दुनिया के सबसे बड़े बांध का 'बम'... चीन के हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट से क्यों परेशान हैं भारत-बांग्लादेश

चीन का यारलुंग ज़ांगबो मेगा-डैम दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट है, जो तिब्बत में स्वच्छ ऊर्जा और आर्थिक विकास का वादा करता है. लेकिन भारत और बांग्लादेश के लिए ये पानी की कमी, बाढ़ और पर्यावरणीय जोखिम ला सकता है. चीन का दावा है कि डैम से कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन उसकी पारदर्शिता की कमी और रणनीतिक मंशा पड़ोसियों को डरा रही है.

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चीन बना रहा दुनिया का सबसे बड़ा डैम चीन बना रहा दुनिया का सबसे बड़ा डैम

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 7:22 PM IST

चीन ने यारलुंग ज़ांगबो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर डैम बनाने का काम शुरू कर दिया है. ये नदी भारत में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में जमुना कहलाती है. इस 170 अरब डॉलर (लगभग 1.2 ट्रिलियन युआन) की परियोजना को मोतुओ हाइड्रोपावर स्टेशन कहा जा रहा है. ये थ्री गॉर्जेस डैम (वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा डैम) से भी तीन गुना ज्यादा बिजली पैदा करेगा.

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19 जुलाई 2025 को चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने तिब्बत में इसकी नींव रखी. चीन का कहना है कि ये डैम स्वच्छ ऊर्जा देगा, रोजगार बढ़ाएगा और उसकी अर्थव्यवस्था को मज़बूती देगा. लेकिन भारत और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में इस प्रोजेक्ट को लेकर चिंता बढ़ रही है.

क्या है यारलुंग ज़ांगबो मेगा-डैम प्रोजेक्ट?

यारलुंग ज़ांगबो तिब्बत की सबसे लंबी नदी है, जो हिमालय से निकलकर भारत के अरुणाचल प्रदेश में सियांग नदी बनती है. फिर असम में ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश में जमुना कहलाती है. ये नदी लाखों लोगों के लिए जल, खेती और मछली पकड़ने का साधन है. 

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चीन इस नदी के ग्रेट बेंड इलाके में जहां नदी नमचा बरवा पर्वत के पास यू-टर्न लेती है. 5 डैम बनाने जा रहा है. इस जगह पर नदी 50 किमी के दायरे में 2000 मीटर नीचे गिरती है, जो इसे बिजली बनाने के लिए दुनिया का सबसे अच्छा स्थान बनाता है.

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  • लागत: 170 अरब डॉलर (लगभग 14 लाख करोड़ रुपये).
  • क्षमता: 60 गीगावाट बिजली, जो 30 करोड़ लोगों की सालाना जरूरत पूरी कर सकती है.
  • निर्माण: 5 कैस्केड पावर स्टेशन बनाए जाएंगे. 20 किमी लंबी सुरंगें खोदकर नदी का आधा पानी (लगभग 2,000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड) मोड़ा जाएगा.
  • पूरा होने का समय: 2030 के शुरुआती या मध्य तक बिजली उत्पादन शुरू हो सकता है.
  • स्थान: तिब्बत का मेदोग काउंटी, जो भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास है.

चीन का कहना है कि ये प्रोजेक्ट स्वच्छ ऊर्जा देगा, बाढ़ नियंत्रण में मदद करेगा और तिब्बत में 20 अरब युआन (3 अरब डॉलर) की सालाना कमाई करेगा. लेकिन भारत और बांग्लादेश इसे जल हथियार के रूप में देख रहे हैं.

भारत और बांग्लादेश क्यों हैं चिंतित?

ब्रह्मपुत्र नदी भारत और बांग्लादेश के लिए जीवन रेखा है. ये नदी खेती, मछली पकड़ने और बिजली उत्पादन के लिए जरूरी है. लेकिन इस डैम से कई खतरे पैदा हो सकते हैं...

पानी की कमी का डर

अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि डैम से नदी का 80% पानी सूख सकता है, जिससे अरुणाचल और असम में खेती और आजीविका पर बुरा असर पड़ेगा.

बांग्लादेश में 65% पानी ब्रह्मपुत्र से आता है. 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर नदी का पानी 5% भी कम हुआ, तो बांग्लादेश में 15% कृषि उत्पादन घट सकता है. इससे खाद्य संकट और प्रवास की समस्या बढ़ सकती है.

