'सनातन' विवाद पर राजनीतिक मजबूरी के चलते स्टालिन पिता-पुत्र के रास्ते अलग हुए!

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन तो खुद को ऐसे पेश कर रहे हैं जैसे उनके जैसा हिंदू धर्म का खैर-ख्वाह मौजूदा दौर में कोई और है ही नहीं - और डीएमके तो जैसे हिंदू धर्म के उत्थान के लिए ही सत्ता में भी आयी है. लेकिन, उनके बेटे उदयनिधि ने एक ट्वीट करके अपने विचार पर फिर मुहर लगा दी है.

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क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद एमके स्टालिन का मन बदल गया? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद एमके स्टालिन का मन बदल गया?

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 12 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 7:38 PM IST

डीएमके को अचानक सनातन धर्म की फिक्र होने लगी है? और अचानक ये फिक्र क्यों हो रही है, समझना भी मुश्किल हो रहा है.  तमिलनाडु सरकार के मंत्री उदयनिधि स्टालिन की सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया की तरह खत्म कर देने वाले बयान के बाद आखिर डीएमके नेता एमके स्टालिन की फिक्र का क्या मतलब रह जाता है? वो भी तब जब शुरू में वो सपोर्ट कर चुके हों.

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मुख्यमंत्री एमके स्टालिन अब तो ऐसे पेश आ रहे हैं जैसे तमिलनाडु में वो और उनकी पार्टी ही सबसे बड़ा मंदिर आंदोलन चला रहे हों. पहले बेटे के बयान का पूरा सपोर्ट करने के बाद डीएमके नेता एमके स्टालिन की ताजा फिक्र काफी हैरान करती है.

एक तरफ उदयनिधि स्टालिन हैं कि कह रहे हैं कि वो अपनी बात पर पहले की तरह ही कायम हैं, दूसरी तरफ उनके पिता एमके स्टालिन हैं जो बता रहे हैं कि उनकी सरकार में तमिलनाडु में अब तक एक हजार मंदिरों में अभिषेक कराया जा चुका है - माजरा क्या है?

द्रविड़ राजनीति में हिंदू धर्म का क्या काम?

मुख्यमंत्री ने खास तौर पर अपनी सरकार में काम कर रहे हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ कार्य विभाग की भी खूब तारीफ की है. एमके स्टालिन ने हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ कार्य विभाग देख रहे अपने कैबिनेट साथी पीके शेखर बाबू की भी काफी तारीफ की और बताया कि डीएमके की सरकार बनने के दो साल के भीतर ही 5 हजार करोड़ रुपये की मंदिरों की संपत्ति वापस हासिल कर ली गयी है. स्टालिन ने विभाग के मंत्री के साथ साथ अफसरों की भी उनके काम के लिए सराहना की है.

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स्टालिन के मुताबिक, डीएमके सरकार के 28 महीने के कार्यकाल में मंदिरों के पुनरुद्धार पर 650 करोड़ रुपये खर्च किये गये हैं. पश्चिम माम्बलम में काशी विश्वनाथ मंदिर का जिक्र करते हुए एमके स्टालिन ने बताया कि उनकी सरकार में हुआ मंदिर अभिषेक का वो एक हजारवां कार्यक्रम था. 

मान लेते हैं कि तमिलनाडु में ये सब हो रहा है. ये सारे काम तो तभी हो रहे होंगे जब सरकार ये सब सही मानती होगी. सरकार जानबूझ कर ऐसा कोई काम तो नहीं करेगी जो लोक हित के खिलाफ हो.

सवाल ये है कि जिस पार्टी की सरकार मंदिरों और हिंदू धर्म के लिए इतने सारे काम कर रही हो, उसके नेता को ऐसी बातों से इतनी चिढ़ क्यों है? 

उदयनिधि स्टालिन भी तो उसी सरकार में मंत्री हैं, जहां इतने धार्मिक काम हो रहे हैं. फिर वो सनातन धर्म उन्मूलन कार्यक्रम में क्यों जाते हैं? और जाने के बाद ये क्यों कहते हैं कि सनातन धर्म को तो डेंगू और मलेरिया की तरह खत्म कर देना चाहिये?

