ट्रंप से शहबाज-मुनीर की 'सीक्रेट डील', रेयर अर्थ की खेप गुपचुप भेजी अमेरिका, मचा बवाल!

पाकिस्तान ने पहली बार अमेरिका को दुर्लभ खनिजों की खेप भेजी है. अमेरिका के साथ हुए एक हालिया समझौते के तहत पाकिस्तान ने अमेरिका को सैंपल भेजा है. इस डील पर पाकिस्तान में विरोध शुरू हो गया है, खासकर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी PTI ने इसे 'सीक्रेट डील' करार देते हुए इसकी जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की है.

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खबर है कि पाकिस्तान ने अमेरिका को महत्वपूर्ण खनिजों की सैंपल खेप भेज दी है (Photo: White house) खबर है कि पाकिस्तान ने अमेरिका को महत्वपूर्ण खनिजों की सैंपल खेप भेज दी है (Photo: White house)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 5:23 PM IST

पाकिस्तान ने पहली बार दुर्लभ (रेयर अर्थ) और अहम खनिजों की खेप अमेरिका भेजी है. यह खेप उस समझौते के तहत भेजी गई है जो पिछले महीने एक अमेरिकी कंपनी के साथ पाकिस्तान के खनिज संसाधनों की खोज और विकास के लिए किया गया था. इस समझौते और रेयर अर्थ मिनरल्स की खेप को अमेरिका भेजे जाने पर पाकिस्तान में विरोध शुरू हो गया है.

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पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने अमेरिका के साथ हुए 'सीक्रेट डील्स' पर चिंता जताई है.

पाकिस्तान के अखबार, 'डॉन' की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका भेजी गई सैंपल खेप में एंटिमनी, कॉपर कॉन्सन्ट्रेट और रेयर अर्थ मिनरल्स जैसे नियोडाइमियम और praseodymium शामिल हैं.

अमेरिकी कंपनी से पाकिस्तान की डील

सितंबर में अमेरिकी कंपनी US स्ट्रैटेजिक मिनरल्स (USSM) ने पाकिस्तान की सैन्य इंजीनियरिंग इकाई फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत अमेरिका की यह कंपनी पाकिस्तान में 50 करोड़ डॉलर (करीब 4,200 करोड़ रुपये) का निवेश कर खनिज प्रोसेसिंग और डेवलपमेंट फैसिलिटीज स्थापित करेगी.

पाकिस्तानी अखबार के अनुसार, जो सैंपल अमेरिका भेजे गए हैं, वो FWO के सहयोग से स्थानीय रूप से तैयार किए गए थे.

USSM ने एक बयान में कहा कि यह डिलीवरी अमेरिका और पाकिस्तान के बीच रणनीतिक साझेदारी की दिशा में एक अहम कदम है. कंपनी ने कहा कि यह समझौता 'खनिजों की पूरी वैल्यू चेन: खोज, प्रोसेसिंग और रिफाइनिंग सुविधाओं के विकास के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है.'

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USSM अमेरिकी राज्य मिसौरी स्थित कंपनी है, जो महत्वपूर्ण खनिजों के उत्पादन और रीसाइक्लिंग का काम करती है. अमेरिकी ऊर्जा विभाग ने क्रिटिकल मिनरल्स और रेयर अर्थ मिनरल्स को कई एडवांस टेक्नोलॉजी के लिए जरूरी बताया है.

मुनीर ने उन खनिज रिजर्व से ट्रंप को लुभाया जिसे खोजा तक नहीं गया 

इस डील के कुछ दिन बाद व्हाइट हाउस ने एक तस्वीर जारी की जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बॉक्स में रखे पत्थरों (रेयर अर्थ मिनरल्स) को देखते नजर आए. तस्वीर में पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर उन्हें कुछ समझाते दिखे, जबकि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पास में मुस्कुराते नजर आए.

कर्ज में डूबे पाकिस्तान ने ट्रंप प्रशासन को लुभाने के लिए अपने उस रेयर अर्थ रिजर्व को सामने लाने की कोशिश तेज कर दी है, जिसका अभी तक पता भी नहीं लगाया जा सका है.

डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के पास करीब 6 खरब डॉलर के खनिज भंडार होने का अनुमान है, जिससे वह दुनिया के सबसे संसाधन-समृद्ध देशों में शामिल होता है. हालांकि, कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब तक पाकिस्तान में इस खोज के लिए आईं और बैरंग वापस लौट चुकी हैं,

PTI की मांग- सीक्रेट डील्स को सबके सामने रखा जाए

इमरान खान की पार्टी PTI ने मांग की है कि सरकार अमेरिका और अमेरिकी कंपनियों के साथ हुए सभी समझौतों की पूरी जानकारी सार्वजनिक करे. पार्टी के सूचना सचिव शेख वक्कास अकराम ने कहा कि संसद और जनता को इन सीक्रेट डील्स के बारे में बताया जाए.

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पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि मामला केवल 50 करोड़ डॉलर के खनिज समझौते तक सीमित नहीं है.

चीन के बाद अब अमेरिका को भी पाकिस्तान ने दे दिया अपना बंदरगाह

PTI ने राष्ट्रीय हित का हवाला देते हुए यह खुलासा करने की मांग की है कि क्या पाकिस्तान बलुचिस्तान के पासनी पोर्ट (जो चीन के कंट्रोल वाले ग्वादर पोर्ट के पास है) को अमेरिका को देने जा रहा है ताकि वो यहां से खनिज ले जा सके.

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान ने हाल ही में राष्ट्रपति ट्रंप को खुश करने के लिए अरब सागर स्थित इस पोर्ट को अमेरिका को देने का प्रस्ताव दिया है. यह बंदरगाह भारत के ईरान स्थित चाबहार पोर्ट के भी नजदीक है.

PTI ने चेतावनी दी है कि ऐसे 'एकतरफा और सीक्रेट डील्स' देश की पहले से ही नाजुक स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं.

अकराम ने कहा कि पार्टी 'ऐसे किसी भी समझौते को स्वीकार नहीं करेगी जो जनता और राष्ट्र के हितों के खिलाफ हो.'

उन्होंने कहा कि शहबाज सरकार को जहांगीर के 1615 में किए उस फैसले से सबक लेना चाहिए जिसमें उन्होंने ब्रिटिशों को सूरत बंदरगाह पर व्यापारिक अधिकार दे दिया था. बाद में चलकर यही बंदरगाह औपनिवेशिक कब्जे का रास्ता बना.

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