक करेगा, फुटबॉल तुमसे छिनेगा और जो मैच हम जीतने वाले होंगे वो हार जाएंगे. आइंदा मैं ऐसी हरकत नहीं देखना चाहता.
फ्योला की डांट का असर पेले पर बस कुछ दिनों तक ही रहा. तभी एक हादसा हुआ. एक प्रक्टिस मैच के दौरान पेले का पांव उलझा और वो ज़मीन पर जा गिरे. चोट उनके घुटने में आई. डॉक्टरों ने बताया शायद उन्हें वर्ल्ड कप टीम से ड्रॉप करना पड़े. न पेले चाहते थे, न कोच विंसेंट फ्योला और न ब्राजीलियन फैन्स. बोर्ड से बात की गई और फाइनली पेले टीम के साथ स्वीडन टीम के साथ रवाना हो गए, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
फुटबॉल वर्ल्ड कप के दूसरे मुकाबले में ब्राज़ील के लिए दूसरा संकट आया. इंग्लैंड के रफ गेम के चलते स्टार स्ट्राइकर मज़ोला समेत तीन खिलाड़ी चोटिल हो गए. कोच पर दबाव था कि वो अटैक का ज़िम्मा अगले मैच में पेले पर डालें. डॉक्टरों के मना करने के बावजूद वेल्स के ख़िलाफ क्वार्टर फाइनल मैच में पेले मैदान पर थे. मैच चलते हुए 60 मिनट से ज्यादा का वक्त हो चला था. दोनों टीम का स्कोर ज़ीरो. था कि मैच टाई होगा लेकिन 66 मिनट में खेल बदला.
सामने से फुटबॉल काफी हाइट पर पेले की तरफ बढ़ी. वो डी में गोलकीपर की ओर पीठ कर के खड़े थे. पेले ने बॉल को सीने पर रोका और पंजों पर लेते हुए तेज़ी से 180 डिग्री मुड़ गए. इससे पहले की डिफेंडर्स कुछ समझ पाते उन्होंने बॉल नेट के हवाले कर दी और गोल..
इसके बाद वेल्स मैच में वापसी नहीं कर सकी. ब्राज़ील सेमीफाइनल में था, जहां उसका सामना होना था फ्रांस से, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें
1958 फीफा वर्ल्ड कप के आख़िरी तीन मुकाबलों में छह गोल मारने वाले पेले लोगों के हीरो बन चुके थे. आर्थिक तंगी से जूझ रहे ब्राज़ील को जश्न मनाने की वज़ह मिल गई थी. एयरपोर्ट के बाहर हज़ारों की संख्या में लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे. ब्राज़ील-ब्राजील के शोर से एयरपोर्ट गूंज रहा था. हर कोई पेले को बस एक बार छूना चाहता था. ब्राज़ील को अपना वो फरीशता मिल गया था जो उनके लिए वर्ल्ड कप लेकर लौटा था, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
सेंटोष फुटबॉल क्लब से खेल रहे पेले को मैनचेस्टर यूनाइटेड, रियाल मैड्रिड जैसे क्लब अपना हिस्सा बनाना चाह रहे थे. पेले के आगे ऑफरों की लाइन लगी थी मगर ब्राजील सरकार नहीं चाहती थी कि पेले ब्राज़ील के बाहर किसी दूसरे क्लब के लिए खेले, नतीजतन 1961 में सरकार ने पेले को ब्राजील का ऑफिशियल नेशनल ट्रेजर घोषित कर दिया. 1962 का वर्ल्ड कप भी आ चुका था. दूसरी टीमों के सामने पेले अब एक बड़ी चुनौती थे. सो पेले के खिलाफ़ अब स्ट्रेटजी बननी शुरू हुई. पहला मैच मेक्सिको के खिलाफ़ था और विपक्षी खेमे के दो खिलाड़ी पेले को ब्लॉक करने के लिए छोड़ दिए गए. पेले के लिए अब गेंद पास कर पाना भी मुश्किल हो रहा था. बड़ी मशक्कत के बाद पेले ने एक गोल दागा. ब्राज़ील मैच 2-0 से तो जीत गया था लेकिन मैक्सिको ने बाकी टीमों के सामने पेले को थामे रखने के लिए स्ट्रेटर्जी दे दी थी. अगला मैच चेकोस्लोवाकिया के ख़िलाफ था. उनका फोकस था पेले को रोकने पर. पेले की तरफ आ रही गेंद लगातार मिस हो रही थी. कारण था चेकोस्लोवाकिया का ब्लोकेज जिसने पेले को शॉर्ट खेलने से रोक रखा था. मैच टाई होने के कगार पर था लेकिन पेले लीड लेने की कोशिश में जुटे थे. अचानक तभी पेले का पांव फिसला. उनका घुटना फिर चोटिल हुआ और वो मैच ही नहीं पूरे टूर्नामेंट से बाहर हो गए. लेकिन पेले ब्राज़ील नहीं लौटे. चिली में ही टीम के साथ रहने का फैसला किया. वो जानते थे कि उनका वहां होना टीम के मोरल सपोर्ट के लिए कितना ज़रूरी था. ब्राज़ील ने 1962 का फीफा वर्ल्ड कप भी अपने नाम किया जिसमें पेले ने सिर्फ दो मुकाबले खेले. चार साल बाद हुए 1966 वर्ल्ड कप में भी यही घटना फिर हुई. पहले मैच में चोटिल हुए पेले वर्ल्ड कप से बाहर गए जिसके बाद पेले के ऐलान ने सबको सन्न कर दिया.. उन्होंने वर्ल्ड कप न खेलने की घोषणा कर दी, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
पेले के ऐलान से मुरझाई ब्राजील की हंसी पर ग्रहण हालांकि दो साल पहले ही लग चुका था जब ब्राजील में मिलिट्री रूल आ गया था. ये दौर कोल्ड वॉर का था. सोवियत यूनियन का प्रतिद्वंधी बन चुका अमेरिका कम्युनिजम के विस्तार को रोकना चाहता था, नतीजतन उसने ब्राजील की सेना का साथ देकर सरकार गिरा दी और सैन्य शासन लागू कर दिया.
