''मुसलमान, हिंदुओं से हर तरह से अलग हैं. चाहे वह धर्म हो, रीति-रिवाज हों, परंपराएं हों, सोच हो या फिर आकांक्षाएं. सभी मामलों में दोनों अलग तरह से सोचते हैं. दो-राष्ट्र सिद्धांत (भारत का बंटवारा) इसी बुनियादी विश्वास पर आधारित था कि मुसलमान और हिंदू दो अलग-अलग कौम हैं. पाकिस्तान हमें बहुत संघर्षों और बलिदानों के बाद मिला है. इसकी रक्षा करना सेना का कर्तव्य है. हमारे पूर्वजों ने पाकिस्तान बनाने के लिए बहुत बलिदान दिए. हम जानते हैं कि इसकी रक्षा कैसे करनी है.''
उपरोक्त बयान किसी मौलवी का नहीं है, बल्कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिम मुनीर का है. उनके बयान का लिंक पहलगाम हमले से भी जोड़ा गया था. सीने पर फौज की वर्दी ना होती तो शायद कोई यकीन भी नहीं करता कि ये अल्फाज किसी आर्मी ऑफिसर के हैं. एक ऐसे आर्मी ऑफिसर के जिस पर पूरे के पूरे पाकिस्तान के हिफाजत की जिम्मेदारी है. लेकिन वो ऑफिसर अपने मुल्क की जिम्मेदारी और तरक्की से ज्यादा, इस पर तवज्जो दे रहा है कि कैसे मुसलमान हिंदुओं से अलग हैं.
कहने वाले इसे इत्तेफाक कह सकते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर के इसी जहरीले भाषण के ठीक हफ्ते भर बाद पहलगाम में आतंकी हमला हो गया और हमले में पाकिस्तान से आए आतंकियों ने ही चुन-चुन कर हिंदुओं की जान ले ली. ये बात दीगर है कि पाकिस्तानी फौज और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई शुरू से ही आतंकवादियों को पालती-पोसती रही है, ऐसे में मुनीर के भाषण के फौरन बाद हुए इस हमले में सीधे-सीधे उनका हाथ समझ में आता है.
इस मामले पर एक्सपर्ट्स का भी कुछ यही कहना है. लेकिन क्या पाकिस्तानी कनवेंशन में दिया गया मुनीर का ये भाषण कुछ नया है या फिर उसकी सोच ऐसी ही है? जवाब है नहीं. जानने वाले बताते हैं कि आसिम मुनीर पहले से ही कट्टर जिहादी सोच के बीच पला-बढ़ा एक ऐसा शख्स है, जिसके जेहन में सिर्फ और सिर्फ नफरत भरी है. जो आम तौर पर लाइमलाइट से दूर रहता है, लेकिन पर्दे के पीछे से घात करता है. उसके ऐसे भाषण की वजह से ही लोग उसे मुल्ला जनरल कहते हैं.
एक मस्जिद के इमाम और स्कूल टीचर के बेटे से पाक फौज की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंचने वाले आसिम मुनीर के जिंदगी की कहानी भी कम उतार-चढ़ाव से भरी नहीं है. उसकी शुरुआती शिक्षा रावलपिंडी के मदरसे मरकजी मदरसा दार-उल-तजवीद में हुई. लेकिन फिर आगे चल कर उसने साल 1986 में मंगला के ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल से ग्रेजुएशन किया और तब फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट के 23वीं बटालियन में उसे एंट्री मिली. मुनीर की कट्टरपंथी सोच को इसी बात से समझा जा सकता है कि वो शुरू से ही पाकिस्तानी जनरल जिया-उल-हक से बहुत ज्यादा प्रभावित था और आज भी बहुत से एक्सपर्ट्स ये मानते हैं कि उसका पाकिस्तानी फौज के शीर्ष पर पहुंचना उसकी सोच का नतीजा है.
मुनीर के बारे में कहते हैं कि जब वो सऊदी अरब में पाकिस्तान की ओर से सैन्य अटैची के तौर पर तैनात था, उसने उसी वक्त पूरी की पूरी कुरान शरीफ याद कर ली थी. तब उसकी उम्र 38 साल की थी. अपनी इस काबिलियत की बदौलत उसे हाफिज-ए-कुरान का तमगा भी मिला. लेकिन कुरान, उर्दू, अरबी और अंग्रेजी का अच्छा जानकार होने के बावजूद उसने इस समझ का इस्तेमाल सही रास्ते में करने की जगह, नौजवानों को धर्मांधता की आग में झोंकने के लिए किया.
