8.8 भूकंप अगर मैदानी इलाकों में आए तो क्या होगा इम्पैक्ट... कितनी होगी तबाही?

8.8 तीव्रता का भूकंप किसी मैदानी शहर में भयानक तबाही मचा सकता है. पुराने भूकंप, जैसे 2010 का चिली भूकंप या 2004 का हिंद महासागर भूकंप, हमें दिखाते हैं कि ऐसी आपदा इमारतों, जान-माल और अर्थव्यवस्था को पूरी तरह तबाह कर सकती है. भारत के मैदानी इलाकों में नरम मिट्टी और घनी आबादी इस खतरे को और बढ़ा देती है.

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2011 में जापान में आए भूकंप की वजह से पैदा हुई सुनामी लहरें. (File Photo: AFP) 2011 में जापान में आए भूकंप की वजह से पैदा हुई सुनामी लहरें. (File Photo: AFP)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 30 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 10:46 AM IST

भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जो पल भर में सब कुछ बदल सकता है. अगर 8.8 तीव्रता का भूकंप किसी मैदानी शहर में आता है, तो यह बहुत भयानक तबाही मचा सकता है. इस लेख में हम समझेंगे कि इतनी तीव्रता का भूकंप क्या कर सकता है? इसे समझाने के लिए कुछ पुराने भूकंपों के उदाहरण भी देखेंगे.  

8.8 तीव्रता का भूकंप कितना खतरनाक होता है?

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भूकंप की तीव्रता को रिक्टर स्केल या मोमेंट मैग्नीट्यूड स्केल (Mw) पर मापा जाता है. 8.8 तीव्रता का भूकंप "ग्रेट अर्थक्वेक" की श्रेणी में आता है. इसका मतलब है कि यह बहुत ही शक्तिशाली और विनाशकारी होता है. रिक्टर स्केल पर हर एक अंक की बढ़ोतरी से भूकंप की ऊर्जा लगभग 31.6 गुना बढ़ जाती है. एक 8.8 तीव्रता का भूकंप 7.8 तीव्रता के भूकंप से कई गुना ज्यादा ताकतवर होता है.

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मैदानी इलाकों में भूकंप का प्रभाव कई चीजों पर निर्भर करता है...

  • मिट्टी की प्रकृति: मैदानी क्षेत्रों में अक्सर मिट्टी नरम और ढीली होती है, जैसे कि जलोढ़ मिट्टी (एल्यूवियल सॉइल). ऐसी मिट्टी में भूकंपीय तरंगें ज्यादा तेजी से फैलती हैं. नुकसान ज्यादा होता है.
  • शहर की आबादी: अगर शहर घनी आबादी वाला है, तो नुकसान और हताहतों की संख्या ज्यादा होगी.
  • इमारतों की बनावट: अगर इमारतें भूकंप-रोधी नहीं हैं, तो वे आसानी से ढह सकती हैं.
  • भूकंप की गहराई: अगर भूकंप का केंद्र (हाइपोसेंटर) जमीन के करीब है, तो नुकसान ज्यादा होता है.
  • सुनामी का खतरा: अगर शहर समुद्र के पास है, तो भूकंप के बाद सुनामी भी आ सकती है, जिससे तबाही और बढ़ जाती है.

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8.8 तीव्रता के भूकंप से होने वाली तबाही

इमारतों का ढहना: 8.8 तीव्रता का भूकंप इतना शक्तिशाली होता है कि यह पुरानी, कमजोर और गैर-भूकंप रोधी इमारतों को पूरी तरह से नष्ट कर सकता है. नई इमारतें भी, अगर भूकंप-रोधी मानकों के हिसाब से नहीं बनी हैं, तो बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं. सड़कें, पुल और बिजली के खंभे टूट सकते हैं.

