तेजस्वी vs तेज प्रताप की लड़ाई में लालू के 'परिवारवाद की राजनीति' खतरनाक मोड़ पर

लालू यादव के परिवार में दोनों बेटों की लड़ाई ने उनकी पार्टी आरजेडी के लिए बेहद नुकसानदेह है. तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव की निजी दुश्मनी में बदली सियासी तकरार आरजेडी के राजनीतिक भविष्य पर तो सवाल उठाता ही है, वंशवाद की राजनीति के लिए भी खतरनाक इशारा है.

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तेजस्वी यादव को वोट डालने वक्त भी माता पिता का साथ मिला, लेकिन तेज प्रताप यादव दादी की तस्वीर लेकर घूमते रहे. (Photo: PTI) तेजस्वी यादव को वोट डालने वक्त भी माता पिता का साथ मिला, लेकिन तेज प्रताप यादव दादी की तस्वीर लेकर घूमते रहे. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 06 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:58 PM IST

परिवारवाद की राजनीति पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने जो नई बहस छेड़ी है, उससे थोड़ा आगे बढ़कर देखें तो लगता है, बिहार में लालू यादव की सियासत 'परिवारवाद की राजनीति' के बेहद खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुकी है - तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के बीच चल रही वर्चस्व की जोरदार लड़ाई वंशवाद की राजनीति में नए खतरे का संकेत देने लगी है.

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शशि थरूर ने हाल ही में लिखे एक लेख में बिहार में महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को कठघरे में खड़ा किया है, और वंशवाद की राजनीति को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है. लेकिन, शशि थरूर ने जिस खतरे की तरफ इशारा किया है, लालू यादव के परिवार और पार्टी की लड़ाई उससे अलग दिशा में जा रही है. 

राजनीतिक वैमनस्य देखते ही देखते कैसे निजी दुश्मनी में तब्दील हो जाता है, बिहार में तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के बीच दिनों दिन गंभीर होती जा रही लड़ाई एक बेहतरीन उदाहरण है - मुश्किल ये है कि ये सब 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव के बीच, और लालू यादव की आंखों के सामने हो रहा है, जिसमें आरजेडी उनके बेटों के आपसी झगड़े का शिकार हो रही है.

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दो भाइयों की सियासी जंग और खून का रिश्ता

लालू यादव चुप हैं, लेकिन बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के लिए राबड़ी देवी के आशीर्वचन लगातार गूंज रहे हैं, और प्रचार से दूर होने के बावजूद बहनें भी खून का रिश्ता होने की दुहाई दे रही हैं - सांसद मीसा भारती भी. कहती हैं, मैं तो आरजेडी में हूं लेकिन खून का रिश्ता तो है ही.

कुछ ऐसे वीडियो भी वायरल हो रहे हैं, जो तेज प्रताप और तेजस्वी यादव की तकरार की नुमाइश बन पड़े हैं. एयरपोर्ट पर, दूर से ही सही, आमने सामने होने पर भी दोनों के बीच कोई बात नहीं होती. लेकिन, एक-दूसरे को गौर से देखते जरूर हैं. ध्यान दें, तो तेजस्वी यादव के मुकाबले तेज प्रताप काफी गंभीर नजर आते हैं. 

पटना में लालू यादव के साथ करीब पूरा परिवार वोट डालता है, जाहिर है तेज प्रताप की कमी खल रही होगी. राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव और उनकी पत्नी राजश्री, मीसा भारती सभी हैं, लेकिन मां को बड़े बेटे की कमी तो परेशान करेगी ही. खुद को रोक नहीं पातीं, और राबड़ी देवी जो मन में है कह डालती हैं, मेरे दोनों बेटों को मेरा आशीर्वाद है... तेज प्रताप और तेजस्वी दोनों अपने बल पर चुनाव लड़ रहे हैं.

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मीसा भारती ने भी कहा है, सच ये है कि वो मेरे छोटे भाई हैं, और बड़ी बहन होने के नाते उन्हें मेरा आशीर्वाद और शुभकामनाएं हैं... हालांकि, ये महुआ की जनता तय करेगी कि उन्हें क्या चाहिए? 