सड़कों पर टैंक दौड़ रहे थे. सेना के जवान हाथों में बंदूक लिए खुलेआम घूम रहे थे. बेवजह लोगों को अरेस्ट किया जा रहा था. कहा जाता कि जिन लोगों को उनके घर से सेना उठाती वो कभी घर लौट कर वापस नहीं आते. ब्राजील एक अग्निपरीक्षा के दौर से गुजर रहा था. लोग आवाज़ ज़रूर उठा रहे थे लेकिन उसे कूचलने में भी देरी नहीं की जाती. ग़म के इस दौर में ब्राज़ील के लिए अब खुशी का ज़रिया था.. फुटबॉल और पेले.
लोग फुटबॉल खेल कर और देख कर अपना जीवन गुजारने लगे क्योंकि फुटबॉल पर डिक्टेटरशिप का कोई प्रभाव नहीं पड़ा था, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
मिलिट्री डिक्टेटरशिप के वक्त भी फुटबॉल से लोगों का मनोरंजन कर रहे पेले ब्राज़ील के सबसे बड़े नायक बन चुके थे जिन्हें लोग अपना देवता मानने लगे. 60 के दशक में ही सेंटोस फुटबॉल क्लब कोलंबिया ओलंपिक स्क्वाड के ख़िलाफ मैच खेल रहा था. पेले स्ट्राइकर की भूमिका में थे और तभी बॉल विपक्षी टीम से छीनने के दौरान रेफरी ने पेले को फाउल दे दिया. रेफरी ने उन्हें मैदान छोड़ने का इशारा किया, लेकिन पेले अड़ गए. वो अपनी ग़लती मानने को तैयार नहीं थे और रेफरी से कह रहे थे- मैं मैच खेलूंगा न कि बाहर बैठूंगा. रेफरी और पेले के बीच बहस गरमाई तो पूरा स्टेडियम पेले के पक्ष में आ गया. स्टेडियम में पेले-पेले की गूंज सुनाई दे रही थी. टीम भी पेले के समर्थन में थी मगर रेफरी अब भी पेले को बाहर भेजने की ज़िद करते रहे. सुलह की गुंजाइश होता न देख मैनेजमेंट को दख़ल देना पड़ा और रेफरी से निवेदन किया कि वो बाहर चले जाएं क्योंकि इस वक्त अगर पेले को बाहर भेजा गया तो दर्शक बेकाबू हो जाएंगे और फिर उन्हें संभालना मुश्किल होगा. स्थिति को भांपते हुए रेफरी ने बात मान ली और बाहर चले गए. इस घटना के बाद ख़बरें चलने लगी कि पेले अब फुटबॉल से भी बड़े हो गए हैं, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
1968, मिलिट्री ने ब्राज़ील में इंस्टीट्यूशन एक्ट नंबर 5 लागू कर दिया. लोगों को जबर्दस्ती उनके घर से उठाया जाता और फिर उनका कत्ल कर दिया जाता. लोग चाहते थे कि पेले सैन्य सरकार के ख़िलाफ अपनी आवाज़ मुखर करें लेकिन वो चुप रहे, वो नहीं चाहते थे कि उनकी बनी बनाई ख्याती पर किसी तरह का बट्टा लगे, इन्हीं सब के बीच 1970 का फीफा वर्ल्ड कप नज़दीक आता जा रहा था, मगर वर्ल्ड कप न खेलने का ऐलान कर चुके पेले खुद को इससे दूर रखना चाहते थे. लेकिन तभी मिलिट्री के कुछ लोग ब्राजील सेनाध्यक्ष का पैगाम लेकर पेले के पास आए. कहा गया कि पेले ब्राजील टीम से फिर जुड़ें और वर्ल्ड कप में हिस्सा लें, क्योंकि वर्ल्ड कप जीतना अब मिलिट्री शासन की साख का सवाल बन चुका था. सोच विचार कर पेले ने खेलने की हामी तो भर दी लेकिन अभी कई मुश्किलें आनी बाकी थीं जिसमें सबसे पहला नाम था.. ब्राजील टीम के मैनेजर सलदानिया का. वर्ल्ड कप के लिए टीम का चयन हो गया था लेकिन तभी सलदानिया ने पत्रकारों से कहा कि पेले की नज़र कमज़ोर हो गई है इसलिए हम उन्हें स्ट्राइकर के तौर पर नहीं खिला सकते. इस ख़बर ने ब्राजील में हड़कंप मचा दिया, लेकिन असली कहानी अभी बाकी थी. कुछ रोज़ बाद सलदानिया ने घोषणा कर दी कि पेले वर्ल्ड कप में नहीं खेलेंगे, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
