2024 में जब नीतीश कुमार बीजेपी की तरफ पलटे तो शपथ के बाद पांच दिन तक मंत्रिमंडल नहीं बांटा जा सका था. वजह थी कि बीजेपी चाह रही थी कि नीतीश गृह विभाग भाजपा को दे दें, बदले में भले वे भाजपा के पास रहे स्वास्थ्य और वित्त विभाग ले लें. लेकिन 'सुशासन बाबू' ने समझौता नहीं किया. नीतीश की ही चली. लेकिन, इस बार के चुनाव नतीजों ने बहुत कुछ बदल दिया है.
मुख्यमंत्री पद को लेकर उठे सारे सवालों को भाजपा ने एक तरफ रखते हुए नीतीश कुमार का समर्थन किया. बदले में बीजेपी चाहती है कि नीतीश भी उदारता दिखाएं. मुख्यमंत्री पद के मामले में तो बिहार में महाराष्ट्र फॉर्मूला नहीं लागू हो पाया, लेकिन गृह मंत्रालय के मामले में बीजेपी हर हाल में वो चीज लागू करना चाहती है. मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार शपथ ले चुके हैं, और स्पीकर की पोस्ट पर भी मामला करीब करीब तय माना जा रहा है.
स्पीकर का आसन बीजेपी अपने पास रखेगी, ये तय है. और, डिप्टी स्पीकर का पद जेडीयू के खाते में जा सकता है, ये भी काफी हद तक तय है. बाकी मंत्रालयों पर भी करीब करीब सहमति बन चुकी है, सिवाय गृह मंत्रालय के - क्योंकि, गृह मंत्रालय पर अब तक नीतीश कुमार का ही कब्जा रहा है. उन दिनों में भी जब बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार में उनके चहेते डिप्टी सीएम सुशील मोदी हुआ करते थे.
यहां तक कि जब बीजेपी से अलग होकर नीतीश कुमार ने एनडीए छोड़ा, और जीतन राम मांझी को कमान सौंप दी, तब भी गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास ही रहा. मुख्यमंत्री नहीं होने के वजह से बस उतने दिनों तक ही नीतीश कुमार को गृह विभाग तकनीकी तौर पर रिपोर्ट नहीं कर पा रहा था.
बीजेपी ने 2020 में जेडीयू की कम सीटें होने के बावजूद नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री भी बनाया था, और कड़े मोलभाव के बाद गृह मंत्रालय भी उन्होंने अपने पास ही रखा, लेकिन अब बीजेपी वो परंपरा तोड़ देना चाहती है.
अगर सम्राट चौधरी ने संभाली गृह विभाग की कमान
नीतीश कुमार 2005 में पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. नवंबर, 2005 में. फरवरी वाली पहली पारी तो महज हफ्ते भर ही चल पाई थी. शुरू से ही गृह विभाग नीतीश कुमार के पास ही रहा है. गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास होने का फायदा तो होता ही है, लेकिन नुकसान भी है. ये भी देखने में आया कि जब भी कानून और व्यवस्था पर सवाल उठाये जाते, निशाने पर सीधे नीतीश कुमार ही आ जाते थे. और, ऐसा चुनावों से पहले भी हुआ. जब एनडीए सहयोगी चिराग पासवान ने भी सवाल उठाए थे.
अब सवाल ये है कि नीतीश कुमार की जगह वे कौन से मंत्री हैं, जिन्हें बीजेपी गृह विभाग दिलाना चाहती है? बीजेपी के दो डिप्टी सीएम में सीनियर तो सम्राट चौधरी ही हैं, बीजेपी विधायक दल का नेता भी उनको भी चुना गया है. विजय कुमार सिन्हा उनसे जूनियर हैं. सरकार में भी संगठन में भी.
अब अगर विजय कुमार सिन्हा को बीजेपी गृह मंत्रालय दिलाना चाहती है, तब तो कोई बात नहीं. फर्ज कीजिए, सीनियर मोस्ट होने के नाते सम्राट चौधरी को गृह मंत्रालय थमा दिया जाता है. आम दिनों में तो चलेगा, लेकिन तब क्या होगा जब कानून और व्यवस्था की चुनौती पैदा होती है. और, ऐसी नौबत आती है कि हालात बेकाबू हो जाते हैं.
सम्राट चौधरी के पास गृह मंत्रालय होने की सूरत में अगर ऐसा होता है तो बवाल भी होगा, और सवाल भी उठेंगे?
चुनाव से पहले तो सम्राट चौधरी को कठघर में ही खड़ा कर दिया गया था. जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने एनडीए के जिन नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए थे, सम्राट चौधरी पहले नंबर पर थे. नई सरकार के शपथग्रहण से पहले भी प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार को ऐसे 'दागी' नेताओं को सरकार में नहीं शामिल किए जाने की सलाह दी थी. लेकिन, आरोपों की परवाह न करते हुए नीतीश कुमार ने तो सम्राट चौधरी के साथ साथ अशोक चौधरी, दिलीप जायसवाल और मंगल पांडेय को भी मंत्री बना डाला है.