लालू परिवार की गृह कलह  सड़क से चुनावी मैदान तक

ये भी वक्त का तकाजा ही है कि लालू यादव के दोनों बेटे एक दूसरे से काफी दूर जा चुके हैं. कभी खुद को कृष्ण और तेजस्वी यादव को अर्जुन बताने वाले तेज प्रताप यादव जंग में आमने सामने खड़े हो गए हैं. अब तेज प्रताप यादव खुद ही सारथी भी हैं, और अपनी जंग के योद्धा भी. तेजस्वी के साथ पूरा परिवार है, लेकिन तेज प्रताप को वन-मैन आर्मी की तरह सारी भूमिकाएं निभानी पड़ रही हैं. 

कहते हैं राजनीति में मतभेद होते हैं, मनभेद नहीं. लेकिन, राजनीतिक वैमनस्य से शुरू हुई तेजस्वी यादव और तेज प्रताप की लड़ाई तेजी से निजी दुश्मनी का रूप लेती जा रही है. राघोपुर और महुआ के मैदान में जो लड़ाई नजर आ रही है, वो महज राजनीतिक नहीं है, अब वो विरासत की लड़ाई का प्रतीक बन चुकी है.

बिहार से आने वाले वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा ने अपनी फेसबुक पोस्ट में यही बात समझाने की कोशिश की है. भविष्य की राजनीति तरफ इशारा करते हुए अरविंद शर्मा लिखते हैं, 'अंतर्विरोध का असर केवल पार्टी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि बिहार की यादव राजनीति पर भी पड़ेगा... लंबे समय से यादव वोट बैंक राजद के इर्द-गिर्द संगठित रहा है, पर जब परिवार के भीतर ही इस तरह के द्वंद्व होंगे, तो उसे लंबे समय तक सहेजना मुश्किल होगा... समर्थक अभी से असमंजस में हैं कि 'असली नेता' कौन है? तेजस्वी, जो संगठन का चेहरा हैं या तेजप्रताप, जो परिवार की परंपरा और धार्मिक प्रतीकवाद के सहारे अपनी राह बना रहे हैं'

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वंशवाद और परिवार की राजनीति में तेज प्रताप तो तभी पिछड़ गए थे, जब लालू यादव ने तेजस्वी यादव को अपना राजनीतिक वारिस घोषित कर दिया था. बड़ा बेटा होने के नेता घर में तेज प्रताप का सम्मान और महत्व बना हुआ था. जब पहली बार चुनाव लड़ने की बारी आई तो तेजस्वी यादव और तेज प्रताप दोनों एक साथ मैदान में उतारे गए. और चुनावी जीत के बाद 2015 में सरकार बनने पर दोनों मंत्री भी बने. तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम के तौर पर ज्यादा अहमियत भी मिली. 

लेकिन, तेज प्रताप यादव की कुछ निजी तस्वीरें सोशल मीडिया पर आ जाने के बाद परिवार और पार्टी में ही विरोध भारी पड़ा. लालू यादव ने तेज प्रताप यादव को पार्टी और परिवार दोनों से बेदखल कर दिया. अब लालू यादव 'तेजस्वी यादव सरकार' की बात करते हैं, और राबड़ी देवी तेज प्रताप को दिल पर पत्थर रखते हुए आशीर्वाद देकर रह जाती हैं. पिता राजनीतिक हो सकता है, मां तो मां ही होती है. ममता, राजनीति पर भारी पड़ती है - लेकिन, असल बात तो ये है कि ये सिर्फ तेजस्वी यादव और तेज प्रताप की वर्चस्व की लड़ाई भर नहीं है, ये तो लालू-राबड़ी युग के बिखरने का संकेत भी है. गौर करें तो मालूम होता है कि बीजेपी और नीतीश कुमार के 'जंगलराज' अटैक से भी ज्यादा नुकसान लालू यादव और राबड़ी देवी को बच्चों के आपसी झगड़े का हो रहा है. 

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अरविंद शर्मा ने लिखा भी है, 'लालू प्रसाद की राजनीतिक पूंजी सदैव परिवार और भावनात्मक जुड़ाव पर टिकी रही है, मगर अब वही परिवार उनकी सबसे बड़ी चुनौती बन गया है... राजद के लिए यह परीक्षा की घड़ी है, क्या वैचारिक एकता बनी रह पाएगी? या पारिवारिक संघर्ष पार्टी को भीतर से कमजोर कर देगा?'

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