अक्सर वो अपनी तकरीरों में अंग्रेजी और उर्दू के बीच अरबी का भी बड़ी महारत से इस्तेमाल करता है. कई बार अरबी में लिखी कुरान की आयतों का जिक्र कर ऑफिशियल और फॉर्मल गैदरिंग के बीच भी लोगों पर धार्मिकता का प्रभाव डाला करता है. कुछ इसी अंदाज में उसने 15 अप्रैल को दिए गए अपने भाषण में पाकिस्तान की बुनियाद कलमा को बताते हुए भारत से लेकर बलूच विद्रोहियों तक को एक साथ कमतर दिखाने की कोशिश की थी. उसने कहा, जब 1.3 मिलियन की भारतीय फौज पूरी ताकत के बावजूद हमें कुचल नहीं सकी, तो बलूचिस्तान के चंद मुट्ठी भर आतंकवादी भला पाकिस्तान का क्या कर लेंगे? उनका भाषण इस्लाम, हिंदू, हिंदुस्तान और कश्मीर के इर्द-गिर्द घूमता रहा.
पाकिस्तान के टॉप आर्मी ऑफिसर्स आम तौर पर विदेशों में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, लेकिन मुनीर के साथ ऐसा नहीं है. यहां तक कि उसकी स्कूलिंग भी कहीं विदेश में नहीं बल्कि पाकिस्तान में हुई. लेकिन इसके बावजूद मुनीर आईएसआई के चीफ से होते हुए फौज की सबसे ऊंची कुर्सी तक पहुंचे. मुनीर को साल 2017 के शुरुआती दिनों में डायरेक्टर जनरल मिलिट्री इंटेलिजेंस यानी डीजीएमआई बनाया गया था. इसके बाद उसे अगले ही साल यानी 2018 में हिलाल-ए-इम्तियाज नाम के सम्मान से नवाजा गया.
लेकिन फिर इसके बाद मुनीर गुमनामी में चला गया. इस दौरान वो आईएसआई का चीफ बना और उसके कुर्सी संभालते ही फरवरी 2019 में पुलवामा में भयानक आतंकवादी हमला हुआ. हालांकि मुनीर इस कुर्सी पर महज 8 महीने के लिए ही रहे और पाकिस्तान के किसी भी आईएसआई चीफ का ये सबसे छोटा कार्यकाल रहा. इसके बाद मुनीर ने तत्काली प्रधानमंत्री इमरान खान के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और उनकी पत्नी बुशरा बीबी के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की तफ्तीश करने की कोशिश की.
इसके बाद इमरान के कहने पर तत्कालीन आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने मुनीर को एक्स-एक्स-एक्स कोर में ट्रांसफर कर दिया. मुनीर की किस्मत सही मायने में तब पल्टी जब उन्हें नवंबर 2022 में रिटायर होने से ठीक तीन दिन पहले पाकिस्तान आर्मी का चीफ बना दिया गया. तब तक इमरान खान भी सत्ता से हट चुके थे और ये शायद मुनीर की इमरान विरोधी छवि ही थी, जिसका उसे इनाम मिला. लेकिन आर्मी चीफ की कुर्सी संभालने के बाद जितने और जैसे झटके पाकिस्तानी फौज को लगे हैं, वैसे हाल के सालों में पहले नहीं लगे.
पाकिस्तान में साल 2024 में आम चुनाव हुए थे. इस चुनाव में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआई को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था. इस तरह इमरान और उनकी पार्टी सत्ता से बाहर तो हो गई, लेकिन पाकिस्तान फौज की साख को अपने ही मुल्क में बड़ा बट्टा लगा. आज हालत ये है कि पाकिस्तान आर्मी में मुनीर के खिलाफ फौजी अफसरों और जवानों का एक बड़ा गुट है. इसके अलावा अलग-अलग फ्रंट पर पाकिस्तानी फौज को चुनौतियों का सामना तो करना ही पड़ रहा है.
बलूचिस्तान में बीएलए लगातार पाकिस्तानी फौज पर हमले कर रहा है. पाकिस्तानी तालिबान और अफगान सरकार से भी तनातनी चल रही है. इस बीच 11 मार्च को बीएलए जाफर एक्सप्रेस को अगवा कर 64 लोगों की जान ले चुका है. ऐसे में कहने की जररूत है कि मुनीर अब भड़काऊ भाषणों से अपने हक में हवा बनाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इस्लामाबाद में दिया गया उनका ये भड़काऊ बयान ही अब उनके गले की फांस बन गया है, क्योंकि ये माना जा रहा है कि उसकी बदौलत ही आतंकवादियों ने भारत पर हमला किया.