सम्राट चौधरी पर प्रशांत किशोर ने हत्या के एक मामले में आरोपी होने, दस्तावेजों में अलग अलग जन्मतिथि बताने और शिल्पी जैन केस में शामिल होने का आरोप लगाया है. प्रशांत किशोर का कहना है कि वो अब भी अपनी बात पर कायम हैं. और, पहले ही कह चुके हैं कि सम्राट चौधरी सहित आरोपों के दायरे में आए नेताओं को मंत्री बनाए जाने की सूरत में वो जनता के बीच जाएंगे, और कोर्ट भी जा सकते हैं. कोर्ट जाने का विकल्प तो हमेशा ही खुला रहता है, लेकिन जनता के बीच जाने पर तो कुछ होने से रहा. फिर तो प्रशांत किशोर पर ही सवाल उठेंगे कि वो जनादेश की कद्र नहीं कर रहे हैं.
नीतीश कुमार से इस मामले में बीजेपी तभी अपने मनमाफिक डील कर सकती है, जब वो सम्राट चौधरी की कुर्बानी देने को तैयार हो. लेकिन, जिस तरीके से जेडीयू की सीटें आई हैं, और पार्टी केंद्र सरकार को समर्थन दे रही है, नीतीश कुमार को मना लेना भी आसान नहीं है - भले ही एयरपोर्ट पर विदा करते वक्त वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर पकड़कर अपनी निष्ठा अक्षुण्ण रखने का प्रमाण ही क्यों न दे चुके हों.
कितना आसान है बिहार के गृह मंत्रालय पर फंसा पेच सुलझाना
बिहार सरकार के शपथग्रहण से दो दिन पहले दिल्ली में तीन घंटे तक एक खास बैठक चली थी. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक में मंत्रियों के नाम, विभागों के बंटवारे जैसे मुद्दों पर विस्तार से बातचीत हुई. नीतीश कुमार के प्रतिनिधि के तौर पर बैठक में केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और जेडीयू नेता संजय झा शामिल थे. मंत्रियों के नामों पर तो सहमति बन गई, लेकिन बिहार में गृह मंत्रालय को लेकर ये राय बनी कि अमित शाह पटना पहुंचने पर नीतीश कुमार के साथ बातचीत करके फाइनल करेंगे - अभी तक ये मामला फाइनल होने की खबर नहीं आई है.
एक अपडेट ये है कि विभागों के बंटवारे को लेकर नीतीश कुमार के साथ सम्राट चौधरी की मीटिंग हुई है. ये मीटिंग करीब 50 मिनट तक चली. बताते हैं कि नीतीश कुमार से मिलने सम्राट चौधरी विभागों की सूची लेकर गए थे. और, सूत्रों के हवाले से खबर है कि वो सूची नीतीश कुमार को सौंपी जा चुकी है. जेडीयू के हिस्से के विभागों को लेकर नीतीश कुमार ने भी अपनी बैठक की है. बैठक में ललन सिंह, संजय झा और विजय कुमार चौधरी शामिल थे.
बिहार जैसा ही पेच महाराष्ट्र में भी फंसा था. जब 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद एकनाथ शिंदे को लगा कि मुख्यमंत्री बनने का चांस नहीं बचा, तो वो गृह मंत्रालय की जिद पर उतर आए थे. दलील भी उनकी दमदार थी. चूंकि एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री रहते गृह विभाग तत्कालीन डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस के पास हुआ करता था - इसलिए, उस हिसाब से तो एकनाथ शिंदे का हक बनता ही था. लेकिन, बीजेपी को तो गृह मंत्रालय अपने पास रखना था. भले उसने देवेंद्र फडणवीस को एक खास अवधि के लिए एकनाथ शिंदे का डिप्टी सीएम बना दिया था - और अब वैसा ही बीजेपी बिहार में भी चाहती है.
केंद्र सरकार की बात करें तो देवगौड़ा और इंद्र कुमार गुजराल के कार्यकाल में परंपरा से अलग सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता गृह मंत्री बने थे - जबकि गठबंधन की एनडीए और यूपीए सरकार में भी गृह मंत्रालय भी उसी पार्टी के पास रहा है, जिसका नेता प्रधानमंत्री बनता है.
देखा जाए, तो सम्राट चौधरी को गृह मंत्री बनाया जाना वैसा ही मिसाल बनेगा, जैसे उत्तर प्रदेश में रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को जेल मंत्री बनाए जाने पर सवाल उठाए जा रहे थे. असल में उससे पहले की सरकार में राजा भैया को काफी दिन जेल में गुजारने पड़े थे - और आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते कम ही आसार हैं कि बीजेपी संभावित नए विवादों से परहेज करेगी.
मृगांक शेखर