5 निगाहें जो मोदी-पुतिन मुलाकात को टकटकी लगाए देख रही हैं, क्या भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी?

भारत और रूस का सबंध कोई आज का नहीं है. फिर भी जिस गर्मजोशी से भारत में रूसी राष्ट्रपति पुतिन का स्वागत हुआ है वो बहुत लोगों को पच नहीं रहा होगा. जाहिर है कि इस क्रिया की प्रतिक्रिया भी होगी.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन का ब्रोमांस बहुत लोगों को पसंद नहीं आएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन का ब्रोमांस बहुत लोगों को पसंद नहीं आएगा.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:17 PM IST

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 4-5 दिसंबर 2025 की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी गर्मजोशी भरी मुलाकात (एयरपोर्ट पर हग, एक कार में साथ बैठना, प्राइवेट डिनर) वैश्विक कूटनीति का केंद्र बनी हुई है. 23वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन में रक्षा (S-400, Su-57), ऊर्जा (तेल आयात) और व्यापार ($68.7 बिलियन) पर 25 समझौते होने हैं जो भारत की 'मल्टी-अलाइनमेंट' नीति को मजबूत करते हैं. 

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जाहिर है कि इन बड़े समझौतों और पुतिन की यह यात्रा कई वैश्विक शक्तियों की नजरों में है. मतलब साफ है कि इन शक्तियों की नजर भी भारत को लगेगी. कुछ लोग भारत से नाराज होंगे तो कुछ भारत के खिलाफ फैसले भी लिए जा सकते हैं. पर ऐसा नहीं है कि भारत इन सब बातों से अवेयर नहीं है. भारत यह सब कुछ सोचते समझते हुए भी अगर पुतिन के सम्मान में पलक पावड़े बिछा रहा है तो इसका मतलब क्या है? आइये देखते हैं...  

1. क्या डोनाल्ड ट्रंप (अमेरिका) की भृकुटी और तनेगी? 

अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप भारत से पहले ही चिढ़े हुए हैं. अमेरिकी भारी टैरिफ की आंच से त्रस्त भारत पर ट्रंप की भृकुटी और तन सकती है. यह जगजाहिर है कि उनकी नजर अपने विरोधियों पर विशेष तौर पर रहती है. सितंबर 2025 के SCO शिखर में मोदी-पुतिन-शी तस्वीर पर ट्रंप ने 'ट्रुथ सोशल' पर 'भारत रूस की युद्ध मशीन को फंड कर रहा' का आरोप लगाया था.  

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ट्रंप के दूत स्टीव विटकॉफ और जेरेड कुश्नर मॉस्को में शांति प्लान पर बात कर रहे हैं, लेकिन मोदी-पुतिन की 'ब्रोमांस' (गार्जियन) से ट्रंप को लगेगा कि भारत उनकी मध्यस्थता को कमजोर कर रहा.  ट्रंप इस मुलाकात को भारत की 'रूस-झुकाव' के रूप में देख सकते हैं. सवाल उठता है. क्या इससे भारत के खिलाफ उनके सैंक्शन और बढ़ेंगे? काफी हद तक इसका उत्तर हां में दिया जा सकता है. पर यह भी हो सकता है कि ट्रंप पर भारत से रिश्ते सुधारने का दबाव बढ़े.

ट्रंप को यह बात समझ में आ सकती है कि आज जो कुछ भारत में हो रहा है उसके जिम्मेदार वो खुद हैं. अगर भारत को छेड़ा न होता तो शायद आज ये दिन नहीं देखने को मिलता. ट्रंप पर यह दबाव तो बनेगा ही कि अगर अब भी भारत से रिश्ते नहीं सुधारे तो भारत पूर्ण रूप से हाथ से निकल जाएगा.

चैथम हाउस कहता है कि भारत की 'हेजिंग' (दोनों तरफ खेलना) ट्रंप को चिढ़ाती है, जो भारत को चीन-विरोधी 'बुल' बनाना चाहते हैं.  फिर भी, संबंध पूरी तरह बिगड़ने की बजाय 'मैनेज्ड टेंशन 'प्रभावी रहेगा. बीबीसी के अनुसार, मोदी ट्रंप को 'ट्रू फ्रेंड' कह चुके हैं, और भारत US तेल आयात को बढ़ा रहा है.

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2-शी जिनपिंग (चीन) क्या भारत को और कैजुवल लेने लगेंगे? 

