वैश्विक राजनीति का इतिहास और इसकी आगे की धारा अमेरिका और सोवियत रूस की मुलाकात से तय होती है. इन मुलाकातों ने न केवल दो महाशक्तियों के रिश्तों को आकार दिया, बल्कि विश्व व्यवस्था, शांति और युद्ध के समीकरणों को भी बदला. ये मुलाकातें न केवल कूटनीति की कहानियां हैं, बल्कि मानवता के भविष्य को प्रभावित करने वाले निर्णायक क्षण भी हैं.
1945 में जब याल्टा सम्मेलन में अमेरिका और सोवियत रूस के राष्ट्राध्यक्ष मिले तो द्वितीय विश्वयुद्ध के तपिश से झुलस रही दुनिया जर्मनी के विभाजन को तैयार हुई और संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के लिए आधार तैयार हुआ. हालांकि इस सम्मेलन में एक और ताकतवर शख्सियत ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल भी शामिल थे.
15 अगस्त को ऐसा ही एक और निर्णायक क्षण आ रहा है. इस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अलास्का में मुलाकात कर रहे हैं. इस सम्मेलन की सफलता पर यूक्रेन समेत यूरोप का भविष्य निर्भर करेगा.
ट्रंप के टैरिफ वॉर से परेशान भारत समेत दुनिया को इस सम्मेलन के नतीजे का इंतजार है.
याल्टा सम्मेलन 1945
1945 की सर्दियों में अमेरिका, सोवियत रूस और ब्रिटेन को लगने लगा था कि अब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति की ओर है. इस युद्ध के बाद दुनिया कैसे होगी, वर्ल्ड ऑर्डर का प्रारूप क्या होगा. इन मसलों पर चर्चा करने के लिए क्रीमिया के याल्टा में एक सम्मेलन हुआ. दुनिया के दिग्गजों की इस मीटिंग में अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट, सोवियत रूस के नेता जोसेफ स्टालिन और ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल शामिल हुए थे.
इसी सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के लिए आधार तैयार हुआ, जिसमें सोवियत संघ को सुरक्षा परिषद में वीटो की शक्ति मिली. इसके अलावा मित्र राष्ट्रों से हार की कगार पर पहुंच चुके जर्मनी को चार क्षेत्रों में विभाजित करने पर सहमति बनी. द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी को कई हिस्सों में बांट दिया गया. इसके बाद यूरोप का नक्शा और राजनीति हमेशा के लिए बदल गया.
इसी सम्मेलन में सोवियत संघ ने जापान के खिलाफ युद्ध में शामिल होने का वादा किया.
इसी सम्मेलन ने मित्र राष्ट्रों के बीच टकराव का बीज बो दिया और शीत युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हो गई. क्योंकि एक टेबल पर बैठने के बावजूद रूजवेल्ट और स्टालिन के बीच विश्वास नहीं पनप पाया था.
1945 में ही हैरी एस. ट्रूमैन (अमेरिका), जोसेफ स्टालिन (सोवियत संघ), और विंस्टन चर्चिल (बाद में क्लेमेंट एटली) की एक और मुलाकात हुई. इस सम्मेलन में ट्रूमैन ने स्टालिन को परमाणु बम के बारे में बताया जिसने दो महाशक्तियों के बीच हथियारों की होड़ को बढ़ावा दिया.
जेनेवा सम्मेलन 1955
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत रूस के बीच हथियारों की होड़ शुरू हुई और शीत युद्ध चरम पर पहुंच गया था. इस सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर और सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव ने शीत युद्ध के दौरान तनाव कम करने के लिए मुलाकात की. यह पहला बड़ा शिखर सम्मेलन था जिसमें दोनों पक्षों ने "शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व" पर चर्चा की.
इस सम्मेलन में आइजनहावर ने "ओपन स्काईज़" प्रस्ताव रखा, जिसके तहत दोनों पक्ष एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों की हवाई निगरानी कर सकते थे, लेकिन इसे खारिज कर दिया गया. कोई ठोस समझौता नहीं हुआ, पर इसने संवाद का रास्ता खोला.
क्यूबा मिसाइल संकट और आमने-सामने कैनेडी और ख्रुश्चेव
1961 में शीत युद्ध अपने चरम पर था. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी और सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव की मुलाकात ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में हुई. यह पहली बार था जब दोनों नेता आमने-सामने थे. कैनेडी हाल ही में राष्ट्रपति बने थे, वे एक युवा और आकर्षक नेता के रूप में जाने जाते थे, जबकि ख्रुश्चेव एक अनुभवी और उग्र कम्युनिस्ट नेता थे.
इस मुलाकात का मकसद था बर्लिन संकट, परमाणु हथियारों की होड़ और वैचारिक मतभेदों पर चर्चा करना.
वियना में दो दिनों तक चली बातचीत तनावपूर्ण रही. ख्रुश्चेव ने बर्लिन को लेकर आक्रामक रुख अपनाया. उनकी मांग थी की पश्चिमी देश पूर्वी बर्लिन छोड़ दें. कैनेडी ने इसका विरोध किया लेकिन ख्रुश्चेव ने उन्हें कम अनुभवी मानकर दबाव डाला. मुलाकात के बाद कैनेडी ने अपने सहयोगियों से कहा, "यह मेरे जीवन का सबसे कठिन दिन था."
