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कोरोना से जंगः गुजरात की पहली प्लाज्मा डोनर बनीं स्मृति ठक्कर

कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हुईं स्मृति ठक्कर गुजरात की पहली प्लाज़्मा डोनर बन गई हैं. उन्होंने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में रक्तदान किया है जिसका इस्तेमाल अब कोरोना के मरीज के इलाज में किया जाएगा.

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स्मृति ठक्कर ने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में रक्तदान किया है (फोटो-गोपी घांघर)
स्मृति ठक्कर ने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में रक्तदान किया है (फोटो-गोपी घांघर)

  • गुजरात को मिली प्लाज्मा थेरेपी की अनुमति
  • कोरोना के मरीजों के इलाज में होगा इस्तेमाल

गुजरात को कोरोना वायरस के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी प्रणाली के इस्तेमाल की अनुमति मिल गई है. इसकी इजाजत मिलने के बाद कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हुईं स्मृति ठक्कर गुजरात की पहली प्लाज़्मा डोनर बन गई हैं. उन्होंने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में रक्तदान किया है, जिसका इस्तेमाल अब कोरोना के मरीज के इलाज में किया जाएगा.

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क्या होती है प्लाज्मा थेरेपी

जब कोई व्यक्ति कोरोना वायरस के संक्रमण से ठीक हो जाता है तब उसके शरीर में कोरोना वायरस को बेअसर करने वाले विशेष प्रकार के प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं. मतलब बाहर से जो वायरस शरीर में प्रवेश करता है एंटीबॉडी उसका सामना करता है. खून में मौजूद एंटीबॉडी से कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शरीर में डालकर इन एंटीबॉडीज के जरिए संक्रमित मरीज के शरीर में मौजूद कोरोना वायरस को खत्म किया जाता है.

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पहले भी कई बीमारियों में हुआ इस्तेमाल

यह प्लाज्मा थेरेपी प्रणाली कोई नई प्रणाली नहीं है. इससे पहले भी डिप्थीरिया, सार्स, मर्स जैसी महामारियों में इस प्रणाली का उपयोग किया जा चुका है. इसमें काफी सफलता भी मिली है. वर्तमान में विश्व के कई देश कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इस प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं.

विश्व के कई देशों की तर्ज पर अब भारत में भी कई राज्य प्लाज्मा थेरेपी सिस्टम का उपयोग करने की इजाजत मांग रहे हैं. इनमें गुजरात भी शामिल है और अब उसे इस थेरेपी को इस्तेमाल करने की अनुमति मिल गई है. इसे लेकर अहमदाबाद के दो अस्पतालों सिविल हॉस्पिटल और एसवीपी हॉस्पिटल में ठीक हुए मरीजों की एक लिस्ट तैयार की गई है. जिनके रक्त से दूसरे मरीजों के इलाज में मदद मिल सकती है.

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