शशि थरूर कांग्रेस के अब तक के व्यवहार का हिसाब ही नहीं, चुन चुन कर बदला भी ले रहे हैं

शशि थरूर कांग्रेस के भीतर होते हुए भी देश की राजनीति में अपनी अलग शख्सियत और अहमियत रखते हैं. मुश्किल ये है कि न तो कभी कांग्रेस उनको तवज्जो देती है, न वो किसी की परवाह करते हैं. हाल फिलहाल जो भी हो रहा है, वो भी इसी टकराव का नतीजा है.

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शशि थरूर का कांग्रेस छोड़ने का भले कोई इरादा न हो, लेकिन अलग अलग तरीके से अपनी अहमियत तो समझा ही रहे हैं. शशि थरूर का कांग्रेस छोड़ने का भले कोई इरादा न हो, लेकिन अलग अलग तरीके से अपनी अहमियत तो समझा ही रहे हैं.

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 30 मई 2025,
  • अपडेटेड 5:31 PM IST

शशि थरूर हैं तो कांग्रेस में ही, लेकिन किसी ऐसी छोर पर जो बाकियों से बहुत दूर होती है. ऐसे में कांग्रेस नेताओं की निगाह हमेशा टिकी रहती है. कुछ कांग्रेस नेता ऐसे भी होंगे, शशि थरूर जिनकी आंखों की किरकिरी बने हुए होंगे. हो सकता है, राहुल गांधी के साथ ऐसा न हो - लेकिन उनको भी तो अपने नजदीकी सलाहकारों की बात सुननी ही होती है. 

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अभी तक शशि थरूर ने खुद कभी नहीं कहा कि वो कांग्रेस छोड़ सकते हैं. लेकिन, तंग आकर एक मलयालम पॉडकास्ट में ये जरूर बोल दिया था कि उनके पास काम की कमी नहीं है. हालांकि, ऐसे कामों की सूची में वो राजनीति की जगह अपनी किताबों और लेक्चर देने के निमंत्रण का ही जिक्र किया था. वो भी बड़ी संजीदगी से. 

कांग्रेस सांसद शशि थरूर को लेकर ताजा विवाद शुरू हुआ पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ विदेश दौरे पर जाने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में उनका नाम शामिल किये जाने पर. जैसे ही प्रेस रिलीज आई, शशि थरूर ने स्वागत करते हुए गर्व का इजहार कर दिया. कांग्रेस को लगा कि जो नाम भेजे, उसे छोड़कर शशि थरूर को ले लिया गया. कांग्रेस नेता बवाल करने लगे. बाद में केंद्र सरकार ने कांग्रेस की सूची से आनंद शर्मा को भी शामिल कर लिया. 

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केरल सरकार की तरफ से तुर्किए को 2023 में दी गई 10 करोड़ रुपये की आर्थिक मदद पर तो बवाल मचा ही हुआ था, शशि थरूर ने सोशल साइट एक्स ऐसी बात लिख डाली कि कांग्रेस में उनके सारे विरोधी परेशान हो उठें. शशि थरूर ने लिखा, 'सितंबर, 2016 में ​​पहली बार भारत ने एक आतंकी लॉन्च पैड पर सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए एलओसी को पार किया था... उससे पहले भारत ने ऐसा पहले कभी नहीं किया.' 

एक पोस्ट में शशि थरूर ने ये भी साफ कर दिया था कि उनको किसी की परवाह भी नहीं है, 'हमेशा की तरह, आलोचकों और ट्रोल्स ने मेरे विचारों और शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया, जिसका स्वागत है... सच में मेरे पास करने के लिए बेहतर काम हैं.' 

अब कांग्रेस की तरफ से शशि थरूर पर लगातार हमला बोला जा रहा है. उदित राज को भी काम मिल गया है, वो तो शशि थरूर को बीजेपी का सुपर प्रवक्ता बता चुके हैं. कांग्रेस नेता पवन खेड़ा अब शशि थरूर की 2018 में आई किताब 'द पैराडॉक्सिकल प्राइम मिनिस्टर' का एक पेज शेयर करके उनको एक्सपोज करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि बीजेपी समझ जाये कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में क्या सोच रखते हैं. 

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मुश्किल ये है कि मोदी को बुरा भला कहने वाले कपिल मिश्रा को वो दिल्ली सरकार में मंत्री बना सकती है, हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बना सकती है, तो शशि थरूर को राजनीतिक फायदे के लिए साथ क्यों नहीं ले सकती. कांग्रेस शायद ये नहीं समझ रही है कि शशि थरूर उसके लिए कितने काम के हैं - और यही वजह है कि शशि थरूर चुन चुन कर कांग्रेस से बदला ले रहे हैं, और अंदाज ऐसा है जैसे मजे ले रहे हों.

