RSS कैसे बिहार वाला 'सक्‍सेस फॉर्मूला' यूपी में इस्‍तेमाल करने जा रहा है

बिहार में मिली अपार सफलता के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूपी को अगला प्रयोगशाला बनाने जा रहा है. बिहार के मुस्लिम आबादी के प्रभाव वाले इलाकों में भी संघ ने कोशिश की कि सुशासन और विकास के नाम पर लोग वोट डालें, और कामयाब रहा. संघ अब वैसे ही उपाय यूपी में आजमाने जा रहा है.

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बिहार के बाद यूपी में भी योगी आदित्यनाथ को नीतीश कुमार जैसी जीत दिलाने जमीन पर उतर रहा संघ. (Photo: PTI) बिहार के बाद यूपी में भी योगी आदित्यनाथ को नीतीश कुमार जैसी जीत दिलाने जमीन पर उतर रहा संघ. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:14 PM IST

उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने में अभी काफी वक्त है. एक साल से भी ज्यादा का समय. यूपी से पहले पश्चिम बंगाल सहित देश के पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. बिहार के बाद बीजेपी का सबसे ज्यादा जोर तो पश्चिम बंगाल पर ही है, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूपी में अभी से सक्रिय हो गया है. 

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संघ के यूपी में पहले से ही सक्रिय होने की खास वजह भी लगती है. एक तो बिहार चुनाव में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए को मिली जबरदस्त कामयाबी, और दूसरा - 2024 के आम चुनाव में बीजेपी का बेहद खराब प्रदर्शन. 

लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन के लिए भले ही बीजेपी ज्यादा जिम्मेदार रही हो, लेकिन खुशी तो संघ को भी नहीं हुई होगी. सबक सिखाने के लिए भले ही संघ ने कुछ देर के लिए मुंह फेर लिया हो, लेकिन अपनी ही मेहनत पर वो खुद भी ज्यादा दिन तक पानी तो फेर नहीं सकता. बरसों की मेहनत के बाद तो संघ के राजनीतिक संगठन बीजेपी को केंद्र सहित कई राज्यों में सत्ता हासिल हो पाई है. 

बीजेपी को महाराष्ट्र और दिल्ली में भी जबरदस्त सफलता मिली थी, लेकिन बिहार की तो बात ही और है. बिहार में तो बीजेपी को वैसी कामयाबी मिली है, जैसी 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली थी. कांग्रेस मुक्त भारत का बीजेपी का नारा भले ही हकीकत नहीं बन पाया हो, लेकिन विपक्ष मुक्त बिहार तो करीब करीब हो ही गया है. बिहार में बीजेपी ने नीतीश कुमार और चिराग पासवान को साथ लेकर जिस तरह लालू यादव और तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी को समेट दिया है, विपक्ष का संघर्ष तो बढ़ ही गया है. 

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विकास के मामले में बिहार मॉडल अब तक भले न बन पाया हो, लेकिन उत्तर भारत की राजनीतिक अहमियत के हिसाब से देखें तो बीजेपी की जीत का बेहतरीन मॉडल तो बन ही गया है - और अब संघ बीजेपी के लिए बिहार जैसी ही जीत यूपी में पक्की करने की तैयारी में जुट गया है. 

2027 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे को और असरदार बनाने के मकसद से जमीन पर उतरने जा रहा है. संघ के प्रस्तावित 'विराट हिंदू सम्मेलन' के पीछे भी यूपी विधानसभा चुनाव 2027 ही है. 

अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन समारोह होने के बावजूद 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की विपक्षी समाजवादी पार्टी से भी कम सीटों पर सिमट जाना, और अयोध्या की हार बीजेपी के साथ साथ संघ के लिए भी राजनीतिक रूप से काफी दुखदायी रहा - और यही वजह है कि अब संघ ने बीजेपी के साथ राम मंदिर के मुद्दे को गांव-गांव पहुंचाने का प्लान बनाया है.

मिशन यूपी - 2027 तैयार है

बिहार चुनाव के नतीजे आने के हफ्ता भर बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत लखनऊ पहुंचे थे. दिव्य गीता प्रेरणा उत्सव में हिस्सा लेने. मोहन भागवत ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ मंच भी साझा किया. और, हाल ही में बीजेपी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष भी दो दिन के दौरे पर लखनऊ में थे. बीजेपी नेता बीएल संतोष की संघ के सरकार्यवाह अरुण कुमार और अन्य पदाधिकारियों के साथ लंबी मीटिंग भी हुई. मुख्यमंत्री आवास में भी समन्वय बैठक हुई, जिसमें मौजूदा चुनौतियों से लेकर आने वाले चुनाव की तैयारियों पर व्यापक विचार विमर्श हुआ. 

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हाल फिलहाल की बैठकों और राजनीतिक गतिविधियों से निकलकर जो कुछ सामने आया है, वो यही बता रहा है कि यूपी में भी संघ बिहार जैसा ही रिजल्ट चाहता है - 

1. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रभारी मंत्रियों को संघ के साथ समन्वय और बढ़ाने को कहा गया है. प्रभारी मंत्रियों को साफ तौर पर बता दिया गया है कि वे हर महीने अपने प्रभार वाले जिलों में जाएं, तो संघ कार्यालय भी निश्चित तौर पर जाएं. सारे प्रभारी मंत्री स्थानीय स्तर पर संघ के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के साथ अलग से भी समन्वय बैठक करें. 

