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रेलवे ने लगाया सरकार को 18,000 करोड़ का चूना: CAG

यूपीए सरकार आज अपने दूसरे कार्यकाल का आखिरी रेल बजट पेश करने जा रही है. यूपीए-2 में रेल मंत्रालय कांग्रेस ने अपने पास रखा लेकिन, भारत निर्माण के दावे करने वाली केंद्र सरकार के कामकाज पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं.

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यूपीए सरकार आज अपने दूसरे कार्यकाल का आखिरी रेल बजट पेश करने जा रही है. यूपीए-2 में रेल मंत्रालय कांग्रेस ने अपने पास रखा लेकिन, भारत निर्माण के दावे करने वाली केंद्र सरकार के कामकाज पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं.

कैग के मुताबिक भारतीय रेलवे की लापरवाही और गलत नीतियों के चलते सरकार को 18,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. कैग के मुताबिक ये सिर्फ अनुमान है, असल में नुकसान के आंकड़े इससे कई गुना ज्यादा हैं.

कैग ने 2008 से लेकर 2012 तक रेलवे के खातों का हिसाब किया है. मंगलवार को संसद में पेश की गई कैग की ये रिपोर्ट संसद के शोर गुल में गुम हो गई. 'आज तक' के हाथ लगी यह रिपोर्ट यूपीए के भारत निर्माण की पोल खोलती है.

रिपोर्ट की अहम बातें :-
- रेलवे की ढुलाई नीति में गड़बड़ी के चलते सरकार को 4,300 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ.
- लौह अयस्कों के ट्रांसपोर्टेशन के लिए अपनाई गई रेलवे की दोहरी पॉलिसी के दुरुपयोग के चलते यह चपत लगी.
- इस पॉलिसी के तहत घरेलू इस्‍तेमाल के लिए लौह अयस्कों के ट्रांसपोर्टरों को सस्ती दरों पर ट्रांसपोर्ट करने की सुविधा दी गई.
- निर्यात के लिए लौह अयस्कों के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च घरेलू उपयोग के लिए किए जाने वाले ट्रांसपोर्टेशन की तुलना में तीन गुना ज्यादा था.
- कई निर्यातकों ने दस्तावेजों का हेरफेर कर दोहरी पॉलिसी का फायदा उठाया. इसमें रेलवे प्रशासन की भी मिली भगत है.
- 126 पार्टियां ऐसी थीं जिन्होंने मई 2008 से 2012 के बीच बुकिंग के पहले आवश्यक दस्तावेज में से एक भी पेश नहीं किया.
- रेलवे के सुस्त रवैये के चलते 13,869 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. यह जुर्माने के तौर पर कंपनियों से वसूलना बाकी है.
- रेल प्रशासन ने जान बूझकर इन कंपनियों को फायदा पंहुचाने के लिए नियम कायदे ताक पर रखे.

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कैग की यह रिपोर्ट रेलवे के उन तीन जोनों की ऑडिट पर आधारित है, जहां लौह अयस्कों की सबसे ज्यादा लोडिंग की जाती है. इन जोनों में दक्षिण पूर्वी, दक्षिण पश्चिम और पूर्व रेलवे की सीमा शामिल है. हैरानी की बात यह है कि कैग ने रेलवे की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं. कैग की मानें तो तमाम कंपनियां रेल के खेल में मगन थीं और रेलवे आंखें मूंदे बैठा रहा.

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