1. न काबिलियत को महत्व, न भविष्य की उम्मीद

शशि थरूर ने खुद बताया है कि संयुक्त राष्ट्र से लौटने के बाद जब वो भारत में राजनीति शुरू करने की सोच रहे थे तो उनके पास जिन राजनीतिक दलों की तरफ से ऑफर था उसमें कांग्रेस और बीजेपी दोनों शामिल थे, लेकिन आइडियोलॉजी पसंद आने की वजह से शशि थरूर ने कांग्रेस को तरजीह दी. और, अब भी वो कांग्रेस में ही बने हुए हैं. 

राष्ट्रहित के मुद्दों पर हमेशा सक्रिय नजर आने वाले शशि थरूर कांग्रेस के लिए बेहद फायदेमंद हो सकते हैं, बशर्ते राहुल गांधी भी ऐसी चीजें पसंद हों - सवाल ये है कि क्या कांग्रेस ने कभी शशि थरूर की काबिलियत पर गौर फरमाया है. अगर ऐसा हुआ होता तो कांग्रेस और राहुल गांधी ही फायदे में रहते. 

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केरल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सीनियर नेता के सुधाकरन तो सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के लिए शशि थरूर के नाम की सिफारिश न किये जाने कांग्रेस के फैसले को शशि थरूर का अपमान बता चुके हैं. सुधाकरन ने कहा है, शशि थरूर एक सक्षम नेता और कांग्रेस के वफादार सदस्य हैं... उनको अलग-थलग करना ठीक नहीं है. सुधाकरन ने थरूर के पार्टी छोड़ने की अफवाहों को भी गलत बताया है, और कहा है कि शशि थरूर से उनकी बात हुई है और उनको यकीन है कि वो कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे.

फर्ज कीजिये, जब शशि थरूर जैसे नेता को न महत्व मिले, और न ही कांग्रेस का कोई नजदीकी भविष्य नजर आ रहा हो, ऐसे में शशि थरूर भला किस उम्मीद से कांग्रेस नेतृत्व को बर्दाश्त करते रहने के बारे में सोचें.

2. मंत्री बनाकर हटा दिया जाना

2009 में थोड़े दिन के लिए शशि थरूर विदेश राज्यमंत्री बनाये गये थे, लेकिन एक बयान को मुद्दा बनाकर उनसे इस्तीफा मांग लिया गया. तब तक उनके मंत्री बने एक साल भी पूरा नहीं हुआ था. अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अपने अनुभव को देखते हुए, तो शशि थरूर विदेश मंत्री बनाये जाने की उम्मीद कर रहे होंगे. मंत्री तो बनाये गये, विदेश मंत्रालय भी मिला लेकिन कैबिनेट दर्जा नहीं मिला.

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तब एसएम कृष्णा विदेश मंत्री हुआ करते थे, और शशि थरूर को उनके नीचे काम दिया गया, क्योंकि वो गांधी परिवार के करीबी और भरोसेमंद हुआ करते थे. आपको याद होगा अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक बार वो दूसरे मुल्क का ही भाषण पढ़ने लगे थे. कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके एसएम कृष्णा कांग्रेस छोड़ कर बाद में बीजेपी में शामिल हो गये थे, लेकिन उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाने के कारण नेपथ्य में चले गये.

3. UN चुनाव में मदद न मिलना

जब शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र में चुनाव लड़ रहे थे, तब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार हुआ करती थी, अगर गंभीर प्रयास हुए होते तो वो यूएन में सेक्रेट्री जनरल भी बन गये होते. संयुक्त राष्ट्र महासचिव के लिए 2006 के चुनाव में शशि थरूर काफी बेहतर स्थिति में थे - लेकिन वो अंतरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी में राजनीति के शिकार हो गये. अपने लेख के जरिये शशि थरूर ने बताया था कि कैसे वो निजी तौर पर चीन के राजनीतिक नेतृत्व से संपर्क किये. और, उनको चीन की तरफ से आश्वस्त किया गया था कि भारत के साथ जो भी रिश्ता रहा हो, लेकिन चीन उनके रास्ते की बाधा नहीं बनेगा. मतलब, शशि थरूर की हार की वजह चीन नहीं बना था, बल्कि अमेरिका उनके आजाद ख्याल को पसंद नहीं करता था.

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असल में, कोफी अन्नान के कार्यकाल में शशि थरूर अंडर सेक्रेट्री जनरल (संचार और सार्वजनिक सूचना) हुआ करते थे - और ये ऐसी वजह रही कि कुछ देश शशि थरूर को कोफी अन्नान का आदमी मानते थे. कोफी अन्नान भी आजाद ख्याल शख्सियत के रूप में जाने जाते थे. 

