भारत का देसी जीपीएस NavIC फेल होने की कगार पर... 11 में से सिर्फ 4 सैटेलाइट काम कर रही हैं

नाविक, जो भारत का गर्व था, आज फेल होने की कगार पर है. 11 में से सिर्फ 4 सैटेलाइट्स काम कर रहे. वो भी आंशिक रूप से. सरकार ने संसद में इसे माना, लेकिन अभी तक ठोस कदम नहीं उठे. 1999 के कारगिल सबक को याद करते हुए, हमें नाविक को बचाने की जरूरत है. वरना सुरक्षा और तकनीकी आत्मनिर्भरता पर असर पड़ेगा.

Advertisement
करगिल युद्ध के बाद देसी जीपीएस सैटेलाइट की जरूरत महसूस हुई थी. (Photo: ITG) करगिल युद्ध के बाद देसी जीपीएस सैटेलाइट की जरूरत महसूस हुई थी. (Photo: ITG)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 6:00 PM IST

भारत का स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम नाविक (NavIC), जो भारत का अपना जीपीएस (GPS) माना जाता था, आज मुश्किल में है. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) की ये मेहनत अब फेल होने की कगार पर पहुंच गया है.

11 सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए, लेकिन सिर्फ 4 ही काम कर रहे हैं. बाकी या तो खराब हो गए या पूरी तरह बंद हैं. सरकार ने संसद में और RTI (राइट टू इन्फॉर्मेशन) के जरिए इस बात को माना है. आइए, समझते हैं कि नाविक क्या है. क्यों फेल हो रहा है. इसका भारत पर क्या असर पड़ सकता है.

Advertisement

नाविक क्या है?

नाविक यानी नेविगेशन विद इंडियन कॉन्स्टेलेशन (NavIC) भारत का अपना रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम है, जो IRNSS (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) का हिस्सा है. इसे ISRO ने 2006 में शुरू किया था, ताकि भारत को विदेशी जीपीएस (जैसे अमेरिका का GPS) पर निर्भरता से आजादी मिले.

यह भी पढ़ें: ISRO's NVS-02 Mission: ऑर्बिट में फंसा इसरो का सैटेलाइट, प्रोपल्शन सिस्टम फेल

खासकर 1999 के कारगिल युद्ध में जब अमेरिका ने GPS डेटा देने से मना कर दिया था, तब इसकी जरूरत महसूस हुई. नाविक भारत और इसके आसपास 1500 किमी तक सटीक लोकेशन, नेविगेशन और टाइमिंग (PNT) सर्विस देता है. इसका मकसद था कि सिविलियन और सैन्य दोनों इस्तेमाल के लिए एक स्वदेशी सिस्टम हो.

  • सैटेलाइट्स: 11 सैटेलाइट्स लॉन्च किए गए (IRNSS-1A से 1K और NVS सीरीज).
  • कवरेज: भारत और आसपास 1500 किमी तक.
  • लॉन्च: 2013 से 2025 तक.
  • लागत: करीब 2250 करोड़ रुपये.

क्या हो गया नाविक को?

Advertisement

नाविक की शुरुआत शानदार रही, लेकिन अब हालत खराब है. 11 में से सिर्फ 4 सैटेलाइट्स ही PNT (पोजिशनिंग, नेविगेशन, टाइमिंग) सर्विस दे रहे हैं. बाकी 7 या तो पूरी तरह फेल हो गए या आंशिक रूप से काम कर रहे हैं. इसके पीछे की वजहें...

एटॉमिक क्लॉक फेल्योर

हर सैटेलाइट में 3 एटॉमिक क्लॉक होते हैं, जो समय को सटीक रखते हैं. कई सैटेलाइट्स (जैसे IRNSS-1A, 1C, 1D) में ये क्लॉक फेल हो गए. ये क्लॉक विदेश से आए थे. उनकी गुणवत्ता में दिक्कत आई.

यह भी पढ़ें: इसरो-नासा के NISAR को क्यों बताया जा रहा आसमानी 'सुपरहीरो'... धरती के हर बदलाव पर करेगा अलर्ट

लॉन्च फेल्योर

IRNSS-1H (2017) और NVS-02 (2025) लॉन्च के दौरान फेल हो गए. 1H का रॉकेट शील्ड नहीं खुला. NVS-02 का इंजन काम नहीं किया.

