राहुल गांधी के पास कोई प्लान-बी भी है क्या, अगर लालू यादव ने कांग्रेस को झटका दे दिया तो?

कांग्रेस की तरफ से महागठबंधन में रहकर ही चुनाव लड़ने की बात पहले ही कही जा चुकी है, और राहुल गांधी भी अलग होकर चुनाव लड़ने को लेकर आगाह कर रहे हैं - लेकिन, राहुल गांधी की सक्रियता बता रही है कि वो एक वैकल्पिक रणनीति पर भी काम कर रहे हैं.

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बिहार में भी राहुल गांधी दिल्ली चुनाव की तरह तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अभी जोर महागठबंधन को बनाये रखने पर है. बिहार में भी राहुल गांधी दिल्ली चुनाव की तरह तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अभी जोर महागठबंधन को बनाये रखने पर है.

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 08 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 1:02 PM IST

राहुल गांधी जिस तरीके से बिहार की राजनीति में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, लालू परिवार की तीखी नजर है - अगर लालू यादव को लगा कि कांग्रेस तेजस्वी यादव की राह में रोड़े अटकाने की कोशिश कर रही है, तो कांग्रेस को दूर करने में वो एक पल भी एक्सट्रा नहीं लगाएंगे.

राहुल गांधी पहली बार बिहार जाते हैं तो खुद लालू परिवार से मिलने पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के आवास पर चले जाते हैं. और, इस बार जाने से पहले बिहार कांग्रेस के नेताओं को लालू यादव और तेजस्वी यादव से मिलने के लिए भेज देते हैं - अब बिहार कांग्रेस के नेता मुलाकात में जो भी कह सुन रहे हों, लालू यादव की नजर तो राहुल गांधी के एक्शन पर ही टिकी होगी. 

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लालू यादव की नजर राहुल गांधी के एक्शन पर

लालू यादव ये तो देख ही रहे हैं कि कैसे राहुल गांधी बेगूसराय पहुंच कर कन्हैया कुमार को एनडोर्स कर रहे हैं. वो ये भी नहीं भुलाएंगे कि कैसे कांग्रेस के अघोषित साथी बने पूर्णिया सांसद पप्पू यादव कह रहे हैं कि बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार को विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाना चाहिये - और वो ये भी देख रहे हैं कि कैसे तेजस्वी यादव को बिहार चुनाव में सीएम फेस बनाये जाने के सवाल पर कृष्णा अल्लावरु कन्नी काट जाते हैं. कहने लगते हैं कि अभी जनता के मुद्दों पर फोकस किया जा रहा है, मुख्यमंत्री पद को लेकर अभी कोई बात नहीं हुई है - फिर ऐसी क्या मजबूरी हो सकती है कि लालू यादव कांग्रेस के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ें. 

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लालू यादव भी जानते हैं, और राहुल गांधी भी कि कांग्रेस के उम्मीदावर महागठबंधन के चलते जीतते आ रहे हैं. लालू यादव को बस इस बात की फिक्र हो सकती है कि कांग्रेस ने कुछ मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर दिया, और राजेश कुमार के कारण दलित वोटों में बंटवारा हो गया तो दिल्ली की तरह बिहार में भी ‘खेला’ हो सकता है, जैसा आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल के साथ हुआ - लेकिन कांग्रेस बिहार में भी दिल्ली जैसा ही व्यवहार करती है, तो जाहिर है, लालू यादव भी अरविंद केजरीवाल की ही तरह पेश आएंगे. 

अब अगर ऐसी कोई स्थिति बनती है, और कांग्रेस को अकेले लड़ना पड़ सकता है, तो क्या कांग्रेस के लिए राहुल गांधी के पास कोई प्लान-बी भी है? आखिर कांग्रेस बिहार चुनाव में वैतरिणी कैसे पार होगी?

कांग्रेस का कोई प्लान-बी भी चल रहा है क्या

2015 और 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव कांग्रेस महागठबंधन में आरजेडी के साथ मिलकर लड़ी है. 2015 के चुनाव में तो नीतीश कुमार ही महागठबंधन के नेता थे. और, माना जाता है कि कांग्रेस को ज्यादा सीटें भी नीतीश कुमार के कारण ही मिली थीं. क्योंकि, ये भी माना जाता है कि नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता बनवाने में कांग्रेस नेतृत्व का पूरा सपोर्ट मिला था - 2010 का बिहार विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने अकेले लड़ने का फैसला किया था, और करीब 8 फीसदी वोट मिले थे. 

