ममता बनर्जी ने प्रियंका गांधी को लोक सभा चुनाव 2024 लड़ने का सुझाव दिया है. ये आइडिया बुरा नहीं है, लेकिन ममता बनर्जी की मंशा पर कांग्रेस को संदेह जरूर हो सकता है. ये तो ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस के ट्रंप कार्ड पर ही ममता बनर्जी की नजर लग गई हो.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जिस सीट से प्रियंका गांधी को चुनाव मैदान में उतारने की सलाह दी है, वहां चुनाव लड़ना उनके लिए खतरनाक हो सकता है. विपक्षी गठबंधन INDIA की बैठक में ममता बनर्जी ने प्रियंका गांधी को वाराणसी सीट से चुनाव मैदान में उतारने की सलाह दी है. संसद में 2014 से वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करते हैं.
2019 में भी प्रियंका गांधी के प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की काफी चर्चा रही. चर्चा को हवा भी प्रियंका गांधी ने ही दी थी. कांग्रेस की एक मीटिंग में जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रियंका को चुनाव लड़ने की अपील की, और सीटों को लेकर सुझाव देने लगे तो प्रियंका ने बोल दिया कि बनारस से क्यों नहीं? बस चर्चा चल पड़ी. इंटरव्यू में प्रियंका गांधी से ये सवाल पूछा जाने लगा.
लेकिन प्रियंका गांधी ने भी चर्चा को मल्लिकार्जुन खड़गे की तरह खत्म नहीं होने दिया, जब तक संभव हुआ हवा देती रहीं. विपक्षी दलों की मीटिंग में ही ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने का सुझाव दिया है, लेकिन खुद खड़गे ने ही खारिज कर दिया है.
प्रधानमंत्री पद की दावेदारी ही तो विपक्षी एकजुटता की राह में फंसा हुआ सबसे बड़ा पेच है. कांग्रेस को राहुल गांधी के अलावा कोई और नाम स्वीकार ही नहीं हो सकता. कांग्रेस अगर ममता बनर्जी की सलाह मान ले, फिर तो राहुल गांधी रेस से अपनेआप बाहर हो जाएंगे. प्रधानमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम तो कांग्रेस नेता शशि थरूर भी ले चुके हैं, लेकिन वो राहुल गांधी के बाद दावेदार बताते हैं. राहुल गांधी की जगह हरगिज नहीं.
ममता बनर्जी ही नहीं, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नेता भी प्रियंका गांधी वाड्रा को 2024 में चुनाव लड़ाने का प्रस्ताव रख चुके हैं. और सिर्फ प्रियंका गांधी ही नहीं, राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे को भी यूपी के मैदान में उतारने की बात हो रही है - और उसके पीछे कांग्रेस की खास रणनीति है.
क्या गांधी परिवार से ममता बनर्जी बदला लेना चाहती हैं?
ऐसा लगता है जैसे ममता बनर्जी के मन में कांग्रेस को लेकर एक टीस जरूर है, और किसी न किसी रूप में निकल कर सामने आ रही है. 2021 का पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी कांग्रेस के बगैर विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन सोनिया गांधी ने ऐसी चाल चली कि ममता बनर्जी अकेले पड़ गईं और उनका मिशन अधूरा रह गया.
चुनावी जंग में बीजेपी को शिकस्त देने के बाद जोश से भरपूर ममता बनर्जी दिल्ली पहुंची थीं. कोलकाता से ही ममता बनर्जी ने विपक्षी नेताओं की बैठक बुलाने के लिए बोल दिया था. ये बात ममता बनर्जी ने एनसीपी नेता शरद पवार और कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम से कही थी. चुनावों में तो वो एक पैर से बंगाल और दो पैरों से दिल्ली जीत लेने का ऐलान पहले ही कर दिया था.
लेकिन दिल्ली पहुंचने पर शरद पवार ने ममता बनर्जी को मिलने का वक्त ही नहीं दिया, और लालू यादव के घर जाकर मिलते देखे गये. जब ममता बनर्जी मुंबई जाकर शरद पवार से मिलीं और विपक्षी दलों की ताबड़तोड़ बैठक होने लगी, तो सोनिया गांधी ने लालू यादव और शरद पवार की मदद से ही ममता बनर्जी के मिशन को बीच में भी ठप कर दिया था.
