लाल किले की दीवारें काली क्यों हो रही हैं? जहरीली हवा है कारण, नई स्टडी से हुआ खुलासा

दिल्ली के लाल किले की दीवारें जहरीली हवा से काली हो रही हैं. नई स्टडी बताती है कि PM2.5, NO2 और SO2 जैसे प्रदूषक सैंडस्टोन पर काली परत बनाते हैं. यह सल्फेशन और भारी धातुओं से होता है. प्रदूषण कम करने, नियमित सफाई और ग्रीन बेल्ट से इस धरोहर को बचाया जा सकता है.

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लाल किला की दीवारें काली पड़ती जा रही है, वजह हैं वायु प्रदूषण. (Photo: Pexel) लाल किला की दीवारें काली पड़ती जा रही है, वजह हैं वायु प्रदूषण. (Photo: Pexel)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 16 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:01 PM IST

दिल्ली का लाल किला जो मुगल साम्राज्य का प्रतीक और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, आजकल अपनी लाल दीवारों की बजाय काली पड़ती सतहों के लिए चर्चा में है. 15 सितंबर 2025 को जारी एक नई स्टडी ने खुलासा किया है कि दिल्ली की जहरीली हवा ही इसका मुख्य कारण है.

यह स्टडी 'कैरेक्टराइजेशन ऑफ रेड सैंडस्टोन एंड ब्लैक क्रस्ट टू एनालाइज एयर पॉल्यूशन इम्पैक्ट्स ऑन अ कल्चरल हेरिटेज बिल्डिंग: रेड फोर्ट, दिल्ली, इंडिया' नाम से है. यह पहली वैज्ञानिक जांच है, जो हवा के प्रदूषण से इस स्मारक को हो रही क्षति पर फोकस करती है. 

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लाल किले का इतिहास और वर्तमान समस्या

लाल किला 1639 में शाहजहां ने बनवाना शुरू किया था, जो 1648 में पूरा हुआ. इसका नाम लाल विंध्यन बलुआ पत्थर (रेड सैंडस्टोन) से आया है, जो इसकी विशाल दीवारों (20-23 मीटर ऊंची और 14 मीटर मोटी) और महलों का आधार है. यह 1 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है. 2.4 किलोमीटर की दीवारों से घिरा है. 2007 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित किया.

लेकिन आज इसकी दीवारों पर काली परतें (ब्लैक क्रस्ट) बन रही हैं. ये क्रस्ट आश्रय वाले क्षेत्रों में 0.05 mm पतली और ट्रैफिक वाले इलाकों में 0.5 mm मोटी हैं. इससे किले की सौंदर्य और संरचनात्मक अखंडता खतरे में है. 2018 में पुरातत्व सर्वेक्षण ऑफ इंडिया (ASI) ने 2 मीटर मोटी गंदगी की परत हटाई थी, लेकिन प्रदूषण से समस्या बढ़ रही है.

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नई स्टडी क्या कहती है?

यह स्टडी भारत के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और इटली के विदेश मंत्रालय के सहयोग से बनी है. इसमें आईआईटी रुड़की, आईआईटी कानपुर, फोस्कारी यूनिवर्सिटी (वेनिस) और ASI के वैज्ञानिक शामिल थे. शोधकर्ताओं ने किले के विभिन्न हिस्सों (जैसे जफर महल) से रेड सैंडस्टोन और ब्लैक क्रस्ट के सैंपल लिए. इनका लैब टेस्ट किया गया. सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के 2021-2023 के एयर क्वालिटी डेटा से जोड़ा गया.

निष्कर्ष: दिल्ली में PM2.5, PM10 और NO2 का स्तर राष्ट्रीय मानकों (NAAQS) से 2.5 गुना ज्यादा है. इससे किले की दीवारों पर काली क्रस्ट बन रही हैं. स्टडी के मुख्य लेखक गौरव कुमार ने कहा कि यह प्रदूषण से सांस्कृतिक धरोहरों को हो रही क्षति का पहला वैज्ञानिक अध्ययन है. जून 2025 में 'हैरिटेज' जर्नल में प्रकाशित यह स्टडी शहरी प्रदूषण के प्रभाव को उजागर करती है.

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हवा का प्रदूषण कैसे दीवारों को काला कर रहा है?

लाल किले की दीवारें रेड सैंडस्टोन से बनी हैं, जो मुख्य रूप से सिलिका (क्वार्ट्ज) और आयरन ऑक्साइड से बनी होती हैं. आयरन ऑक्साइड ही इसे लाल रंग देता है. लेकिन दिल्ली की जहरीली हवा इस पत्थर को नुकसान पहुंचा रही है. आइए, सरल भाषा में वैज्ञानिक प्रक्रिया समझते हैं...

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प्रदूषकों का जमाव (डिपॉजिशन): हवा में मौजूद कण (PM2.5 और PM10) और गैसें (SO2, NO2, ओजोन) दीवारों पर जम जाती हैं. दिल्ली में ट्रैफिक उत्सर्जन, निर्माण धूल, सीमेंट फैक्टरियों और औद्योगिक प्रदूषण से ये कण आते हैं. CPCB डेटा के अनुसार, 2021-2023 में किले के आसपास PM2.5 का स्तर 100 माइक्रोग्राम/घन मीटर से ज्यादा रहा, जो सुरक्षित सीमा (60 माइक्रोग्राम) से दोगुना है.

