पश्चिमी विक्षोभ एक ऐसी हवा की प्रणाली है, जो सर्दियों में उत्तरी भारत में बर्फ और बारिश लाती है. यह हिंदूकुश और हिमालय पर्वत के पश्चिम से शुरू होकर, कभी-कभी भूमध्य सागर से भी आती है. यह नदियों में पानी और फसलों के लिए जरूरी है. लेकिन अब एक नई स्टडी बताती है कि यह गर्मियों में भी बढ़ रहा है, जो चिंता का विषय बन गया है.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है?
पश्चिमी विक्षोभ एक हवा की लहर है जो पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है. यह दिसंबर से मार्च के बीच उत्तरी भारत, खासकर हिमालयी राज्यों जैसे हिमाचल, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में बर्फ और बारिश लाती है. यह हवाएं अरब सागर से नमी लेती हैं. पहाड़ों से टकराकर बारिश बनाती हैं. यह बर्फ गर्मियों में पिघलकर इंडस-गंगा नदी में पानी देती है, जो करीब 50 करोड़ लोगों के लिए सिंचाई, बिजली और घरेलू इस्तेमाल के लिए महत्वपूर्ण है.
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जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक ए.पी. डिमरी कहते हैं कि सर्दियों की बारिश हिमालयी राज्यों के लिए जिंदगी का आधार है, क्योंकि यह वसंत ऋतु में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करती है.
बदलाव की नई स्टडी
'वेदर एंड क्लाइमेट डायनेमिक्स' जर्नल में प्रकाशित एक नई स्टडी के मुताबिक, पिछले 20 सालों में जून में पश्चिमी विक्षोभ दोगुनी बार आए हैं, जबकि पिछले 50 सालों में यह बहुत कम होता था. पहले यह दिसंबर से मार्च तक सीमित था, लेकिन अब यह मई, जून और जुलाई तक फैल गया है. यह बदलाव गर्मियों के मॉनसून के साथ मिलकर बाढ़ का कारण बन रहा है.
असर क्या है?
बदलाव का कारण क्या है?
जलवायु परिवर्तन
ध्रुवीय क्षेत्र गर्म हो रहे हैं, जिससे उत्तरी और दक्षिणी क्षेत्रों के बीच तापमान का अंतर कम हो गया है. इससे उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम (हवा की तेज धारा) कमजोर हुई है, जो पश्चिमी विक्षोभ को लंबे समय तक भारत में रखती है. यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के मौसम विज्ञानी कीरन हंट कहते हैं कि सर्दियों में हवा सूखी होती है, इसलिए बाढ़ नहीं होती, लेकिन गर्मियों में मानसून के साथ मिलकर यह खतरनाक हो जाता है.
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स्थानीय कारक
भविष्य के लिए क्या करें?
ऋचीक मिश्रा