2. संघ ने उत्तर प्रदेश में ग्राउंड लेवल पर स्थानीय मुद्दों की विस्तृत सूची तैयार की है, ताकि जहां कहीं भी कमजोर कड़ी नजर आए, वक्त रहते दुरुस्त करने की कोशिश हो. 

3. आने वाले 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले संघ अपने शताब्दी वर्ष के तहत बड़े पैमाने पर हिंदू सम्मेलनों की सीरीज आयोजित करने जा रहा है. 

4. लखनऊ में प्रस्तावित विराट हिंदू सम्मेलन भी चुनावी तैयारियों का ही हिस्सा माना जा रहा है, जिसके जरिए हिंदुत्व को लेकर एक मजबूत राजनीतिक संदेश देने की भी कोशिश है. 

5. लक्ष्य की प्राप्ति और अपेक्षित नतीजे हासिल करने के मकसद से, सूत्रों के अनुसार, यूपी की सरकार और संगठन दोनों में बड़े फेरबदल पर विचार चल रहा है. कुछ मंत्रियों की जिम्मेदारियों में बदलाव, और नए चेहरे शामिल करने पर भी विचार हो रहा है. कुछ मंत्रियों की जिम्मेदारी भी बदली जा सकती है. जल्दी ही उत्तर प्रदेश बीजेपी को नया अध्यक्ष भी मिल सकता है. 

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बिहार के राजनीतिक प्रयोग का यूपी में उपयोग

बिहार चुनाव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब करीब सारे ही प्रयोग सफल रहे हैं. अब ऐसे प्रयोगों को उत्तर प्रदेश में आजमाने की बारी है. ये प्रयोग पश्चिम बंगाल में भी आजमाए जाएंगे, लेकिन फर्क होगा. हर राज्य का राजनीतिक मिजाज अलग होता है. हां, यूपी और बिहार काफी हद तक मिलते जुलते हैं. 

1. आरएसएस के सूत्रों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट में बताया है कि बिहार चुनाव में एनडीए सभी दलों के वोट शेयर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज की गई है. 2020 के चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 42.56% दर्ज किया गया था, जौ 2025 में बढ़कर 48.44% पहुंच गया है. ऐसे ही जेडीयू का 2020 में 32.83% से बढ़कर 2025 में 46.2% हो गया, और चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) का वोट शेयर भी 10.26% से लंबी छलांग लगाते हुए 43.18% तक पहुंच गया. 

जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) के हिस्से में भी 32.28% से बढ़कर 48.39% पर वोट पड़े, और वैसे ही उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएम का वोट शेयर 4.41% से बढ़कर 41.09% तक पहुंच गया - जाहिर है, बाकी चुनावी मशीनरी के अलावा ये सब जमीनी स्तर पर संघ की मेहनत का ही परिणाम है. 

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2. बीजेपी नेतृत्व ये तो मानकर चल रहा था कि एनडीए फिर से विधानसभा में 122 के बहुमत का आंकड़ा पार कर लेगा, लेकिन संघ कुछ और ही प्लान करके चल रहा था. ये संघ की दूरगामी सोच ही है कि वो चाहता था कि बिहार के लोग वोट सरकार के कामकाज, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के हितों जैसे मुद्दों पर वोट डालें, जबकि बिहार की चुनावी राजनीति में जाति की जड़ें बहुत गहरी हैं. देखा जाए तो संघ अपने मकसद में काफी हद तक सफल लगता है. 

3. बिहार के 38 जिलों की बात करें, तो हर जिले में कम से कम 100 स्वयंसेवकों को संघ और संबद्ध संगठनों की तरफ से तैनात किया गया था. साथ ही, संघ की छात्र इकाई ABVP के भी करीब 5,000 कार्यकर्ताओं को पांच-पांच की टोली बनाकर पूरे बिहार में जगह जगह टास्क दिए गए थे. चुनाव कैंपेन के दौरान शोर शराबे से दूर वे ग्राउंड लेवल पर चुपचाप अपना काम कर रहे थे. 

बिहार की तरह यूपी में भी विपक्ष को समेटने की तैयारी

बिहार में सीमांचल जैसे इलाके में चुनाव संघ और बीजेपी दोनों के लिए बड़ा चैलेंज था. क्योंकि, इलाके की करीब ढाई दर्जन सीटों पर मुस्लिम वोटर का दबदबा माना जाता रहा है. ग्राउंड लेवल पर संघ के बीते कई साल से सक्रिय होने का फायदा ये मिला है कि वहां का हिंदू वोट नहीं बंट सका. और, यही वजह है कि ऐसी 32 सीटों में से 21 पर एनडीए उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. 

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उत्तर प्रदेश की बात करें, तो पश्चिम यूपी सहित मुस्लिम आबादी वाले कई इलाके ऐसे हैं जो बीजेपी के लिए चुनौती बने रहते हैं. बीजेपी को जैसे तैसे राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने के लिए जुगाड़ करने पड़ते हैं. ऐसे ही जुगाड़ों में बीएसपी नेता मायावती से मिले कथित मदद भी शामिल है. लेकिन, जिस तरह बिहार में संघ ने चीजों को अंजाम तक पहुंचाया है, उत्तर प्रदेश में भी वैसी ही कोशिशें होंगी, ऐसा लगता है .

सीमांचल क्षेत्र में संघ ने हिंदुओं को एकजुट रखने की कोशिश के साथ ही, सुशासन और विकास के एजेंडे को ऊपर रखा - और उसी की बदौलत बिहार चुनाव में बीजेपी ने अपेक्षा से भी बेहतर नतीजे हासिल किए. 

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