बात वहीं खत्म भी नहीं होती. डीएमके के एक सीनियर नेता सामने आते हैं - ए राजा. ए राजा कहते हैं कि सनातन धर्म डेंगू और मलेरिया जैसा नहीं, बल्कि एड्स और कुष्ठ रोग जैसा है. कुष्ठ रोगियों के प्रति उनका भाव तो आसानी से समझा जा सकता है. 

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अगर द्रविड़ दर्शन बाकियों को पाखंड मानता है तो उसी को फॉलो करने वाली डीएमके सरकार में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ कार्य विभाग बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ी?

स्टालिन को हिंदू धर्म की फिक्र क्यों होने लगी?

एमके स्टालिन तो खुद को ऐसे पेश कर रहे हैं जैसे उनके जैसा हिंदू धर्म खैर-ख्वाह मौजूदा दौर में कोई और है ही नहीं. और डीएमके तो जैसे हिंदू धर्म के उत्थान के लिए ही सत्ता में भी आयी है.

ये भी दावा है किया जा रहा है कि द्रविड़ दर्शन के साथ चल रही डीएमके सरकार का लक्ष्य ‘हर किसी के लिए सब कुछ’ करना है, और जबसे उनकी सरकार बनी है सभी क्षेत्रों में जबरदस्त विकास दर्ज किया गया है. हिंदू धर्म और मंदिरों के मामले में भी.

सनातन धर्म को लेकर उदयनिधि के स्टैंड को तो देश भर में राजनीतिक सपोर्ट भी मिल रहा था. पहले कांग्रेस भी कन्फ्यूज नजर आयी थी, लेकिन जल्दी ही उसे चीजें समझ में आने लगीं. वो सतर्क हो गयी. प्रियंक खड़गे और कार्ती चिदंबरम जैसे कांग्रेस के कुछ नेता और आरजेडी के मनोज झा और शिवानंद तिवारी जैसे नेता तो खुल कर समर्थन जताने लगे थे. हां, विपक्षी खेमे में होने के बावजूद टीएमसी नेता ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे के साथी नेता संजय राउत को ये सब बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था. 

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क्या एमके स्टालिन ने इसलिए यूटर्न ले लिया, क्योंकि कांग्रेस थोड़ा पीछे हट गयी - और कहने लगी कि वो ऐसे मामलों में सपोर्ट नहीं कर सकती.

क्या एमके स्टालिन इसलिए हिंदू धर्म को लेकर अपने काम गिना रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रियों और नेताओं को बोल दिया था कि सनातन धर्म पर डीएमके के स्टैंड का जोरदार काउंटर करना है

कहीं डीएमके को ऐसा तो नहीं लगने लगा कि बीजेपी तमिलनाडु में भी वैसे ही सेंध न लगा दे जैसे 2019 में पश्चिम बंगाल में किया था?

लेकिन उदयनिधि तो टस से मस नहीं हो रहे

अगर उदयनिधि स्टालिन बार बार दोहराते हैं कि वो सनातन धर्म को लेकर अपने बयान पर कायम हैं, तो क्या समझा जाये? 

अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में भी उदयनिधि स्टालिन कुछ ऐसा ही जताने की कोशिश कर रहे हैं. 11 सितंबर को सोशल साइट X पर उदयनिधि ने मच्छर भगाने वाली और जलती हुई एक अगरबत्ती की तस्वीर डाली है - मतलब तो यही हुआ कि वो अपने मिशन से बिलकुल भी नहीं भटके हैं.

pic.twitter.com/Xvud6n36J3

— Udhay (@Udhaystalin) September 11, 2023

फिर क्या एमके स्टालिन लोगों को गुमराह कर रहे हैं कि वो हिंदू धर्म के लिए इतने सारे काम कर रहे हैं. या दोनों अलग अलग वोट बैंक को संबोधित कर रहे हैं. या फिर बेटे के आगे सीनियर स्टालिन की बिलकुल चल नहीं रही है. 

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