जातिवादी बहस के बीच भाजपा की बड़ी नियुक्तियां क्‍या पैगाम देती हैं

भारतीय जनता पार्टी ने देश की राजनीति में जारी जाति की बहस के बीच संगठन में कई अहम नियुक्तियां की है. बिहार और उत्तर प्रदेश से जुड़े ये फैसले बीजेपी के भीतर नेतृत्व संतुलन, सामाजिक प्रतिनिधित्व और चुनावी प्राथमिकताओं का महत्वपूर्ण संकेत दे रहे हैं.

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यूपी बीजेपी अध्यक्ष पंकज चौधरी, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन और बिहार प्रमुख संजय सरावगी. (Photo: PTI) यूपी बीजेपी अध्यक्ष पंकज चौधरी, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन और बिहार प्रमुख संजय सरावगी. (Photo: PTI)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:47 PM IST

बीजेपी ने नितिन नबीन के साथ साथ बिहार और यूपी में भी नई नियुक्तियां की है. बिहार और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्यों में बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं. नितिन नबीन को भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. 

नई नियुक्तियों में भी बीजेपी ने वही रवैया अख्तियार किया है, जो पहले भी देखने को मिला है. करीब करीब वही पैटर्न नजर आता है, जो 2023 के आखिर में हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्रियों के चयन में देखने को मिला था. 

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बीजेपी ये सब ऐसे माहौल में कर रही है जब विपक्ष की तरफ से घोर जातिवाद की राजनीति पर पूरा जोर है. बिहार चुनाव अभी अभी बीता है जहां कास्ट सर्वे भी हो चुका है, और कास्ट सेंसस को लेकर लगातार मुहिम भी चलाई गई है. केंद्र सरकार, बीजेपी की सत्ता है, राष्ट्रीय जनगणना के साथ जाति जनगणना भी कराने जा रही है.

खास बात ये है कि चुनाव बाद बीजेपी ने बिहार में प्रदेश अध्यक्ष ही नहीं बदला है, बल्कि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष भी बिहार से ही बनाया है. राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की नियुक्ति अंतरिम व्यवस्था है, और पूर्णकालिक अध्यक्ष का इंतजार है. 

बिहार की नियुक्तियों का संदेश

बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बिहार से ही आते हैं. और, वो सवर्ण कैटेगरी के हैं. कायस्थ कास्ट से हैं. और, बिहार बीजेपी के नए अध्यक्ष संजय सरावगी भी सवर्ण कैटेगरी वाले ही हैं. वो वैश्य समुदाय से आते हैं - ऐसे देखें तो बीजेपी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और बिहार बीजेपी अध्यक्ष दोनों ही सवर्ण जातियों से आते हैं. 

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क्या बीजेपी को बिहार से दो-दो पदाधिकारियों की सवर्ण जातियों से नियुक्ति करने में जोखिम का एहसास नहीं हुआ? क्या नियुक्तियों में बिहार चुनाव की भी कोई भूमिका हो सकती है?

बिहार में बीजेपी गठबंधन की ऐतिहासिक जीत नेतृत्व से लेकर जमीनी कार्यकर्ता तक हर किसी का जोश हाई करने के लिए पर्याप्त है. बिहार में सत्ताधारी बीजेपी गठबंधन को जातिवाद की राजनीति से ही चुनौती मिल रही थी, लेकिन जनादेश तो जातिवाद की राजनीति के खिलाफ ही रहा.  

बिहार चुनाव के आंकड़े तो यही बताते हैं कि बीजेपी को सभी जातियों का वोट मिला है. बीजेपी को शुरू से ही सवर्णों का समर्थन मिलता रहा है. बिहार चुनाव में सवर्णों के साथ साथ बाकी जातियों का भी वोट मिला है. फिर भी बीजेपी को सवर्ण नेताओं को कमान सौंपते वक्त जोखिम नजर नहीं आ रहा है. 
 
नियुक्ति सवर्णों की, पार्टी पिछड़ों की

हाल की नियुक्तियों में उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने पंकज चौधरी को कमान सौंपी है. नए यूपी बीजेपी अध्यक्ष पंकज चौधरी कुर्मी जाति से आते हैं. कुर्मी, जो ओबीसी कैटेगरी में आते हैं. पंकज चौधरी से पहले यूपी बीजेपी के अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी थे. वो जाट हैं, और ओबीसी नेता हैं. भूपेंद्र चौधरी से पहले स्वतंत्रदेव सिंह यूपी बीजेपी के अध्यक्ष थे, वो भी बीजेपी के ओबीसी चेहरा ही हैं. 

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लेकिन, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के साथ साथ बिहार बीजेपी अध्यक्ष भी बीजेपी सवर्ण को बना रही है. और जिस तरह से बीजेपी ओबीसी वोट हासिल कर रही है, वो खुद को पिछड़ों की भी पार्टी बन जाती है. 

नितिन नबीन का कायस्थ होना पश्चिम बंगाल चुनाव से जोड़ा जा रहा है. बिहार के कायस्थ को बंगाल के भद्र लोक से जोड़ा जा रहा है. बंगाल के बाद बीजेपी के लिए यूपी का चुनाव महत्वपूर्ण है - और समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूले की काट में यूपी बीजेपी अध्यक्ष पंकज चौधरी फिट बैठ जाते हैं. 

बिहार में बीजेपी ने धर्मेंद्र प्रधान को चुनाव प्रभारी बनाया था. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी धर्मेंद्र प्रधान ही प्रभारी थे. और, यूपी में समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूले पर डटे रहने का संकेत है. 

जातिवाद के सवाल, और बीजेपी का जवाब

बीजेपी के पास उसके फैसलों पर उठने वाले सवालों का जवाब भी पहले से है. अब अगर बिहार में बीजेपी अध्यक्ष और राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सवर्ण जातियों से बनाए जाने पर सवाल उठता है, तो यूपी बीजेपी अध्यक्ष का ओबीसी होना सटीक जवाब है. 

1. 2023 में भी भजनलाल शर्मा को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाया गया था, तो मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ऐसे सवालों के जवाब थे. जातिवादी दरारों के बजाय बीजेपी जातिवादी सामंजस्‍य अपनाने की रणनीति अपना रही है. और, ऐसा करके बीजेपी सामाजिक आधार मजबूत करने में सक्रिय है. 

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2. बीजेपी ये भी इशारा कर रही है कि उसे जातीय राजनीति की परवाह नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर कायस्थ नेता को लाकर बीजेपी ये बताने की कोशिश कर रही है कि वो कास्ट कोटे से से बंधी हुई नहीं है. बल्कि, बीजेपी योग्यता, पार्टी के प्रति निष्ठा और चुनावी रणनीति (बंगाल में भद्रलोक का ध्यान रखना) की जरूरतों को तरजीह दी है.

कांग्रेस और बीजेपी में एक फर्क नजर आता है. बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने प्रदेश की कमान सवर्ण से लेकर दलित नेता को सौंप दिया था. बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम दलित नेता हैं. मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने से लेकर चरणजीत सिंह चन्नी को एक समय पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने तक कांग्रेस दलितों का पक्षधर होने का संकेत देती है. 

बिहार में भी कांग्रेस की तरफ से कहा जाता है कि सत्ता में आने पर कास्ट सेंसस कराएंगे. कर्नाटक और तेलंगाना में तो कांग्रेस ऐसे सर्वे भी चुकी है. बीजेपी की केंद्र सरकार पहले तो टालती रही, लेकिन बाद में राष्ट्रीय जनगणना के साथ ही जातीय जनगणना की भी घोषणा कर चुकी है.

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