जहां तक प्रियंका गांधी वाड्रा के चुनाव क्षेत्र चुनने की बात है, उनके पास पहले से ही अमेठी और रायबरेली से चुनाव लड़ने का विकल्प मौजूद है. अगर सोनिया गांधी चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं, और राहुल गांधी अमेठी लौटने को तैयार नहीं होते. वैसे सोनिया गांधी के पास तेलंगाना से भी चुनाव लड़ने का ऑफर है. प्रियंका गांधी चाहें तो अपने ससुराल मुरादाबाद या गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले प्रयागराज या जवाहरलाल नेहरू की सीट फूलपुर से भी चुनाव लड़ने का विकल्प खुला है.
बड़ा सवाल ये है कि ममता बनर्जी के मन में कांग्रेस को लेकर चल क्या रहा है? आखिर क्यों वो ऐसे सुझाव दे रही हैं जिससे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों ही मुख्यधारा की राजनीति से बाहर हो जायें?
क्या ममता बनर्जी को लगता है कि उनके रास्ते में गांधी परिवार ही बाधा है. खड़गे के मामले में ममता को केजरीवाल का भी साथ मिला है. ऐसा क्यों लगता है जैसे विपक्षी खेमे में ममता बनर्जी या तो केजरीवाल के लिए बैटिंग कर रही हैं या बीजेपी के लिए.
क्या प्रियंका गांधी यूपी से लोक सभा चुनाव लड़ेंगी?
INDIA गुट की बैठक से ठीक एक दिन पहले दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में यूपी के नेताओं के साथ बैठक बुलाई थी. बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी मौजूद थीं. यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के अलावा भी सूबे से आने वाले कांग्रेस नेताओं ने भी बैठक में हिस्सा लिया.
नेताओं ने बताया कि सोनिया गांधी की रायबरेली सीट पर सभी चुनावी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं. अजय राय सहित सभी कांग्रेस नेताओं ने यूपी में चुनावी गठबंधन पर भी अपनी सलाह रखी, और ज्यादातर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के पक्ष में दिखे.
यूपी के नेताओं के जरिये एक बड़ा सुझाव ये भी आया कि राज्य की प्रथम वरीयता वाली 30 सीटों पर कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़ें. आशय ये है कि प्रियंका गांधी वाड्रा तो चुनाव लड़ें ही, सोनिया गांधी भी मैदान में डटी रहें और राहुल गांधी भी फिर से यूपी का रुख करें - और साथ में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी यूपी से ही चुनाव लड़ाया जाये.
कांग्रेस के बड़े नेताओं को यूपी के मैदान से उतारने का मकसद तो अखिलेश यादव पर दबाव बनाने की रणनीति ही लगती है. जिस तरह से अखिलेश यादव गठबंधन साथियों के लिए ज्यादा सीटें छोड़ने के पक्ष में नहीं हैं, कांग्रेस नेता बड़े नेताओं को मैदान में उतार कर गठबंधन की सूरत में ज्यादा से ज्यादा सीटें लेने की कोशिश में हैं.
अखिलेश यादव के कड़े रुख से तो यही समझ में आ रहा है कि वो कांग्रेस के हिस्से में अमेठी और रायबरेली के अलावा कुछ शेयर नहीं करने वाले हैं. दूसरी तरफ, कांग्रेस 2004 और 2009 में जीती हुई सीटों पर दावा करना चाहती है. 2004 में तो कांग्रेस को यूपी में 9 सीटों पर ही जीत मिली थी, लेकिन 2009 में ये संख्या 21 तक पहुंच गई थी, और उसका क्रेडिट राहुल गांधी को मिला था.
क्या ममता बनर्जी की ताजा पहल को कांग्रेस मुक्त विपक्ष की मुहिम समझा जा सकता है, या फिर बीजेपी की तरह कांग्रेस मुक्त भारत की मुहिम का हिस्सा?
मृगांक शेखर