पुराने सैटेलाइट्स

  • IRNSS-1B अपनी 10 साल की उम्र पूरी कर चुका है. कभी भी बंद हो सकता है.  
  • IRNSS-1F में 2 में से 3 क्लॉक खराब हैं, जो इसे आंशिक रूप से कमजोर बनाता है.

तकनीकी दिक्कतें: NVS-02 का इंजन फेल होने से वो सही ऑर्बिट में नहीं पहुंचा, जिससे PNT सर्विस प्रभावित हुई.

हालत: अभी IRNSS-1B, 1F, 1I और NVS-01 (IRNSS-1J) ही पूरी तरह काम कर रहे हैं. बाकी सैटेलाइट्स या तो मैसेजिंग सर्विस (NMS) के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं या पूरी तरह बंद हैं.

Advertisement

यह भी पढ़ें: भारत बना रहा तीन छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर... सामने आया 60 महीने के प्लान का ब्लूप्रिंट

सरकार का जवाब

हाल ही में सरकार ने संसद में और RTI के जवाब में माना कि नाविक की हालत खराब है...

  • 4 सैटेलाइट्स काम कर रहे: IRNSS-1B, 1F, 1I और NVS-01.  
  • चिंता: 1B अपनी उम्र पूरी कर चुका. 1F में आंशिक खराबी है.  
  • प्लान: सरकार ने कहा कि NVS-03, NVS-04, और NVS-05 को 2026 तक लॉन्च किया जाएगा, लेकिन अभी तक स्पष्टता नहीं है कि ये कब तक काम शुरू करेंगे.

नाविक की अहमियत

नाविक का मकसद था कि भारत को विदेशी सिस्टम पर निर्भर न रहना पड़े, खासकर सैन्य इस्तेमाल में. इसके फायदे... 

  • सिविलियन यूज: मोबाइल, कार नेविगेशन और किसानों के लिए सटीक डेटा.
  • सैन्य यूज: मिसाइल गाइडेंस, जहाजों की नेविगेशन और युद्ध के दौरान लोकेशन.
  • आपदा प्रबंधन: बाढ़ या भूकंप में रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए.
  • अर्थव्यवस्था: Qualcomm जैसे कंपनियों ने नाविक को मोबाइल चिप्स में इस्तेमाल करने की तैयारी की थी.

क्या हो सकता है असर?

  • सुरक्षा जोखिम: अगर नाविक पूरी तरह फेल हो गया, तो सेना को फिर से GPS पर निर्भर होना पड़ेगा, जो जंग के वक्त खतरनाक हो सकता है.
  • आर्थिक नुकसान: 2250 करोड़ रुपये खर्च होने के बावजूद सिस्टम काम नहीं कर रहा, जो टैक्सपेयर्स के पैसे की बर्बादी दिखाता है.
  • विश्वसनीयता: ISRO की तकनीकी क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि लगातार सैटेलाइट फेल हो रहे हैं.
  • कमर्शियल यूज: मोबाइल और वाहन कंपनियां नाविक का इस्तेमाल करने से हिचकिचा सकती हैं, क्योंकि सिग्नल की सटीकता पर भरोसा नहीं रहा.

भविष्य का प्लान

Advertisement

ISRO ने नई NVS सीरीज (NVS-03, 04, 05) लॉन्च करने की बात कही है, जो 2026 तक आएंगे. इनमें...

  • नई तकनीक: स्वदेशी एटॉमिक क्लॉक और बेहतर इंजन.
  • L1 बैंड: मोबाइल और सिविलियन यूज के लिए.
  • सुरक्षा: सैन्य इस्तेमाल के लिए लंबा कोड सपोर्ट.

लेकिन सवाल ये है कि क्या ISRO अपनी लॉन्च रफ्तार और बजट को बढ़ा पाएगा? लोगों की मांग है कि सरकार को ISRO को और सपोर्ट करना चाहिए.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement