नीतीश कुमार का अगला कदम क्या होगा, इसको लेकर बिहार की राजनीति पिछले 11 सालों से चल रही है. अब केंद्र की राजनीति भी नीतीश कुमार के अगले कदम का इंतजार करेगी. लोकसभा चुनाव के दौरान कहा जा रहा था कि नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू चुनाव के बाद खत्म हो जाएगी, लेकिन इस बार के चुनाव परिणाम ने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को ऐसी मजबूती दी कि वो किंगमेकर बन गए हैं. अब केंद्र की राजनीति में भी सबकी निगाहें उन्हीं पर टिकी हुई हैं. नीतीश कुमार ने NDA को अपना समर्थन दिया है, लेकिन वो कब तक एनडीए में रहेंगे, इसकी चर्चा शुरू हो गई है.
'नीतीश सबके हैं...' ये उनकी पार्टी का स्लोगन भी है. इसलिए उनके विरोधियों को भी उनसे आस लगी रहती है क्योंकि नीतीश कुमार को किसी पार्टी से परहेज भी नहीं है. ये महज संयोग नहीं है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू विपक्ष को एकजुट करने प्रयास कर चुके हैं. चंद्रबाबू ने 2019 के चुनाव से पहले प्रयास किया था और नीतीश कुमार ने 2024 के चुनाव को लेकर जो प्रयास किया था उसका नतीजा इंडिया गठबंधन के रूप में सामने है. 23 जून 2023 को नीतीश कुमार के नेतृत्व में इसकी पहली बैठक पटना में हुई लेकिन बाद की बैठकों में उन्हें किनारा कर दिया गया.
विपक्षी गठबंधन के नाम को लेकर खफा थे नीतीश
नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया रखने से भी खफा थे. गठबंधन की नींव रखने वाले नीतीश कुमार को तवज्जो नहीं दी गई और आज हालात ये हैं कि वो नेता भी, जिन्होंने नीतीश कुमार को गठबंधन का चेहरा नहीं बनने दिया वो आज नीतीश कुमार से आस लगाए बैठे हैं.
नीतीश और बीजेपी का रिश्ता
नीतीश कुमार का बीजेपी से गठबंधन 1996 में शुरू हुआ, जो पहली बार नरेंद्र मोदी की वजह से 2013 में टूट गया. नीतीश ने गुजरात दंगों की वजह से नरेंद्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार में नहीं आने दिया, लेकिन जब बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया तब नीतीश कुमार ने नाराज होकर बीजेपी से नाता तोड़ लिया. 2014 का चुनाव जब उन्होंने अकेले लड़ा तो उन्हें बिहार में महज 2 सीटें मिली फिर उन्होंने अपनी घोर विरोधी आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया और 2015 का चुनाव भारी बहुमत से जीते, लेकिन जल्दी ही महागठबंधन से उनका मोह भंग हो गया. तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद 2017 में वो फिर से NDA में चले गए.
2022 में फिर सत्ता परिवर्तन
नीतीश कुमार ने 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा और 40 में से 39 सीटें NDA के हिस्से में आईं, लेकिन जल्दी ही केंद्र के मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या को लेकर विवाद शुरू हो गया. यह विवाद 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान तब और गहरा गया जब जेडीयू को सिर्फ 43 सीटें आईं. नीतीश कुमार को लगा कि उन्हें कमजोर करने की कोशिश हो रही है. रही सही कसर आरसीपी सिंह के केंद्र में मंत्री बनने के बाद पूरी हो गई. आरोप लगा कि बीजेपी आरसीपी सिंह के जरिये जेडीयू को तोड़ना चाहती है. इसी आधार पर बिहार में 2022 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और फिर महागठबंधन की सरकार बन गई.
महागठबंधन से मोह भंग
2022 के बाद नीतीश कुमार ने बीजेपी के खिलाफ गोलबंदी करना शुरू कर दिया, लेकिन कांग्रेस के रवैये से वो खुश नहीं थे. बैठकों में हो रही देरी और कांग्रेस के निर्णय न लेने की आदत से वो खफा हो गए और एक बार फिर महागठबंधन से उनका मोह भंग हुआ और फिर से इसी साल जनवरी में वो NDA में शामिल हो गए.
सिद्धांतों से समझौता नहीं करते नीतीश
नीतीश कुमार ने गठबंधन की अदला-बदली जरूर की है, लेकिन उसके पीछे राजनीतिक कारण रहे हैं. नीतीश कुमार कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते हैं. यही कारण है कि वो आज भी राजनीति में इतने प्रासंगिक हैं. रेल मंत्री रहते हुए रेल दुर्घटना पर इस्तीफा देने वाले नीतीश कुमार ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 2 सीट आने पर मुख्यमंत्री पद दे दिया था. वैसे नेता के रूप में नीतीश कुमार की पहचान है.
बीजेपी के कोर एजेंडे से सहमत नहीं हैं नीतीश
नीतीश कुमार में ये खासियत है कि वो राजनीति में आने वाली चुनौतियों को पहले ही भाप लेते हैं. नरेंद्र मोदी को टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने सरकार बनाने के लिए समर्थन पत्र सौंप तो दिए हैं, लेकिन ये सरकार कितने दिन तक चलती है यह देखने लायक होगा. क्योंकि नरेंद्र मोदी को अब तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने का तजुर्बा है, लेकिन अब सरकार चलाना पहले की तरह आसान नहीं होगा इसकी मूल वजह यह है कि बीजेपी के कई कोर एजेंडों से नीतीश कुमार की सहमति नहीं रही है.
अग्निवीर योजना पर जेडीयू को आपत्ति
जेडीयू को अग्निवीर योजना पर भी आपत्ति है. वो इसकी समीक्षा चाहती है. इसलिए अब इन फैसलों पर बीजेपी को अपने सहयोगियों की राय लेनी पड़ेगी. दूसरा, भाजपा को नीतीश और नायडू के अतीत को देखते हुए हमेशा यह खतरा बना रहेगा कि वे कब बिदक कर किनारे हो जाएं. वैसे नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार कोई भी फैसला अकेले लेने के आदी रहे हैं, इस तरह के स्वभाव से स्थिति बदल सकती है.
देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में नीतीश कुमार का NDA को छोड़ने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है, जिस प्रकार के चुनाव परिणाम आए हैं. उसमें नीतीश कुमार के लिए NDA के साथ रहना फायदेमंद है. इसमें बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए और 2025 का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाए तो स्थितियां सामान्य रह सकती हैं, लेकिन नीतीश कुमार भले ही इससे इनकार करते हो लेकिन कहीं ना कहीं उनके मन में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की हसरत तो है ही.