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चुनावों में मुस्लिम वोट हासिल करने के साथ ही राहुल गांधी की कोशिश है कि वो कांग्रेस को पुराने पिछड़े और दलित वोटर से फिर से जोड़ सकें. ऐसा करने के लिए अखिलेश प्रसाद को हटाकर कमान एक दलित चेहरा राजेश कुमार को दी गई है. अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह अब उनकी ही भूमिहार बिरादरी के कन्हैया कुमार को स्थापित करने की कवायद चल रही है. और, ये काम करने के लिए राहुल गांधी खुद बेगूसराय पहुंच कर पदयात्रा करने लगते हैं. 

बिहार कांग्रेस में हाल ही में हुई जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की बात करें तो सबसे ज्यादा नंबर सवर्णों का है, लेकिन राहुल गांधी समझा रहे हैं कि दो तिहाई पिछड़े वर्ग और दलित नेताओं को जिलाध्यक्ष बनाया गया है. पहले ऐसा एक तिहाई ही हो पाता था - और राहुल गांधी इसके लिए कांग्रेस की ही गलती मानते हैं. 

राहुल गांधी कुछ दिनों से डंके की चोट पर कहने लगे हैं कि पिछड़ों और दलितों के मामलों में कांग्रेस से बहुत बड़ी गलती हुई है - और जातिगत जनगणना के जरिये राहुल गांधी उस गलती को सुधारने की बात कर रहे हैं. 

अगर राहुल गांधी गलती सुधार लेते हैं, और लोग भी ऐसा मान लेते हैं तो लालू यादव की आरजेडी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं - और लगता नहीं कि लालू यादव कांग्रेस की ऐसी कोई भी चाल कामयाब होने देना चाहेंगे.  

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कांग्रेस का आरजेडी से गठबंधन टूटने की आशंका क्यों?

थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि राहुल गांधी ये सब महागठबंधन में ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए कर रहे हैं, लेकिन क्या लालू यादव कांग्रेस की लंबी चौड़ी डिमांड पूरी करने को तैयार होंगे?

कांग्रेस और आरजेडी के बीच टकराव का मसला यही है कि टिकटों के बंटवारे आधार क्या हो? 

लालू यादव तो यही चाहेंगे कि ज्यादा से ज्यादा 2020 के चुनाव की तरह ही सीटों पर समझौता हो जाये. वैसे तो कांग्रेस के प्रदर्शन से तेजस्वी यादव बेहद नाखुश थे, और आरजेडी नेता तो काफी दिनों तक राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा पर कांग्रेस के बिहार चुनाव में खराब प्रदर्शन को लेकर हमलावर थे. तेजस्वी यादव का मानना था कि कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना गलती रही, अगर महागठबंधन उन सीटों पर जीत जाता तो सरकार भी बनाई जा सकती थी.

सुनने में आया है कि कांग्रेस की तरफ से 2020 नहीं बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के आधार पर सीटों का दावा पेश किया जा रहा है. 

लोकसभा चुनाव में लालू यादव ने कांग्रेस को 9 सीटें दी थी, और आरजेडी 23 सीटों पर लड़ी थी. नतीजे आये तो कांग्रेस को तीन और आरजेडी को 4 सीटें मिली थीं.

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देखा जाये तो आरजेडी के मुकाबले स्ट्राइक रेट तो कांग्रेस का ही बेहतर है. और, 2020 के विधानसभा चुनाव में तो कांग्रेस के स्ट्राइक रेट को लेकर ही आरजेडी नेता हमलाव थे - बहुत ज्यादा न सही, लेकिन कांग्रेस ने स्ट्राइक रेट के मामले में सुधार तो किया ही है. 

और, लालू यादव और तेजस्वी यादव भले न मानते हों, लेकिन पप्पू यादव को भी तो कांग्रेस के खाते में ही गिना जाएगा. अगर लालू यादव ने अड़ंगा नहीं डाला होता तो पप्पू यादव कांग्रेस के ही सांसद होते - और इस हिसाब से कांग्रेस भी आरजेडी के बराबर 4 सांसद होने का दावा तो कर ही सकती है. 

अब अगर लालू यादव और तेजस्वी यादव कांग्रेस की बात नहीं मानते तो राहुल गांधी यूपी की तरह समझौता तो करेंगे नहीं, क्योंकि अब तो वो लोकसभा में विपक्ष का नेता बनकर काफी आगे बढ़ चुके हैं - और, बात नहीं बनी तो कांग्रेस अपने प्लान-बी के साथ ही आगे बढ़ेगी. 

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