भारत में मिडिल क्लास लोग आज भले ही महंगी गाड़ियां, लग्जरी अपार्टमेंट और विदेश यात्राओं का शौक पूरा कर रहे हैं, लेकिन चमकती हुई इस तस्वीर के पीछे एक कड़वी सच्चाई भी छिपी है. कई परिवार अब EMI के जाल में बुरी तरह फंस गए हैं. रियल एस्टेट निवेश सलाहकार, मीत पनैया ने थ्रेड्स पर एक उदाहरण देकर इस समस्या को समझाया है. पुणे का एक कपल है जो हर महीने 3.5 लाख रुपये कमाता है. उनके खर्चे कुछ इस तरह है-
होम लोन की EMI: 1.5 लाख रुपये
कार लोन की EMI: 50,000 रुपये
लाइफस्टाइल पर खर्च: 70,000 रुपये
विदेश यात्रा: सालाना 3-4 लाख रुपये
ऊपर से इनकी जिंदगी भले ही शानदार लगे, लेकिन असल में ये लोग कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं. हकीकत में वे अपनी अगली 15 साल की कमाई गिरवी रख चुके हैं मीत पनैया ने बताया, "सच तो यह है कि इन लोगों की अगली 15 साल की कमाई पर बैंक का कब्जा है." यह कोई इकलौता मामला नहीं है. डेटा के मुताबिक, 33 से 45 प्रतिशत वेतनभोगी भारतीयों की मासिक कमाई अब ईएमआई चुकाने में चली जाती है. कई लोग तो 40% की उस सुरक्षित सीमा को भी पार कर चुके हैं, जो वित्तीय सलाहकार बताते हैं. 'कमाओ, उधार लो, चुकाओ, फिर दोहराओ' का चक्र एक आम बात हो गई है, जिससे परिवार अमीर तो दिखते हैं, लेकिन उनके पास नकदी की कमी रहती है.
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इसका सबसे बड़ा असर घरेलू बचत पर पड़ा है, जो GDP के 5.3% तक गिर गई है, जो पिछले 47 सालों में सबसे कम है. यह स्थिति परिवारों को किसी भी आपात स्थिति, जैसे मेडिकल खर्च या नौकरी जाने पर, कमजोर बना देती है. कर्ज चुकाने में दिक्कत भी बढ़ रही है, 5% पर्सनल लोन 90 दिनों से ज्यादा समय से बकाया हैं.
आजकल लाइफस्टाइल से जुड़ी हर चीज EMI पर खरीदी जा रही है. करीब 70% आईफोन और ज़्यादातर महंगे टिकाऊ सामान EMI पर ही खरीदे जाते हैं. सामाजिक दबाव भी इस समस्या को बढ़ा रहा है, लोग अपनी हैसियत दिखाने के लिए घर, गाड़ी, गैजेट्स और छुट्टियां अक्सर किस्तों पर लेते हैं, न कि अपनी कमाई से.
वित्तीय सलाहकारों की मानें तो, बिना सोचे-समझे ज्यादा कर्ज लेना आपको सालों तक आर्थिक गुलामी में फंसा सकता है. वे कहते हैं कि अगर भारत का मध्यम वर्ग इस 'नकली अमीरी' के जाल से बाहर निकलना चाहता है, तो EMI को अपनी कमाई के 40% तक सीमित रखना बेहद जरूरी है. ऐसा करने से ही वे भविष्य की मुश्किलों से बच पाएंगे.