'कमजोर कड़ी' से किंग बने नीतीश कुमार ने चुपके से कैसे पलटी बाजी, जानिये

नीतीश कुमार की छवि, उनके प्रति सहानुभूति, महिला वोटरों का समर्थन, शराबबंदी का प्रभाव और चुनाव से पहले किया गया डायरेक्ट कैश ट्रांसफर बिहार विधानसभा चुनाव में फायदेमंद साबित हुए है - नतीजे संकेत दे रहे हैं कि सत्ता विरोधी नहीं, बल्कि ये सत्ता समर्थक लहर का असर है.

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नीतीश कुमार से साबित किया वो अब भी सुशासन बाबू हैं, और आगे भी रहेंगे. (Photo: ITG) नीतीश कुमार से साबित किया वो अब भी सुशासन बाबू हैं, और आगे भी रहेंगे. (Photo: ITG)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:03 PM IST

ये नीतीश कुमार की जीत है. और, ये नीतीश कुमार ही हैं जिनकी बदौलत जेडीयू ने बीजेपी से कहीं आगे बढ़कर बिहार चुनाव में प्रदर्शन किया है - सबसे बड़ी बात नीतीश कुमार को बिहार के वोटर की पूरी सहानुभूति भी मिली है. बीच बीच में नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की बात हो रही थी, लेकिन नतीजे तो सत्ता समर्थक लहर का संकेत दे रहे हैं.

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ये सहानुभूति भी नीतीश कुमार को करीब करीब वैसी ही मिली है, जैसी 2015 में उनके डीएनए पर सवाल उठाने जैसा ही असर था. जिस तरह से उनको बीमार मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचार का भीष्म पितामह बताया गया - लोगों ने पूरी तरह नकार दिया है.  

और सबसे बड़ी बात नीतीश कुमार की माफी लोगों ने कबूल कर ली है. अव्वल तो वो बीजेपी नेतृत्व से माफी मांग रहे थे. महागठबंधन के साथ जाने को लेकर बार बार दोहराते रहे कि 'दो बार गलती हो गई थी, अब कहीं नहीं जाएंगे' - और मोदी-शाह ही नहीं बिहार के लोगों ने भी नीतीश कुमार की माफी कबूल कर ली है. 

1. वोटिंग से पहले कैश ट्रांसफर का सीधा असर

चुनाव की घोषणा होने से पहले ही बिहार सरकार ने पहली बार में 75 लाख महिलाओं के खाते में सीधे 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर कर दिए गए थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद दिल्ली से इस योजना को लॉन्च किया. बाद में ऐसी लाभार्थी महिलाओं की संख्या एक करोड़ से ऊपर हो गई थी. 

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बिहार चुनाव में एनडीए की तरफ से ये सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक साबित हो रहा लगता है. हालांकि, महागठबंधन की तरफ से एक नैरेटिव चलाने की कोशिश की गई. ये लोन अमाउंट है, या अनुदान? लेकिन लोगों पर लगता नहीं कि कोई असर हो पाया.

जब तेजस्वी यादव को लगा कि नीतीश कुमार के इस दांव से बाजी हाथ से फिसल सकती है तो जीविका दीदियों के लिए उनकी तरफ से नई घोषणाएं हुईं - 30 हजार रुपये महीना वेतन और सरकारी नियुक्ति के अलावा और भी सुविधाएं. 

लेकिन, लोगों को देने के वादे के मुकाबले मिल जाने पर ज्यादा भरोसा हुआ. डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का ये प्रयोग मध्य प्रदेश और कई राज्यों में सफल रहा है. 

2. शराबबंदी पर लोगों ने लगाई मुहर

2015 के चुनाव में महागठबंधन का नेता रहते हुए ही नीतीश कुमार ने शराबबंदी की अहमियत समझ ली थी. महिलाओं के एक कार्यक्रम में जैसे ही ये मांग उठी नीतीश कुमार ने मौके पर ही ऐलान कर दिया कि सत्ता में लौटे तो बिहार में पूर्ण शराबबंदी लालू करेंगे - और चुनावी वादा निभाया भी.

शराबबंदी लागू होने के बाद कई तरह के सवाल उठे. अदालतों में ज्यादा मामले पहुंचने पर भी आपत्ति जताई गई. लेकिन, नीतीश कुमार एक बार शराबबंदी लागू करने के बाद पीछे नहीं हटे. 

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जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने जरूर ये वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो वो शराबबंदी खत्म कर देंगे. तेजस्वी यादव की तरफ से खुलकर तो कोई वादा नहीं किया गया था, लेकिन समीक्षा की बात जरूर हो रही थी - जनादेश से साफ हो गया है कि बिहार के लोग, खासकर महिलाएं शराबबंदी को कायम रखना चाहते हैं. 

3. ब्रांड नीतीश पर वोटर का विश्वास 

2005 से नीतीश कुमार ने लोगों के बीच 'सुशासन बाबू' की जो छवि बनाई है, बिहार चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि वो अब भी कायम है. बिहार में बिजली व्यवस्था और सूबे के कोने कोने तक अच्छी सड़कें, लोगों को आगे भी विकास जारी रहने का विश्वास दिलाया है. 

चुनाव से पहले हत्या की कई घटनाओं की वजह से कानून व्यवस्था को लेकर कई बार सवाल जरूर उठे, लेकिन बीजेपी के साथ मिलकर नीतीश कुमार ने 'जंगलराज' की याद दिलाई, और जल्दी ही न्यूट्रलाइज कर दिया.

बेशक नीतीश कुमार की छवि 'पलटू राम' वाली बना दी गई, लेकिन काम के बूते जेडीयू नेता ने सारे सवालों का जवाब दे दिया है. 

4. महिला वोटर का नीतीश पर भरोसा

महिलाओं के लिए तो नीतीश कुमार ने कुर्सी पर बैठते ही स्कीम शुरू कर दी थी. जिन लड़कियों को नीतीश कुमार ने स्कूल जाने के लिए साइकिल दी, वे अब बड़ी हो गईं. घर बसा लिया, और नीतीश कुमार ने महिलाओं के लिए और भी योजनाएं लागू की - नौकरियों और पंचायतों में आरक्षण के साथ साथ आशा वर्कर को मिल रही सुविधाओं में इजाफा की घोषणाओं ने भी रंग दिखाया है. 

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महिलाओं के लिए वादे तो तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की तरफ से भी किए गए, लेकिन नीतीश कुमार ने चुनाव से पहले भी फायदा पहुंचाकर भरोसा बनाए रखा. ये भरोसा भी कि ये महिलाओं के लिए योजनाएं चलती रहेंगी.

5. सहानुभूति भी नीतीश कुमार को मिली है

नीतीश कुमार पर निजी हमले भी बहुत हुए. प्रशांत किशोर तो तीन साल से उनके खिलाफ कैंपेन ही चला रहे थे. ये ठीक है कि प्रशांत किशोर के निशाने पर तेजस्वी यादव भी हुआ करते थे - लेकिन नीतीश कुमार की सेहत पर जिस तरह सवाल उठाए गए, लगता है बिहार के लोगों को अच्छा नहीं लगा. 

तेजस्वी यादव तो नीतीश कुमार को बीमार मुख्यमंत्री और भ्रष्टाचार का भीष्म पितामह तक कहने लगे थे - और प्रशांत किशोर ने तो बिहार सरकार से मुख्यमंत्री का हेल्थ बुलेटिन जारी करने की मांग कर डाले थे. नतीजों से सबको नामंजूर कर दिया है. 

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