जान-माल का नुकसान: घनी आबादी वाले मैदानी शहर में हजारों लोगों की जान जा सकती है. उदाहरण के लिए, 2010 में हैती में 7.0 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसमें लगभग 3 लाख लोग मारे गए थे, क्योंकि शहर घनी आबादी वाला था और इमारतें कमजोर थीं. 8.8 तीव्रता का भूकंप इससे कहीं ज्यादा नुकसान करेगा.

भूस्खलन और जमीन का फटना: मैदानी इलाकों में भूस्खलन कम हो सकता है, लेकिन अगर मिट्टी नरम है, तो "लिक्विफेक्शन" (जमीन का तरल की तरह बहना) हो सकता है. इससे इमारतें और सड़कें धंस सकती हैं.

सुनामी का खतरा: अगर मैदानी शहर समुद्र के करीब है, तो भूकंप के बाद सुनामी की लहरें तटीय इलाकों को तबाह कर सकती हैं.

आर्थिक नुकसान: बुनियादी ढांचे जैसे अस्पताल, स्कूल और कारखानों के नष्ट होने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होता है. उदाहरण के लिए, 2011 में जापान के तोहोकु भूकंप (9.0 तीव्रता) ने लगभग 360 बिलियन डॉलर का नुकसान किया था.

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पुराने भूकंपों के उदाहरण

आइए कुछ पुराने भूकंपों के उदाहरण देखें, जो 8.8 तीव्रता के आसपास थे, ताकि यह समझ सकें कि मैदानी शहर में ऐसा भूकंप कितना नुकसान कर सकता है...

2010 चिली भूकंप (8.8 तीव्रता)  

कहां हुआ: यह भूकंप चिली के मध्य क्षेत्र में आया, जहां कई मैदानी और तटीय इलाके थे. इसका केंद्र समुद्र में था, लेकिन यह जमीन से ज्यादा गहरा नहीं था (लगभग 35 किमी).

नुकसान: इस भूकंप ने सैकड़ों इमारतों को नष्ट किया और करीब 525 लोगों की जान ली. सुनामी की लहरों ने तटीय इलाकों में भारी तबाही मचाई. चिली में भूकंप-रोधी इमारतें होने के बावजूद, पुरानी इमारतें और बुनियादी ढांचा बुरी तरह प्रभावित हुआ. अगर यह भूकंप किसी कम तैयार शहर में आता, तो नुकसान और ज्यादा होता.

मैदानी शहर के लिए सबक: चिली के मैदानी इलाकों में नरम मिट्टी ने भूकंपीय तरंगों को बढ़ाया, जिससे नुकसान ज्यादा हुआ. अगर ऐसा भूकंप भारत के किसी मैदानी शहर (जैसे पटना या लखनऊ) में आता, जहां पुरानी इमारतें ज्यादा हैं, तो तबाही बहुत ज्यादा होती.

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1960 चिली भूकंप (9.5 तीव्रता)

कहां हुआ: यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली दर्ज किया गया भूकंप था, जो चिली के वाल्डिविया में आया. यह मैदानी और तटीय क्षेत्रों में हुआ.

नुकसान: इस भूकंप ने हजारों इमारतों को नष्ट किया और लगभग 1,655 लोग मारे गए. सुनामी की लहरें 25 मीटर तक ऊंची थीं, जो हवाई और जापान तक पहुंचीं. भूस्खलन और लिक्विफेक्शन ने भी नुकसान बढ़ाया.

मैदानी शहर के लिए सबक: इस भूकंप ने दिखाया कि मैदानी इलाकों में नरम मिट्टी और पानी के पास होने से नुकसान कई गुना बढ़ जाता है. अगर भारत के गंगा के मैदानी इलाकों में ऐसा भूकंप आता, तो नरम मिट्टी की वजह से लिक्विफेक्शन का खतरा बहुत ज्यादा होता.

2004 हिंद महासागर भूकंप (9.1-9.3 तीव्रता)

कहां हुआ: यह भूकंप इंडोनेशिया के सुमात्रा के पास समुद्र में आया, लेकिन इसका असर भारत के तटीय मैदानी इलाकों, जैसे अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और तमिलनाडु पर पड़ा.

