केंद्र सरकार की योजना है कि दारा शिकोह के भारतीय संस्कृति और साहित्य के प्रति समर्पण कृतित्व और व्यक्तित्व को देश के सामने लाने का उपक्रम शुरू किया जाए. दिल्ली के सबसे अहम इलाके राष्ट्रपति भवन के ठीक बगल में और साउथ ब्लॉक के निकट डलहौजी रोड का नाम भी पिछले वर्षों दारा शिकोह मार्ग किया जा चुका है.
संस्कृति मंत्रालय की पहल पर शुरू किए गए अभियान में मुगल बादशाह दारा शिकोह की कब्र की पहचान में इतिहासकारों और पुरातत्व विशेषज्ञों की टीम जुटी है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व महानिदेशक डॉ सैयद जमाल हसन भी इस टीम में शामिल हैं.
जानें इतिहास-
दारा शिकोह शाहजहां का बहुत दुलारा बेटा था. शाहजहां ने अपना बड़ा बेटा और दुलारा होने के चलते दारा को ही अपना वली अहद यानी युवराज बना दिया था. दारा का मन सूफियों में ज़्यादा रमता था. दरबार में अपने पिता के साथ प्रशासनिक ज़िम्मेदारियां निभाने के बाद वो सूफियों और विद्वानों के साथ भारतीय दर्शन पर चर्चा करता था.
वो भारतीय ऋषियों के द्वारा रचित उपनिषदों के दर्शन से बहुत प्रभावित था. उसने काशी के विद्वानों को आगरा बुलवाकर अपने दरबारी फारसी विद्वानों को उनसे चर्चा करके और समझ कर उपनिषदों का संस्कृत से फारसी में अनुवाद भी करवाया. फिर वो अनुवाद यूरोप पहुंचा. वहां इनका लैटिन में अनुवाद हुआ तो दुनिया को प्राचीन भारतीय दर्शन के दर्शन हुए.
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देखते ही देखते पूरे जहां को हमारे प्राचीन ज्ञान का पता चला. लेकिन औरंगज़ेब दारा की शाहजहां से नजदीकी से जलता था, उसने बगावत भी की. यही नहीं शक्ति प्रदर्शन भी किया और आखिर में शाहजहां से जंग भी की. शुरुआती दौर में मुंह की खाने के बाद किस्मत और पराक्रम ने उसका साथ दिया और वो ताकतवर हो गया.
उसने साम दाम दण्ड भेद से पहले शाहजहां को और फिर दारा को नजरबंद कर लिया. शाहजहां के जीवन काल में ही औरंगजेब ने खुद को बादशाह घोषित कर अपने पिता शाहजहां को नज़रबंद कर सभी भाइयों को मरवा दिया था.
मुगलिया दौर के दरबारी इतिहासकारों और अंग्रेज़ इतिहासकारों के मुताबिक भी औरंगज़ेब ने दारा शिकोह को आगरा से दिल्ली बुलवा कर बड़ी दीन हीन दशा में हाथी पर बैठाकर चांदनी चौक के बाजारों में जुलूस निकाला. फिर उसे खिज्राबाद में एक अनजान जगह पर रखा गया. कुछ दिन बाद उसकी हत्या कर शव इस्लामिक आखिरत परम्परा की प्रक्रिया के बगैर ही चुपचाप बेहद गोपनीय ढंग से हुमायूं के मकबरे में दफना दिया गया.
कुछ इतिहासकारों ने दारा के कटे सिर का जुलूस भी चांदनी चौक में निकाले जाने की बात भी लिखी है. बहरहाल, केन्द्र सरकार चाहती है कि सनातन धर्म के दर्शन, सिद्धांतों और वेद, उपनिषदों के प्रति झुकाव वाले इस उदारमना शाहजादे के बारे में देश को खासकर कट्टरपंथियों को ज्यादा से ज़्यादा जानकारी दी जा सके.
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