Pitru Paksha 2025: कब है मातृ नवमी? जानें किस दिन होगा दिवंगत माताओं का श्राद्ध

Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष 7 सितंबर 2025 से प्रारंभ हो चुका है और यह 17 सितंबर 2025 तक चलेगा. इस काल में केवल पितरों (पिता, दादा, परदादा आदि) का श्राद्ध किया जाता है. क्या आप जानते हैं कि श्राद्ध में मातृ नवमी कब पड़ती है और इस दिन किन दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है.

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पितृ पक्ष में मातृ नवमी के श्राद्ध विशेष महत्व बताया गया है. (Photo: ITG) पितृ पक्ष में मातृ नवमी के श्राद्ध विशेष महत्व बताया गया है. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 12 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:12 PM IST

Pitru Paksha 2025: पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व बताया गया है. पितृपक्ष के दौरान पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है. साथ ही, विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस दौरान किए गए श्राद्ध और धार्मिक अनुष्ठान से पितरों का आशीर्वाद मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. पितृपक्ष की नवमी तिथि पर मातृ नवमी का श्राद्ध किया जाता है. इस दिन परिवार की दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध करने की परंपरा है.

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हिंदू पंचाग के अनुसार, मातृ नवमी का श्राद्ध 15 सिंतबर दिन सोमवार को किया जाएगा. मातृ नवमी के दिन किसी पवित्र घाट पर जाकर दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध करना चाहिए. दाहिने हाथ में कुशा लेकर दिवंगत महिलाओं के नाम का तर्पण करें.

इसके बाद उन्हें पिंडदान अर्पित करें. श्राद्ध के खाने का एक हिस्सा कौवे, गाय या कुत्ते के लिए अलग से निकालकर रख दें. इसके बाद पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें और गरीब ब्राह्मण को सामर्थ्य के अनुसार दान-दक्षिणा दें.

मातृ नवमी 2025 का महत्व

पितृ पक्ष में नवमी तिथि को मातृ नवमी के रूप में जाना जाता है. इस दिन विशेष रूप से दिवंगत माताओं और परिवार की अन्य महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है. शास्त्रों में माना गया है कि यदि किसी महिला की मृत्यु किसी भी माह के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुई हो या फिर उनकी सही मृत्यु तिथि ज्ञात न हो, तो उनके श्राद्ध के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है.

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मातृ नवमी पर किए गए तर्पण और पिंडदान से मातृ आत्माओं की शांति होती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है. जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष की समस्या होती है, उन्हें इस दिन जरूर श्राद्ध करना चाहिए.

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