सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के एक मामले में पूर्व सैन्य अधिकारी को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है. दिल्ली हाई कोर्ट ने जब एक पूर्व सैन्य अधिकारी को दिल्ली के एक व्यापारी की हत्या के 34 साल पुराने मामले में बरी किया था तब उसने यह टिप्पणी की थी कि ‘यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब किसी अपराध में सजा नहीं हो.’
दिल्ली हाई कोर्ट ने यह कहते हुए अधिकारी को बरी किया था, ‘तब तक किसी ऐसे व्यक्ति को फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता, जिस पर रिकार्ड में मौजूद सबूत अंततः उसका गुनाह साबित नहीं कर दे.’ इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने सत्याभासी, तार्किक और यकीनी करार देते हुए बरकरार रखा है. अदालत ने आरोपी के गुनाह को साबित करने में विफल रहने पर सीबीआई की भी खिंचाई की.
दरअसल यह मामला दिल्ली के एक प्रसिद्ध व्यापारी की हत्या से जुड़ा है. 2 अक्टूबर, 1982 को दिल्ली के सुंदर नगर में जब 40 वर्षीय व्यापारी किशन सिकंद ने विस्फोटक वाला एक पार्सल खोला था, तब विस्फोट में उनकी मौत हो गई थी. इस मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल एस. जे. चौधरी आरोपी थे.
लेफ्टिनेंट कर्नल एस. जे. चौधरी को 26 साल तक चली सुनवाई के बाद निचली अदालत ने दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा सुनाई थी. लेकिन हाई कोर्ट ने 2009 में चौधरी को बरी कर दिया और उन्हें हत्या एवं विस्फोटक सामग्री अधिनियम के तहत दूसरे आरोपों से मुक्त कर दिया. अब चौधरी 78 साल के हैं.
हाई कोर्ट के इस आदेश को शीर्ष अदालत ने बरकरार रखा जिसने कहा कि सीबीआई आरोपी का गुनाह साबित करने में विफल रही. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की पीठ ने सीबीआई और किशन सिंकद के परिजनों की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी कि हाई कोर्ट का फैसला सत्याभासी, तार्किक और यकीनी’ हैं और उसकी बस पुष्टि की जरूरत है. मृतक व्यापारी किशन सिकंद सिकंद मोटर्स शोरूम के मालिक एच. डी. सिकंद के बेटे थे. सीबीआई और मृतक के परिजनों ने चौधरी को बरी किए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.
हाई कोर्ट का फैसला जायज
जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘हमारी राय में हाई कोर्ट का फैसला तथ्यों और सबूतों का विश्लेषण कर सही निष्कर्ष पर पहुंचा है. हमारे मत में चौधरी की ओर से पेश वकील ने इस मामले में जो दलीलें दी, वे इस मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों में ज्यादा स्वीकार्य हैं.’’ बेंच ने कहा, ‘‘हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि हाई कोर्ट के पास जो कारण मौजूद थे, उस हिसाब से वह सही निष्कर्ष पर ही पहुंचे हैं. इसलिए हमें इन अपीलों में कोई दम नजर नहीं आता, लिहाजा उन्हें खारिज किया जाता है.’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला पूरी तरह सबूतों पर निर्भर है और सीबीआई आरोपी का गुनाह साबित नहीं कर पाई है.
निचली अदालत ने करार दिया था दोषी
बताते चलें कि अप्रैल, 2008 में निचली अदालत ने चौधरी को सिकंद की हत्या के लिए दोषी करार दिया था. मामले की जांच कर रही सीबीआई के अनुसार चौधरी ने सिकंद का सफाया करने के लिए पाकिस्तान में निर्मित हथगोले का इस्तेमाल किया था, जिसे भारतीय सेना ने 1971 की लड़ाई के दौरान जब्त किया था. चौधरी किशन सिकंद को उनकी पत्नी रानी चौधरी से अवैध संबंध को लेकर धमकी दे रहे थे.
2009 में हाई कोर्ट ने कर दिया था बरी
मई, 2009 में चौधरी को हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था. अदालत ने कहा था कि यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपराध में कोई सजा नहीं हो. अदालत ने कहा था, वैसे चौधरी के पास हत्या करने की वजह तो थी क्योंकि वह रानी चौधरी से शादी करने की किशन सिकंद की योजना के खिलाफ थे. लेकिन सीबीआई ऐसा कोई सबूत नहीं पेश कर पाई जिससे पूर्व सैन्य अधिकारी का गुनाह साबित हो.
बगैर सबूत के नहीं दे सकते सजा
हाई कोर्ट ने कहा था, ‘‘हम किसी व्यक्ति को ऐसे गुनाह के लिए तब तक फांसी पर नहीं चढ़ा सकते, जब तक हमारा न्यायिक विवेक इस बात को लेकर संतुष्ट न हो जाए कि दिए गए सबूत निर्णायक ढंग से व्यक्ति का गुनाह साबित करते हैं.’’