रासायनिक प्रतिक्रिया (केमिकल रिएक्शन): हवा का प्रदूषण सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOx) सल्फ्यूरिक एसिड (H2SO4) और नाइट्रिक एसिड (HNO3) बनाता है. ये एसिड रेन के रूप में या सूखे कणों के साथ पत्थर पर गिरते हैं. सैंडस्टोन में कैल्शियम कार्बोनेट (CaCO3) होता है, जो एसिड से प्रतिक्रिया कर कैल्शियम सल्फेट (gypsum या CaSO4) बनाता है. यह प्रक्रिया 'सल्फेशन' कहलाती है.जिप्सम सफेद होता है, लेकिन प्रदूषण कणों के साथ मिलकर काली क्रस्ट बन जाता है.

भारी धातुओं का प्रभाव: स्टडी में पाया गया कि ब्लैक क्रस्ट में टाइटेनियम, निकल, कॉपर, जिंक, बेरियम और लेड जैसे भारी धातुएं बहुत ज्यादा मात्रा में हैं. ये निर्माण गतिविधियों, सड़क धूल और फैक्ट्री उत्सर्जन से आती हैं. ये धातुएं पत्थर की सतह पर जमकर काली परत बनाती हैं. दीवारों को कमजोर करती हैं. उदाहरण के लिए, लेड और कॉपर ऑक्सीडेशन से काली चमक पैदा करते हैं.

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क्षरण और ब्लिस्टरिंग (Erosion and Blistering): एसिड रेन पत्थर को घोल देता है, जिससे दीवारों पर छाले (blistering) पड़ जाते हैं. इससे नक्काशीदार डिजाइन (carvings) का विवरण खो जाता है. ट्रैफिक वाले इलाकों में क्रस्ट मोटी हो रही है, जो संरचना को अस्थिर कर सकती है. यह प्रक्रिया धीमी लेकिन प्रगतिशील है- शुरू में पतली परत, जो हटाई जा सकती है, लेकिन बाद में पत्थर को नुकसान पहुंचाती है.

दिल्ली की हवा का रोल: दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में है. सर्दियों में स्मॉग (धुंध) से PM स्तर 10 गुना बढ़ जाता है. किले के आसपास चांदनी चौक और पुरानी दिल्ली में ट्रैफिक और निर्माण से प्रदूषण ज्यादा है. स्टडी ने CPCB के डेटा से जोड़ा कि 2021-2023 में NO2 और PM स्तर मानकों से ज्यादा रहे, जो जिप्सम क्रस्ट का मुख्य कारण हैं.

सांस्कृतिक धरोहर पर खतरा

  • सौंदर्य हानि: लाल रंग काला हो रहा है, जो किले की पहचान है. नक्काशी मिट रहा है.
  • संरचनात्मक क्षति: क्रस्ट दीवारों को कमजोर कर रही है, जिससे गिरने का खतरा बढ़ सकता है. ASI को लगातार सफाई करनी पड़ रही है.
  • पर्यावरणीय चेतावनी: यह स्टडी दिखाती है कि प्रदूषण सिर्फ स्वास्थ्य को नहीं, बल्कि इतिहास को भी नष्ट कर रहा है. दिल्ली में 2024-25 में AQI औसतन 300 से ऊपर रहा.
  • पर्यटकों पर असर: किले पर लाखों पर्यटक आते हैं, लेकिन प्रदूषण से स्वास्थ्य जोखिम बढ़ा.

क्या किया जा सकता है?

स्टडी सुझाव देती है कि प्रदूषण कम करने से क्रस्ट को रोका जा सकता है. शुरुआती परतें आसानी से हटाई जा सकती हैं.

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  • प्रदूषण नियंत्रण: वाहनों पर सख्त नियम, निर्माण धूल रोकना और फैक्टरियों पर फिल्टर लगाना.
  • रखरखाव: ASI को नियमित सफाई और कोटिंग्स (जैसे सिलिकॉन-बेस्ड प्रोटेक्टिव लेयर) लगानी चाहिए.
  • नीतिगत कदम: CPCB को हेरिटेज साइट्स के आसपास मॉनिटरिंग बढ़ानी चाहिए. ग्रीन बेल्ट (पेड़ लगाना) से हवा साफ होगी.
  • जागरूकता: जनता को प्रदूषण कम करने के लिए कार शेयरिंग और इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने चाहिए.

इतिहास को बचाने की जिम्मेदारी

लाल किले की काली दीवारें दिल्ली की जहरीली हवा का दर्पण हैं. यह स्टडी चेतावनी देती है कि अगर प्रदूषण नहीं रोका गया, तो हमारी धरोहरें खो सकती हैं. सरकार, वैज्ञानिकों और नागरिकों को मिलकर काम करना होगा. 

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