बाढ़ के पानी से लबालब गुरुग्राम-दिल्ली जैसे शहरों को चंद मिनटों में सुखा देगा ये जापानी सिस्टम...

जापान का G-CANS अंडरग्राउंड सिस्टम बाढ़ से बचाव का शानदार मॉडल है. 5 विशाल साइलो अतिरिक्त पानी इकट्ठा करते हैं. सुरंगें 6.3 किमी ले जाती हैं. स्टोरेज टैंक में रखा जाता है. फिर 78 पंप नदी में निकाल दिया जाता है. 50 मीटर गहरा, 67 हजार क्यूबिक मीटर क्षमता है. भारत के शहरों के लिए उपयोगी, लेकिन महंगा प्रोजेक्ट है.

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ये है जापान के G-CANS टनलिंग सिस्टम का अंडरग्राउंड डिस्चार्ज टनल. जब भी नदी उफनती है पानी इसमें आता है शहर में नहीं. (File Photo: Reuters) ये है जापान के G-CANS टनलिंग सिस्टम का अंडरग्राउंड डिस्चार्ज टनल. जब भी नदी उफनती है पानी इसमें आता है शहर में नहीं. (File Photo: Reuters)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST

जापान का G-CANS (मेट्रोपॉलिटन एरिया आउटर अंडरग्राउंड डिस्चार्ज चैनल) दुनिया का सबसे बड़ा अंडरग्राउंड बाढ़ नियंत्रण सिस्टम है. यह टोक्यो को भारी बारिश और तूफान से बचाता है. क्या यह भारत जैसे देशों के लिए अच्छा मॉडल हो सकता है? हां, लेकिन इसकी लागत और निर्माण की चुनौतियां बड़ी हैं. 

G-CANS क्या है?

G-CANS 1992 से 2006 तक बनाया गया. इसकी लागत 2.6 बिलियन डॉलर (लगभग 21,000 करोड़ रुपये) आई. यह सैतामा प्रान्त के कासुकाबे में स्थित है, जो टोक्यो के पास है. यह 6.3 km लंबी सुरंगों का नेटवर्क है, जो 50 मीटर गहराई में है. 

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इसका उद्देश्य टोक्यो के नदियों (जैसे एडोगावा नदी) से अतिरिक्त पानी को इकट्ठा करके शहर को डुबोने से बचाना है. यह 200 साल में एक बार आने वाली बाढ़ को संभाल सकता है. अब तक 200 से ज्यादा बार इस्तेमाल हो चुका है, जिससे 430 मिलियन डॉलर का नुकसान बचा. यह टोक्यो के 1 करोड़ लोगों और 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को बचाता है.

G-CANS कैसे काम करता है?

G-CANS में 5 विशाल साइलो (कुएं), सुरंगें, एक बड़ा स्टोरेज टैंक और पंप हैं. यह अंडरग्राउंड टेम्पल के नाम से मशहूर है. स्टेप बाय स्टेप समझें...

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पानी इकट्ठा करना (साइलो): शहर के आसपास की नदियों में बाढ़ आने पर अतिरिक्त पानी ओवरफ्लो चैनलों से 5 विशाल साइलो में जाता है. हर साइलो 65 मीटर ऊंचा और 32 मीटर चौड़ा है – इतना बड़ा कि स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी समा जाए. ये साइलो नदियों से जुड़े हैं. पानी को 50 मीटर नीचे सुरंगों में भेजते हैं. 

सुरंगों से ट्रांसपोर्ट: साइलो से पानी 6.3 किलोमीटर लंबी सुरंगों (10 मीटर व्यास वाली) से बहता है. ये सुरंगें 50 मीटर गहरी हैं. शहर के नीचे से गुजरती हैं. पानी गुरुत्वाकर्षण से तेजी से बहता है, बिना शहर को प्रभावित किए. 

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स्टोरेज टैंक (अंडरग्राउंड टेम्पल): सुरंगों से पानी एक विशाल केंद्रीय टैंक में पहुंचता है, जिसे अंडरग्राउंड टेम्पल कहते हैं. यह टैंक 25.4 मीटर ऊंचा, 177 मीटर लंबा और 78 मीटर चौड़ा है. इसमें 59 खंभे हैं, हर खंभा 500 टन का. यहां पानी अस्थायी रूप से रुकता है. दबाव नियंत्रित होता है. क्षमता 67,000 क्यूबिक मीटर पानी की है – जैसे एक ओलंपिक स्विमिंग पूल. 
 
पानी निकालना (पंप): बाढ़ कम होने पर 4 विशाल टर्बाइन (हर एक 14,000 हॉर्सपावर की, बोइंग 737 इंजन जितनी) चालू होती हैं. ये पंप 200 क्यूबिक मीटर (लगभग 53,000 गैलन) पानी प्रति सेकंड एडोगावा नदी में भेजते हैं, जो टोक्यो बे तक ले जाता है. कुल 78 पंप हैं, हर एक 10 MW की क्षमता वाला. एक 25 मीटर स्विमिंग पूल को 12 सेकंड में खाली कर सकते हैं.

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यह सिस्टम भूकंप प्रतिरोधी है, जो जापान के लिए जरूरी है.

क्या G-CANS बाढ़ बचाव के लिए अच्छा मॉडल है?

हां, G-CANS बाढ़ रोकने का शानदार मॉडल है. टोक्यो जैसे घनी आबादी वाले शहर में यह बिना सतह पर हस्तक्षेप के काम करता है. जलवायु परिवर्तन से बढ़ती बाढ़ के लिए यह प्रेरणा है. मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों में छोटे संस्करण बनाए जा सकते हैं. लेकिन चुनौतियां हैं...

  • लागत: 21,000 करोड़ रुपये – गरीब देशों के लिए मुश्किल.
  • निर्माण: भूगर्भीय स्थिरता और जगह की जरूरत. जापान जैसे भूकंप वाले क्षेत्र में आसान, लेकिन कहीं और कठिन.
  • रखरखाव: पंप और सुरंगों की सफाई महंगी.

भारत में जहां बाढ़ हर साल लाखों को प्रभावित करती है, G-CANS जैसा सिस्टम मुंबई या चेन्नई के लिए उपयोगी हो सकता है. लेकिन छोटे स्तर पर शुरू करें, जैसे सुरंगें और पंप स्टेशन.

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