ये भी अजीब बात है कि जो शशि थरूर अकेले दम पर चीन तक को अपने खिलाफ वीटो न करने के लिए मना लिये थे, अमेरिका के मामले में चूक गये या फिर कहें कि तब की मनमोहन सिंह सरकार के स्तर पर शशि थरूर के पक्ष में कोई गंभीर डिप्लोमेटिक प्रयास नहीं किया गया.

4. कांग्रेस अध्यक्ष न बनने देना

ताज्जुब की बात ये है कि शशि थरूर की जिस आजाद ख्याल खासियत के चलते अमेरिका उनके रास्ते की बाधा बन गया, भला राहुल गांधी उनको क्यों तवज्जो देंगे. भले ही आजाद ख्याल वाले कन्हैया कुमार को राहुल गांधी कांग्रेस में खुशी खुशी ले लेते हों. और, लालू यादव की नाराजगी तक मोल लेते हों. 

शशि थरूर को कांग्रेस की कितनी फिक्र है, ये उनके कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव कैंपेन के दौरान भी देखने को मिला था. शशि थरूर ने तब कहा था कि कांग्रेस से दूर जा चुके लोगों को वापस लाया गया तो कांग्रेस 19-20 फीसदी के आंकड़े से ऊपर उठेगी, लेकिन वो अब तक उसी में उलझी हुई है. शशि थरूर ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि कांग्रेस को उन वोटर को साधने की कोशिश करनी चाहिये, जो 2009 में कांग्रेस के साथ थे. शशि थरूर का कहना था, कांग्रेस को उन लोगों को वापस जोड़ने पर काम करना होगा, जो पिछले तीन लोकसभा चुनावों में पार्टी से दूर रहे हैं… ऐसे वोटर को साथ लाना होगा, जिनकी वजह से कांग्रेस सत्ता में आती रही है.

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अब तो राहुल गांधी भी कहने लगे हैं, हम ब्राह्मण, दलित, और मुस्लिम में ही उलझे रह गये, और ओबीसी समुदाय से हमसे दूर चला गया… हमें उनको जोड़ने के लिए प्रयास करने होंगे. ऐसी गलतियों के लिए राहुल गांधी माफी तो मांग लेते हैं, लेकिन कभी शशि थरूर से सलाह लेने के बारे में नहीं सोच पाते. 

5. कभी जरूरी सलाह न मानना

असल बात तो ये है कि शशि थरूर की किसी भी सलाह को कांग्रेस में कभी भी सीरियसली नहीं लिया गया. न तो किसी ने परवाह की गई, न ही कभी किसी ने कभी ध्यान दिया है. भले ही भरी सभा में सोनिया गांधी उनको डांट चुकी हों. भले ही राहुल गांधी उनकी बातों को नजरअंदाज करते रहे हों, लेकिन वो अपनी धुन के पक्के लगते हैं. 

फिर भी कांग्रेस अधिवेशन में शशि थरूर ने राहुल गांधी सलाह दी थी कि कांग्रेस को नकारात्मक आलोचना की नहीं, बल्कि उम्मीद, भविष्य और सकारात्मक विमर्श वाले राजनीति दल के रूप में आगे बढ़ना चाहिये. शशि थरूर की नजर में कांग्रेस को भविष्य की पार्टी होनी चाहिये, सिर्फ अतीत की नहीं.

शशि थरूर ने तब भी आगाह किया था, कांग्रेस को देश की जनता के सामने पॉजिटिव-विजन रखना होगा… हमें जनता को बताना होगा कि हमारे पास क्या रोडमैप है… अभी तक हम नेगेटिव कैंपेन ही कर रहे हैं, और बीजेपी को गलत बता रहे हैं.

राहुल गांधी कभी कभी सॉफ्ट हिंदुत्व जैसे प्रयोग करते हैं, तो कभी पूरा जोर जातीय जनगणना के एक्स-रे पर लगा देते हैं. ये सही है कि विपक्ष की राजनीति काफी मुश्किल होती है. जो हाल पुलवामा हमले के बाद हुआ था, कांग्रेस का वही हाल पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर के बाद होने लगा है. मसला नाजुक इतना है कि बीजेपी पर ममता बनर्जी की तरह राहुल गांधी ऑपरेशन सिंदूर पर राजनीति का आरोप लगा पाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. 

राहुल गांधी चाहते तो बड़ा दिल दिखाते और शशि थरूर को मिल रही शोहरत का क्रेडिट ले लेते, और बीजेपी के पास से हमले का मौका भी छीन लेते - लेकिन, जब शशि थरूर के कट्टर विरोधी ही राहुल गांधी के करीबी सलाहकार हों तो उनका नाउम्मीद होना भी स्वाभाविक है. अब जो भी संभव है, शशि थरूर करते जा रहे हैं. 
 

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