सलदानिया के मैनेजर पोस्ट से हटते ही पेले मैदान पर लौट आए. मेक्सिको में 1970 फीफा वर्ल्ड कप की शुरुआत हो गई थी. पहला मैच चेकोस्लोवाकिया के ख़िलाफ़ था. बढ़त बनाने की कोशिश में लगे ब्राज़ील को मैच के बारहवें मिनट में झटका लगा. गोल...
चेकस्लोवाकिया ने 1-0 की बढ़त बना ली. लेकिन कुछ ही देर में गेंद पेले के पास आई. वो विपक्षी खेमे को छकाते हुए आगे बढ़े. मौका देखते ही अपने साथी रेविलिनो को गेंद पास की और गोल..
मैच अब 1-1 की बराबरी पर आ गया. सेकेंड हॉफ शुरू होते ही ब्राजील और आक्रामक दिखाई देने लगी. कारण थे पेले, जो लगातार चेकोस्लोवाकिया के खिलाड़ियों को डोमिनेट कर रहे थे. मैच के 60वें मिनट में फुटबॉल उड़ती हुई पेले की तरफ बढ़ी. उनके सामने खड़ा चेकोस्लोवाकिया का खिलाड़ी गेंद की दिशा बिगाड़ता उससे पहले पेले ने हवा में उछलते हुए सिर के इस्तेमाल से गेंद पर कंट्रोल किया. पेले को नेट की तरफ बढ़ता देख गोलकीपर गेंद लपकने के लिए आगे बढ़ा. पेले इसी के इंतज़ार में थे.. गोल..
ब्राज़ील ने 2-1 की बढ़त ले ली थी और मैच अब उनकी पकड़ में था. वो विपक्षी टीम पर हावी होते जा रहे थे. मैच ख़त्म हुआ तो ब्राजील ने मैच 4-1 से अपने नाम कर लिया था. इसके बाद ब्राज़ील ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और इटली के खिलाफ़ फाइनल 4-1 से जीतकर फीफा वर्ल्ड कप. ये पेले का आख़िरी वर्ल्ड था. 1971 में वो ब्राजील टीम से रिटायर हो गए लेकिन क्लब के लिए खेलना उन्होंने जारी रखा. 1974 में सेंटोष से साथ करार ख़त्म कर उन्होंने न्यू यॉर्क कास्मोस के साथ डील साइन की. फुटबॉल का पर्याय बन चुके पेले को फुटबॉल का भगवान बुलाया जाने लगा था और उनके चाहने वाले भारत में भी कम नहीं थे, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
1967-70 के बीच जब नाइजीरिया में Nigerian–Biafran में सिविल वॉर चल रहा था तो पेले एक फ्रेंडली मैच खेलने नायजिरिया गए थे. नतीजतन दोनों गुटों ने सीजफायर करने का ऐलान कर दिया. अक्सर इस युद्ध को रुकवाने का क्रेडिट पेले को दिया जाता है. 1995 में पेले ने राजनीति में भी कदम रखा और ब्राजील के खेल मंत्री बने. इस दौरान वो इंजरी से भी लगातार जूझते रहे. 2012 में उनके हिप का ऑपरेशन भी हुआ जो कि अनसक्सेसफुल रहा. नतीजतन पेले को व्हीलचेयर पर आना पड़ा. पेले का करियर लार्जर दैन लाइफ था, हालांकि उनका कई मौकों पर विरोध भी हुआ लेकिन जब कभी फुटबॉल के महानतम खिलाड़ियों की सूची लिखी जाएगी पेले का नाम उनमें से एक होगा.