नुकसान: भूकंप और इसके बाद आई सुनामी ने लगभग 2.3 लाख लोगों की जान ली. भारत में करीब 12,405 लोग मारे गए. तटीय गांव और शहर पूरी तरह तबाह हो गए.

मैदानी शहर के लिए सबक: अगर ऐसा भूकंप किसी मैदानी शहर में आता, तो सुनामी का खतरा तो कम होता, लेकिन घनी आबादी और कमजोर इमारतों की वजह से हताहतों की संख्या बहुत ज्यादा होती.

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2011 तोहोकु भूकंप, जापान (9.0 तीव्रता)

कहां हुआ: यह भूकंप जापान के उत्तर-पूर्वी तट पर आया, जो मैदानी और तटीय इलाकों के पास था.

नुकसान: भूकंप और सुनामी ने लगभग 28,000 लोगों की जान ली और 360 बिलियन डॉलर का नुकसान किया. फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में रिसाव हुआ, जिसने स्थिति को और खराब किया.

मैदानी शहर के लिए सबक: जापान जैसे विकसित देश में, जहां भूकंप-रोधी इमारतें थीं, फिर भी इतना नुकसान हुआ. भारत के मैदानी शहरों में, जहां ज्यादातर इमारतें पुरानी और कमजोर हैं, नुकसान इससे भी ज्यादा हो सकता है.

भारत के मैदानी शहरों में क्या हो सकता है?

भारत के गंगा के मैदान, जैसे पटना, लखनऊ या दिल्ली में 8.8 तीव्रता का भूकंप बहुत विनाशकारी हो सकता है. ये इलाके घनी आबादी वाले हैं और मिट्टी ज्यादातर नरम जलोढ़ है, जो भूकंपीय तरंगों को बढ़ा देती है.

इमारतें: पुरानी इमारतें, खासकर वे जो भूकंप-रोधी नहीं हैं, पूरी तरह ढह सकती हैं. नए अपार्टमेंट और मॉल भी, अगर सही डिजाइन के नहीं हैं, तो खतरे में होंगे.

बुनियादी ढांचा: सड़कें, रेलवे, और बिजली लाइनें टूट सकती हैं. अस्पताल और स्कूल जैसी जरूरी इमारतें भी प्रभावित हो सकती हैं, जिससे बचाव कार्य मुश्किल हो जाएगा.

लिक्विफेक्शन: गंगा के मैदानों में नदियों के पास नरम मिट्टी की वजह से लिक्विफेक्शन का खतरा है. इससे इमारतें और सड़कें धंस सकती हैं.

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आर्थिक नुकसान: भारत जैसे विकासशील देश में, जहां पुनर्निर्माण में समय और पैसा दोनों लगता है, आर्थिक नुकसान बहुत ज्यादा होगा.

क्या बचाव संभव है?

8.8 तीव्रता के भूकंप से पूरी तरह बचना मुश्किल है, लेकिन कुछ उपाय नुकसान को कम कर सकते हैं...

  • भूकंप-रोधी इमारतें: इमारतों को मजबूत और लचीले डिजाइन के साथ बनाना चाहिए. जापान और चिली जैसे देशों में यह तरीका अपनाया जाता है.
  • जागरूकता और तैयारी: लोगों को भूकंप के दौरान क्या करना चाहिए, जैसे खुले मैदान में जाना या मेज के नीचे छिपना, इसके बारे में जागरूक करना जरूरी है.
  • आपदा प्रबंधन: नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (NDMA) जैसी संस्थाएं बचाव और पुनर्वास के लिए तैयार रहें.
  • शहरी नियोजन: घनी आबादी वाले इलाकों में इमारतों की ऊंचाई और डिजाइन पर सख्त नियम होने चाहिए.
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