चीन की नजर SCO/BRICS जैसे मंचों पर भारत-रूस साझेदारी को बूस्ट देने वाली है.  ग्लोबल टाइम्स के अनुसार, यह यात्रा रूस-चीन 'नो लिमिट्स' पार्टनरशिप को मजबूत करती दिखती हैं, लेकिन LAC तनाव अनसुलझा है. मॉडर्न डिप्लोमेसी कहता है कि यह 'गैर-पश्चिमी एकजुटता' का संकेत है, जो चीन को भारत को 'कैजुअल' लेने का मौका दे सकता है. 

 दिल्ली यात्रा पर चीनी मीडिया ने इसे 'रणनीतिक और बाहरी दबाव से मजबूत' बताया है. लेकिन क्या चीन का मन अब और नहीं बढ़ जाएगा और भारत को और कैजुअल (हल्का) लेगा? काफी हद तक यह बात सही हो सकती है. क्योंकि सीमा विवाद (LAC) अनसुलझा है. क्रेमलिन प्रशासन यह कह चुका है कि चीन और रूस की दोस्ती लिमिटलेस है. अर्थात रूस अपने दोस्त चीन के लिए किसी भी सीमा तक जा सकता है. जाहिर है कि ऐसे में भारत यह उम्मीद नहीं कर सकता है कि चीन से संघर्ष की स्थिति में उसे पुतिन का साथ मिलने वाला है.

3- यूरोपीय संघ की नाराजगी

ईयू की नजर रूसी तेल आयात (भारत का 40%) पर है, जो सैंक्शंस को चुनौती देता है. यात्रा से ठीक पहले जर्मन-फ्रांसीसी-ब्रिटिश राजदूतों का संयुक्त लेख 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपा, जिसमें पुतिन को 'शांति के प्रति गंभीर न होने' का आरोप लगाया. ईयू ने भारत से निजी अपील की है कि'मोदी पुतिन को युद्ध रोकने को कहें'.

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दूसरी ओर चैथम हाउस के अनुसार, यह ईयू-भारत FTA वार्ता को धीमा कर सकता है.पोलैंड के विदेश सचिव व्लादिस्लाव बार्टोज़ेवस्की ने कहा, मोदी पुतिन से शांति सौदे पर बात करें. यह साफ दिख रहा है कि ईयू की पूरी नजर मोदी और पुतिन की मुलाकात पर है.यूरोपीय देशों को भरोसा भी है कि भारत यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए जरूर कदम उठाएगा.

 गार्जियन के अनुसार, ईयू के नए सैंक्शंस से भारतीय निजी क्षेत्र के खरीद में कमी आई, लेकिन मोदी ने तेल आयात जारी रखने का संकल्प दोहराया. अब सवाल उठता है कि क्या यूरोपीय देशों के भारत से संबंध बिगड़ेंगे?  ईयू-भारत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) की वार्ता (जर्मनी ने 2025 अंत तक फाइनल करने का वादा) प्रभावित हो सकता है, क्योंकि यूरोप भारत को ट्रेड नेटवर्क्स के लिए जरूरी मानता है. 

न्यूयॉर्क टाइम्स कहता है कि यह यात्रा रूस की अलगाव को कम करती है, जो ईयू के प्रयासों को झटका है. फिर भी, संबंध बिगड़ने की बजाय संतुलित रहेंगे. भारत की 'मल्टी-अलाइनमेंट' नीति ईयू के लिए उपयोगी है . भारत का ग्लोबल साउथ लीडर, चीन-विरोधी बैलेंसर के रूप में पूछ बनी रहेगी. 

 अप्रैल 2025 का फ्रांस के साथ राफेल डील और जुलाई 2025 का यूके FTA मजबूत बंधन दिखाते हैं कि भारत के साथ यूरोप के संबंध किसी भी कीमत पर खराब नहीं होने वाले हैं. भारत के साथ सबसे बड़ा प्लस पॉइंट यह है कि ईयू भारत को यूक्रेन शांति में मध्यस्थ मानता है, जहां मोदी की अपील (युद्ध का समय नहीं) स्वागत किया गया था. अगर 2026 में यूक्रेन को लेकर कोई शांति वार्ता तैयार होती है तो संभावना है कि भारत हीरो बनकर उभरेगा. यही कारण है कि यह यात्रा वैश्विक राजनीति में भारत की बढ़ती ताकत का प्रमाण बन रही है. 