ख्रुश्चेव ने कैनेडी को कमजोर समझा, इसके परिणामस्वरूप 1961 में बर्लिन दीवार का निर्माण शुरू हुआ. दो दिग्गजों की ये मुलाकात नेताओं के मन में जमे दुश्मनी के मैल को कम नहीं कर सकी. 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट के साथ दुनिया पर परमाणु युद्ध का खतरा मंडराने लगा. ख्रुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कीं, कैनेडी ने भी ऐसा ही किया.
इस संकट ने दुनिया को परमाणु युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया. लेकिन कैनेडी और ख्रुश्चेव के बीच गुप्त पत्राचार और कूटनीति ने युद्ध टाल दिया. इस मुलाकात ने दोनों नेताओं को एक-दूसरे की ताकत और कमजोरियों का अहसास कराया, इसके बाद 1963 में लिमिटेड टेस्ट बैन संधि पर हस्ताक्षर हुए.
रेकजाविक शिखर सम्मेलन 1986
अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव ने आइसलैंड के रेकजाविक में परमाणु हथियारों को कम करने के लिए मुलाकात की. ये वो दौर था जब सोवियत रूब का दबदबा दुनिया से कम हो रहा था. इस मुलाकात ने इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज संधि (1987) का आधार तैयार किया, जिसके तहत मध्यम दूरी की परमाणु मिसाइलों को नष्ट किया गया.
इस मुलाकात ने शीत युद्ध के अंत की शुरुआत की और परमाणु हथियारों की कमी के लिए एक मिसाल कायम की. 1990 में सोवियत रूस के विघटन के साथ ही दुनिया शीत युद्ध के दौर से बाहर निकली.
हेलसिंकी शिखर सम्मेलन 2018
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की द्विपक्षीय मुलाकात 2018 में भी फिनलैंड के हेलसिंकी में हो चुकी है. यह मुलाकात रूस-अमेरिका संबंधों में तनाव और 2016 के अमेरिकी चुनाव में कथित रूसी हस्तक्षेप के बाद हुई थी. इस मीटिंग में दोनों नेताओं के साथ केवल दुभाषिए ही थे. ये इन दोनों नेताओं की निजी बैठक थी. इसमें इनके साथ कोई भी दूसरा राजनयिक नहीं था.
इस मीटिंग के बाद बाद एक लंच हुआ और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी हुई लेकिन कोई आधिकारिक संधि नहीं हुई. इस मीटिंग के बाद ट्रंप ने संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी चुनाव में रूसी हस्तक्षेप को खारिज किया.
इस सम्मेलन में पुतिन ने ट्रंप के साथ संबंधों की नई शुरुआत करते हुए उन्हें एक फुटबॉल भेंट की थी और कहा था कि राष्ट्रपति महोदय अब गेंद आपके पाले में है.
अलास्का सम्मेलन 2025
सात साल बाद विश्व फिर से एक ऐतिहासिक मुलाकात का गवाह बनने जा रहा है. ट्रंप और पुतिन ने निजी संवाद का जो सिरा हेलसिंकी में छोड़ा था उसे अलास्का में फिर से पकड़ा जा सकता है. लेकिन इस मुलाकात का एजेंडा जटिल है.
इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य 2022 से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करना है. इस दौरान रूस और यूक्रेन के बीच कुछ क्षेत्रों की अदला-बदली हो सकती है. रूस चाहता है कि यूक्रेन डोनबास और क्रीमिया जैसे क्षेत्र छोड़ दे, जबकि यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने किसी भी क्षेत्रीय रियायत की संभावना को खारिज कर दिया है. सबसे मुश्किल यह है कि यूक्रेन प्रत्यक्ष रूप से इस सम्मेलन में शामिल नहीं हो रहा है.
इस मीटिंग के लिए अलास्का का चयन अपने आप में प्रतीकात्मक है. 1867 में रूस ने अलास्का को अमेरिका को 72 लाख डॉलर में बेचा था, इसे तब ‘स्यूअर्ड्स फॉली’ कहा गया. लेकिन बाद में अलास्का के तेल और खनिज संसाधनों ने इसे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया. विलियम एच. स्यूअर्ड तब अमेरिका के विदेश मंत्री थे. तब कहा कि उन्होंने बेकार और ठंडे अलास्का के लिए ये महंगा सौदा किया है.
इसके अलावा अलास्का की रूस से भौगोलिक निकटता और अमेरिका का अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) का सदस्य न होना इसे पुतिन के लिए सुरक्षित स्थान बनाता है, गौरतलब है कि ICC ने पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है.
ट्रंप-पुतिन की मुलाकात यदि सफल रही तो रूस-यूक्रेन युद्ध समाप्त हो सकता है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप यूरोप में नया तनाव पैदा होगा और नाटो के भविष्य के रोल पर भी सवाल उठेंगे.
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