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सूखे मौसम में अगर चीन पानी रोके, तो भारत और बांग्लादेश में पानी की भारी कमी हो सकती है.

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बाढ़ का खतरा

अगर चीन अपने 40 अरब क्यूबिक मीटर के रिजर्वायर से पानी अचानक छोड़ता है, तो अरुणाचल और असम में बाढ़ आ सकती है. इसे वाटर बम कहा जा रहा है, जो युद्ध या तनाव के समय रणनीतिक हथियार बन सकता है.

पेमा खांडू ने कहा कि ये डैम हमारे लिए अस्तित्व का खतरा है. चीन इसे जल बम की तरह इस्तेमाल कर सकता है.

सेडिमेंट (गाद) की कमी

नदी की गाद में पोषक तत्व होते हैं, जो खेती के लिए जरूरी हैं. डैम से गाद का बहाव रुक सकता है, जिससे भारत और बांग्लादेश के डेल्टा इलाकों में मिट्टी कम उपजाऊ हो सकती है. इससे कटाव बढ़ेगा और समुद्र का स्तर उठने से तटीय इलाकों को नुकसान होगा.

पारदर्शिता की कमी

चीन ने प्रोजेक्ट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी. हाइड्रोलॉजिकल डेटा (पानी के बहाव की जानकारी) और डैम की डिज़ाइन साझा नहीं की गई. इससे भारत और बांग्लादेश को संभावित खतरों का अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो रहा है. बांग्लादेश ने फरवरी 2025 में चीन को पत्र लिखकर डैम की जानकारी मांगी, लेकिन जवाब नहीं मिला.

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रणनीतिक खतरा

ये डैम अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास बन रहा है, जिसे चीन दक्षिण तिब्बत कहकर अपना हिस्सा मानता है. भारत और चीन के बीच 1962 का युद्ध इसी इलाके में हुआ था. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन इस डैम का इस्तेमाल रणनीतिक दबाव बनाने के लिए कर सकता है.

चीन का दावा: कोई नुकसान नहीं होगा

चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ये डैम स्वच्छ ऊर्जा और बाढ़ नियंत्रण के लिए है. इससे भारत या बांग्लादेश को कोई नुकसान नहीं होगा. चीन का कहना है कि ये रन-ऑफ-द-रिवर प्रोजेक्ट है, यानी पानी का बहाव सामान्य रहेगा. ज्यादा पानी नहीं रोका जाएगा.

चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि हमने दशकों तक अध्ययन किया है. सुरक्षा उपाय किए हैं. हम पड़ोसी देशों के साथ बाढ़ नियंत्रण और आपदा राहत में सहयोग करेंगे. 

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लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के विशेषज्ञ सयानांशु मोदक का कहना है कि ब्रह्मपुत्र का ज्यादातर पानी मानसून बारिश से आता है, न कि तिब्बत से. इसलिए डैम का प्रभाव शायद उतना बड़ा न हो, जितना डर है.

क्या है ग्रेट बेंड और क्यों है खास?

ग्रेट बेंड वो जगह है जहां यारलुंग ज़ांगबो नदी नमचा बरवा पर्वत के पास यू-टर्न लेती है. ये दुनिया का सबसे गहरा और लंबा कैन्यन (यारलुंग ज़ांगबो ग्रैंड कैन्यन) है, जो 5000 मीटर गहरा है. इस इलाके में नदी का तेज़ ढलान (2,000 मीटर की गिरावट) इसे हाइड्रोपावर के लिए आदर्श बनाता है.

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  • चीन इस जगह पर 4-6 सुरंगें (20 किमी लंबी) खोदकर नदी का आधा पानी मोड़ेगा.
  • ये प्रोजेक्ट 60 गीगावाट बिजली पैदा करेगा, जो थ्री गॉर्जेस डैम (22.5 गीगावाट) से तीन गुना ज्यादा है.

लेकिन ये इलाका भूकंप और भूस्खलन के लिए संवेदनशील है. 1950 का मेदोग भूकंप (8.6 तीव्रता) यहीं हुआ था, जिसने असम और बांग्लादेश में भारी तबाही मचाई थी.

