राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का अभिमंच थिएटर इन दिनों चर्चित और प्रसिद्ध रहे नाटकों के मंचन का गवाह बन रहा है. NSD में ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह के दौरान हो रही प्रस्तुतियों में बीता हफ्ता प्रसिद्ध नाटककार मोहन राकेश के नाम रहा. उनकी स्मृति में, और उनके जन्म शताब्दी वर्ष के खास मौके पर एनएसडी रिपर्टरी के प्रतिष्ठित नाटक 'आधे अधूरे' का मंचन किया. यह प्रस्तुति समर थिएटर फेस्टिवल का ही एक हिस्सा था.
30 साल पहले के कलाकारों ने फिर किया मंचन
नाटक के मंचन की सबसे खास बात यह रही कि इस ऐतिहासिक नाटक को करीब तीन दशकों के बाद एक बार फिर से मंच पर जीवंत किया गया, जिसे उस दौर में त्रिपुरारी शर्मा ने निर्देशित किया था. त्रिपुरारी शर्मा भी भारतीय रंगमंच और हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण नाम रही हैं. इस प्रस्तुति में बतौर मूल प्रमुख कलाकार प्रतिमा कन्नन और रवि खानविलकर का होना दर्शकों के लिए सौगात जैसा रहा, जिन्होंने इसी नाटक में फिर से अपनी भूमिकाएं निभाईं. तीस साल पहले जब वह इन भूमिकाओं को निभा रहे थे तब उस दौर में युवा होकर एक प्रौढ़ दंपती का किरदार निभाना वाकई नाटक जैसा ही रहा होगा, लेकिन अब जब खुद उम्र उस पड़ाव पर पहुंच गई है, जहां प्रौढ़ दिखने के लिए बालों पर सफेदी और चेहरे पर झुर्रियों की जरूरत नहीं है, तब नाटक मंच पर और खिल गया और ऐसा लगता है कि मोहन राकेश ने इसी प्रौढ़ समझ के लिए ये नाटक लिखा था.

तजुर्बे और कला का बेजोड़ संगम
असल में आधे-अधूरे नाटक पढ़ कर समझ आने वाला नहीं है, इसे समझने के लिए वो उम्र, वो तजुर्बा तो चाहिए ही चाहिए, जिसकी वो बात कर रहा है. ये तजुर्बा सिर्फ उम्र को जीकर ही हासिल किया जा सकता है और 30 साल पहले की कलाकार जोड़ी जब इसी तजुर्बे के साथ मंच पर उतरी तो नाटक, नाटक नहीं लगा, यूं लगा कि महानगर की किसी बंद गली का आखिरी मकान (वैसे ये धर्मवीर भारती की कहानी है) ही उठकर मंच पर आ गया हो, जिसकी ड्राइंग रूम से किचन को जाती गली और पीछे की ओर खुलता एकाकी कमरा लगता था कि हमारा ही अपना घर है. हमारे घर में रखे सोफे के कवर पुराना पड़ चुका है, और एक बेतरतीब किताबों की रैक हमारे ही किसी कमरे में रखी हुई है.
कहानी का मर्म
आधे-अधूरे की कहानी सावित्री और महेंद्रनाथ के परिवार की है, एक ऐसा मध्यमवर्गीय परिवार, जहां हर व्यक्ति किसी न किसी अधूरेपन और तलाश में जी रहा है. सावित्री इस परिवार की मुखिया ही नहीं, बल्कि इस वक्त घर की एकमात्र कमाने वाली भी है. एक थकी हुई लेकिन जुझारू महिला जिसके कंधों पर पूरे घर की ज़िम्मेदारी का बोझ है. उसका पति महेन्द्रनाथ बेरोजगार है, जिसका आत्मविश्वास टूट चुका हुआ है और उदासी उसकी दोस्त है. सावित्री को उसमें न तो मानसिक सहारा मिलता है, न ही कोई भावनात्मक जुड़ाव.
घर के तीन बच्चे, बिन्नी, अशोक और किन्नी भी अपने-अपने जीवन संघर्षों में उलझे हैं. बिन्नी ने प्रेम विवाह किया, लेकिन वह रिश्ता टिक नहीं सका और वह मायूस होकर घर लौट आई. अशोक बेरोज़गारी और निराशा से जूझ रहा है, और किन्नी, जो किशोरावस्था में है वह बगावती और असंयमित हो चुकी है. पति से निराश सावित्री अपने पुराने परिचितों जुनेजा, जगमोहन और सिंघानिया की ओर आकर्षित होती है, लेकिन हर बार उसे उन्हीं कमजोरियों और स्वार्थों का सामना करना पड़ता है जो महेन्द्रनाथ में हैं.

थोड़ी खीझ, थोड़ी जलन, कुछ उलझन और बहुत सारे अविश्वास की कहानी
आखिरकार वह इस सच्चाई से टकराती है कि वह जिस 'पूर्ण पुरुष' की तलाश में थी, वह शायद कहीं है ही नहीं. यह कहानी केवल सावित्री की नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार की है एक ऐसे परिवार की, जिसमें हर सदस्य अधूरा है, हर कोई किसी न किसी रूप में अपने जीवन की सार्थकता तलाश रहा है. इस नाटक में संगीत जाने-माने कलाकार पियूष मिश्रा ने दिया है, जबकि प्रकाश परिकल्पना में राघव मिश्रा और वेशभूषा में अनीला सिंह ने योगदान किया है.
पूरे नाटक में कहानी जैसा कुछ अलग नहीं है, लेकिन दैनिक परिस्थितियों का द्वंद्व है जो सामने ही घट रहा है. सावित्री हमेशा अपने पति महेंद्रनाथ से लड़ती रहती है. उसे किसी से कोई लगाव नहीं है बच्चों से भी नहीं. बड़ी बेटी तो भागी ही थी, छोटी मात्र तेरह साल की है लेकिन अभी से उसके कदम 'अडल्ट कंटेंट' की तरफ बढ़ने लगे हैं. बेटा अशोक भी नौकरी के बजाय मौज-मस्ती में ज्यादा मशगूल है.
परिस्थितियां, जिनसे मिडिल क्लास दो-चार होता ही है...
ये सारी स्थितियां-परिस्थितियां एक न एक मौके पर हर घर में आती ही हैं, मिडिल क्लास इनसे जूझता ही जूझता है. जो दंपती समझदार होते हैं वह इन परेशानियों को मिलकर शांतपूर्ण तरीके से सुलझाते हैं, अपनी जिम्मेदारियां निभाते हैं, लेकिन आधे-अधूरे की कहानी यही बताती है कि जब आप अपने हिस्से की जिम्मेदारियां नहीं निभाते तो किस तरह का अधूरापन जिंदगी को लीलने के लिए मुंह बाए खड़ा रहता है. यही आधे-अधूरे का सबक है. पर्दा गिरता है...