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4-क्या पाकिस्तान अमेरिका की गोद में चला जाएगा

पुतिन-मोदी मुलाकात पर पाकिस्तान की नजर भी है. पाकिस्तान के लिए यह चिंता का विषय है, क्योंकि मई 2025 के भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष (ऑपरेशन सिंदूर) में S-400 और ब्रह्मोस ने पाकिस्तानी हमलों को नाकाम किया था. इस यात्रा के जरिए भारत को बड़े पैमाने पर एस-400 ही नहीं इससे उन्नत तकनीक भी मिलने की संभावना बढ़ी है.
 पाकिस्तानी मीडिया (द नेशन) ने इसे 'क्षेत्रीय संतुलन बिगाड़ने वाला' बताया है.पाकिस्तान की नजर इस मुलाकात पर इसलिए है, क्योंकि यह भारत की 'मल्टी-अलाइनमेंट' नीति को मजबूत करती है. जैसे रूस से हथियार और तेल लेते हुए अमेरिका से क्वाड में सहयोग करना.

 अब सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान भारत से मुकाबले के लिए अमेरिका की 'गोद' में बैठ जाएगा? काफी हद तक यह सही है. ट्रंप प्रशासन के साथ पाकिस्तान के संबंध 2025 में तेजी से सुधरे हैं. मई 2025 ट्रंप को पाकिस्तान ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया . इसके बाद ट्रंप ने पाकिस्तानी आर्मी चीफ आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में लंच पर आमंत्रित किया था जो एक अभूतपूर्व कदम था. 
 पाकिस्तान ने वॉशिंगटन लॉबिंग फर्मों को $5 मिलियन दिए, जिसके बाद ट्रंप ने पाकिस्तानी सामानों पर 29% टैरिफ लगाए, लेकिन भारत पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया. साफ दिखता है कि अमेरिका में पाकिस्तान को 'एज' मिल गई. 

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ट्रंप की 'ट्रांजेक्शनल डिप्लोमेसी' पाकिस्तान को फायदा पहुंचा रही है. न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, पाकिस्तान ने रेयर अर्थ मिनरल्स, क्रिप्टो माइनिंग और AI हब के प्रस्ताव दिए, जिससे ट्रंप प्रभावित हुए. इसके साथ ही पाकिस्तान का US के साथ सैन्य चैनल डी-एस्केलेशन के लिए उपयोगी है, और ट्रंप पाकिस्तान को 'रेडिकल इस्लामिक टेररिज्म' के खिलाफ पार्टनर मानते हैं. ट्रंप की पाकिस्तान-समर्थक नीति (पिछली बार की तरह) कश्मीर और आतंकवाद पर दबाव बढ़ा सकती है. 

5- क्वाड देशों की उम्मीद क्या टूटेगी ?

मॉडर्न डिप्लोमेसी की रिपोर्ट के अनुसार, रूस का अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ भारत का समर्थन न्यू दिल्ली को 'मॉस्को-केंद्रित' कक्षा में धकेल रहा है, जो इंडो-पैसिफिक विश्वसनीयता को कमजोर करता है और क्वाड की एकजुटता को नुकसान पहुंचाता है. 

 ट्रंप प्रशासन के 50% टैरिफ के बीच यह मुलाकात रूस को 'बूस्ट' देती दिखती है, जो यूक्रेन शांति प्रयासों को प्रभावित करती है. चैथम हाउस कहता है कि भारत का रूस-झुकाव पश्चिमी दबाव के बीच क्वाड से लगाव को चुनौती देता है.  यूरेशिया रिव्यू के अनुसार, यह क्वाड की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है. क्वाड का फोकस चीन-विरोधी है, लेकिन रूस-चीन 'नो लिमिट्स' पार्टनरशिप भारत को असहज बनाती है. 

फिर भी, स्थिति पूरी तरह कमजोर नहीं होनी चाहिए. भारत की भौगोलिक स्थिति (हिंद महासागर) और सैन्य क्षमता क्वाड के लिए अपरिहार्य है. बीबीसी के अनुसार, यह 'रणनीतिक स्वायत्तता' का खेल है. रूस से ऊर्जा लेते हुए क्वाड में सक्रिय रहना. द ट्रिब्यून कहता है कि भारत क्वाड और ब्रिक्स दोनों में पुल का काम कर रहा है.  दिसंबर 2025 के क्वाड समिट (भारत में) में ट्रंप की संभावित उपस्थिति बैलेंस बहाल कर सकती है.

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