पर्यावरण और स्थानीय लोगों पर असर

पारिस्थितिकी को खतरा

  • यारलुंग ज़ांगबो ग्रैंड कैन्यन जैव-विविधता का खजाना है. यहां एशिया के सबसे ऊंचे और पुराने पेड़ और बड़े मांसाहारी जानवर (जैसे तेंदुआ, बाघ) पाए जाते हैं. डैम से ये नाज़ुक पारिस्थितिकी बिगड़ सकती है.
  • नदी की गाद रुकने से बांग्लादेश का डेल्टा क्षेत्र (दुनिया का सबसे बड़ा डेल्टा) कमज़ोर हो सकता है, जिससे समुद्र का स्तर बढ़ने का खतरा है.

स्थानीय तिब्बतियों का विस्थापन

  • डैम से तिब्बत के मेदोग काउंटी में कई लोग विस्थापित हो सकते हैं. लेकिन चीन ने अभी तक ये नहीं बताया कि कितने लोग प्रभावित होंगे.
  • तिब्बती समूहों और पर्यावरणविदों ने इस प्रोजेक्ट की आलोचना की है.

भूकंप का जोखिम

ये डैम टेक्टोनिक प्लेट्स की सीमा पर बन रहा है, जो दुनिया के सबसे भूकंप-संवेदनशील इलाकों में से एक है. 2025 में तिब्बत में आए भूकंप (126 लोगों की मौत) ने इस खतरे को और उजागर किया. अगर भूकंप से डैम टूटा, तो भारत और बांग्लादेश में भयानक बाढ़ आ सकती है.

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भारत और बांग्लादेश का जवाब

भारत का काउंटर डैम

भारत ने अरुणाचल प्रदेश में सियांग अपर मल्टीपर्पस प्रोजेक्ट (11.5 गीगावाट) की योजना बनाई है. इसका मकसद चीन के डैम से पानी की कमी को रोकना और जल सुरक्षा सुनिश्चित करना है. लेकिन इस प्रोजेक्ट को स्थानीय लोग और पर्यावरणविदों का विरोध झेलना पड़ रहा है, क्योंकि इससे अरुणाचल में जंगल और आदिवासी समुदाय प्रभावित होंगे. भारत का कहना है कि अगर वो ब्रह्मपुत्र के पानी का इस्तेमाल करता रहेगा, तो चीन इसे एकतरफा मोड़ नहीं सकता. 

बांग्लादेश की चिंता

बांग्लादेश के विशेषज्ञ, जैसे मलिक फिदा खान (CEGIS, ढाका) ने कहा कि डैम से पानी की कमी और गाद का रुकना बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचाएगा. बांग्लादेश ने चीन से डैम की जानकारी मांगी, लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला.

क्षेत्रीय सहयोग की कमी

चीन, भारत और बांग्लादेश के बीच कोई जल-बंटवारा समझौता नहीं है. UN वाटर कन्वेंशन 1997 को इनमें से किसी देश ने हस्ताक्षर नहीं किया, जिससे जल विवाद सुलझाना मुश्किल है. भारत और चीन के बीच 2006 से एक्सपर्ट लेवल मैकेनिज्म (ELM) है, जिसमें बाढ़ के मौसम में हाइड्रोलॉजिकल डेटा साझा किया जाता है. लेकिन ये पर्याप्त नहीं है.

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

सयानांशु मोदक (यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना) ने कहा कि डैम का प्रभाव शायद उतना बड़ा न हो, क्योंकि ब्रह्मपुत्र का ज्यादातर पानी मॉनसून से आता है. लेकिन चीन की पारदर्शिता की कमी डर पैदा कर रही है.

अशोक कंठा (पूर्व भारतीय राजदूत) कि ये डैम जोखिम भरा और गैर-जिम्मेदाराना है. भारत को अपनी चिंताओं को और ज़ोर से उठाना चाहिए. 

जेनेविव डोनेलन-मे (ऑक्सफोर्ड ग्लोबल सोसाइटी) ने कहा कि चीन का डैम भारत पर रणनीतिक दबाव डाल सकता है, क्योंकि वो पानी के बहाव को नियंत्रित कर सकता है.

शीख रोकन (रिवराइन पीपल, ढाका) कि चीन और भारत का ‘डैम फॉर डैम’ रेस बांग्लादेश को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगा.

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