पहाड़ों पर बसे हमारे शहरों पर क्यों बड़ा खतरा दिख रहा? सुप्रीम कोर्ट के सवालों में छुपी ये बड़ी वॉर्निंग

हिमाचल और अन्य पहाड़ी राज्य बाढ़-भूस्खलन से खतरे में हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अनियोजित निर्माण और जंगल कटाई से हिमाचल नक्शे से गायब हो सकता है. 2025 में जुलाई में 170 लोग मरे, ग्लेशियर पिघल रहे हैं. सरकार को प्लान बनाना होगा, हमें प्रकृति बचानी होगी. समय रहते जागरूकता जरूरी है.

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हिमाचल प्रदेश के मंडी में बादल फटने के बाद थुनाग घाटी में सड़कें बह गई. हिमाचल प्रदेश के मंडी में बादल फटने के बाद थुनाग घाटी में सड़कें बह गई.

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 04 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 12:58 PM IST

भारत के पहाड़ी राज्य, खासकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर जैसे हिमालयी इलाके, इन दिनों प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहे हैं. बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा ही चलता रहा, तो हिमाचल प्रदेश देश के नक्शे से गायब हो सकता है.

आइए, समझते हैं कि यह सब क्यों हो रहा है? आपदाओं का हाल क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने क्यों चिंता जताई? 

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हाल की प्राकृतिक आपदाएं हिमालयी राज्यों में

हिमालयी राज्य पिछले कुछ सालों से प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे हैं. आइए, हाल के उदाहरण देखते हैं...

  • हिमाचल प्रदेश (2025): इस साल मॉनसून में भारी बारिश और बादल फटने से बाढ़ और भूस्खलन आए. जुलाई में 170 से ज्यादा लोग मारे गए. 1,59,981 लाख रुपये का नुकसान हुआ. सड़कें, घर और पुल बह गए. खासकर कुल्लू और मंडी जैसे इलाकों में तबाही हुई.
  • उत्तराखंड (2021-2023): 2021 में नैनीताल में बादल फटने से भयानक बाढ़ आई, जिसमें सैकड़ों लोग मरे. 2023 में भी बारिश से भूस्खलन हुआ, जिसने गांवों को नुकसान पहुंचाया.
  • जम्मू-कश्मीर (2023): जम्मू में भारी बारिश से सड़कें बंद हुईं और कई घर ढह गए. ग्लेशियर पिघलने से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है.
  • हिमाचल में ग्लेशियर: लाहौल-स्पीति का बड़ा शिग्री ग्लेशियर पिछले कुछ सालों में 2-2.5 किलोमीटर सिकुड़ गया है, जो पानी की कमी और बाढ़ दोनों का कारण बन रहा है.

इन आपदाओं से साफ है कि हिमालयी इलाकों में हालात बिगड़ रहे हैं.

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सुप्रीम कोर्ट ने क्यों चिंता जताई?

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश की हालत पर गहरी चिंता जताई. एक केस की सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने कहा कि अगर इंसानों की गलतियां और विकास की अंधी दौड़ जारी रही, तो हिमाचल नक्शे से गायब हो सकता है. आइए, समझते हैं कोर्ट ने क्या कहा...

  • इंसानों की गलती: कोर्ट ने कहा कि बाढ़ और भूस्खलन सिर्फ प्रकृति की वजह से नहीं, बल्कि इंसानों की गलतियों से हो रहे हैं. सड़कों का चौड़ीकरण, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स, जंगलों की कटाई और बिना प्लानिंग के निर्माण इसके बड़े कारण हैं.
  • प्रकृति नाराज: जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि प्रकृति हिमाचल में हो रही गतिविधियों से नाराज है. इस साल सैकड़ों लोग बाढ़ और भूस्खलन में मरे और हजारों संपत्तियां बर्बाद हुईं.
  • गलत विकास: कोर्ट ने हाइड्रो प्रोजेक्ट्स, टनल बनाना और चार लेन सड़कों के लिए पहाड़ों को काटने पर सवाल उठाया. इससे पहाड़ कमजोर हो रहे हैं. बाढ़-भूस्खलन बढ़ रहे हैं.
  • ग्लोबल वार्मिंग: तापमान बढ़ने, ग्लेशियर पिघलने और बारिश के अनियमित पैटर्न से खतरा और गहरा हो रहा है. इससे खेती, पानी और जैव विविधता पर असर पड़ रहा है.
  • सुधार की जरूरत: कोर्ट ने कहा कि राजस्व कमाने की होड़ में पर्यावरण को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. हिमाचल की खूबसूरती को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने चाहिए.

कोर्ट ने एक होटल कंपनी के केस को खारिज करते हुए इसे जनहित याचिका (PIL) बनाया. हिमाचल सरकार से चार हफ्ते में एक्शन प्लान मांगा.

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पहाड़ी राज्यों को खतरा क्यों बढ़ रहा है?

हिमालयी राज्य अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर हैं, लेकिन इंसानी गलतियां इनको तबाह कर रही हैं...

  • जंगल कटाई: 66% से ज्यादा जमीन जंगल होने के बावजूद कटाई से मिट्टी ढीली हो रही है.
  • हाइड्रो प्रोजेक्ट्स: ब्यास, सतलज और चिनाब नदियों पर बांध बनाने से पहाड़ों में दरारें पड़ रही हैं.
  • पर्यटन का दबाव: चार लेन सड़कें और होटल बनाने से पहाड़ कमजोर हो रहे हैं.
  • क्लाइमेट चेंज: गर्मी बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. बारिश अनियमित हो रही है.
  • अनियोजित निर्माण: बिना सोचे-समझे इमारतें और सड़कें बनने से भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है.

इन सबके चलते हिमाचल, उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी राज्य खतरे में हैं.

सरकार और लोग क्या कर सकते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल और केंद्र सरकार को जिम्मेदारी दी है. साथ ही, कुछ कदम सुझाए गए हैं...

  • प्लानिंग: विकास से पहले भूविज्ञानियों और स्थानीय लोगों से सलाह लें.
  • जंगल बचाओ: पेड़ों की कटाई रोकें और नए पौधे लगाएं.
  • पर्यटन नियंत्रण: ओवर टूरिज्म को रोकने के लिए नियम बनाएं.
  • हाइड्रो प्रोजेक्ट्स: पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे, इसका ध्यान रखें.
  • हिमालयी राज्यों का सहयोग: सभी पहाड़ी राज्य मिलकर संसाधन और विशेषज्ञों की मदद से प्लान बनाएं.
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