CPI की स्थापना के सौ साल पूरे हुए, आज RSS के मुकाबले कहां खड़ा है वामपंथ

ठीक सौ साल पहले देश में दो विपरीत विचारधारा वाले संगठनों की नींव पड़ी थी. कम्‍युनिस्‍ट पार्टी और इंडिया (CPI) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS). एक लेफ्ट, तो दूसरा राइट. सत्ताधारी पार्टी बीजेपी का मातृ संगठन होने के नाते RSS साल भर से अलग अलग राजनीतिक गतिविधियों में छाया हुआ है, जबकि सीपीआई के समर्थकों की रस्मअदायगी भर महसूस होती है.

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सीपीआई महासचिव डी. राजा को 2026 में अब केरल से ही उम्मीद बची हुई है. (Photo: AI generated) सीपीआई महासचिव डी. राजा को 2026 में अब केरल से ही उम्मीद बची हुई है. (Photo: AI generated)

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:56 PM IST

2025 में RSS और CPI दोनों की स्थापना के 100 साल पूरे हो गए हैं. RSS यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और CPI यानी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी. 26 दिसंबर, 2025 को CPI की स्थापना के भी 100 साल पूरे हो गए. आरएसएस के पहले ही पूरे हो चुके हैं. 

आरएसएस की स्थापना के 100 साल के जश्न करीब साल भर से मनाए जा रहे हैं, लेकिन CPI के सेलीब्रेशन सिमटे हुए हैं. वैसे भी आरएसएस और सीपीआई में बुनियादी फर्क है. वैचारिक फर्क स्थापना की शुरुआत से ही है, और बुनियादी फर्क भी. आरएसएस खुद को गैर राजनीतिक संगठन बताता है, और सीपीआई तो मुख्यधारा की पार्टी रही है. आरएसएस का राजनीतिक विंग भारतीय जनता पार्टी है. 

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भारतीय जनता पार्टी के केंद्र और देश कई राज्यों में सरकार होने की वजह से प्रभाव बना हुआ है, जबकि सीपीआई महज केरल में सत्ताधारी गठबंधन LDF में एक हिस्सेदार भर रह गई है.  

CPI की स्थापना के 100 साल

RSS की स्थापना 27 सितंबर 1925 को हुई थी, और CPI की 26 दिसंबर 1925 मानी जाती है. क्योंकि, उसी दिन कानपुर सम्मेलन हुआ था. 1964 में अलग होकर बनी CPI (M) मानती है कि सीपीआई की स्थापना 17 अक्टूबर, 1920 हुई थी. 

1. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का स्थापना सम्मेलन 26-28 द‍िसंबर, 1925 को कानपुर में हुआ था, जिसमें करीब 500 प्रत‍िन‍िध‍ियों ने ह‍िस्‍सा ल‍िया था.

2. तभी नए राजनीतिक दल का उद्देश्य तय हुआ था, 'ब्र‍िटिश साम्राज्‍यवादी शासन से भारत की मुक्‍त‍ि, उत्‍पादन और व‍ितरण के साधनों का सामाजीकरण. और, उसके आधार पर मजदूरों और क‍िसानों का गणराज्‍य बनाना.'

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3. सीपीआई की सदस्यता के लिए तब ही एक कठिन शर्त भी रख दी गई थी, भारत में अगर कोई क‍िसी भी कम्यूनल ग्रुप का सदस्‍य है, तो वो भारतीय कम्‍युन‍िस्‍ट पार्टी में बतौर सदस्‍य शाम‍िल नहीं किया जाएगा.

1942 के बाद सीपीआई की गत‍िव‍िध‍ियों में तेजी देखी गई, जब संगठन का काफी व‍िस्‍तार हुआ. यहां तक कि भारत के पहले आम चुनाव में कांग्रेस के बाद वह दूसरे नंबर पर थी. जिसके 16 सांसद निर्वाचित हुए थे.लेकिन, 1964 में सीपीआई टूट कर दो हिस्सों में बंट गई. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में नया राजनीतिक दल बना, जो दोनों में बड़ी पार्टी के रूप में उभरी. सीपीआई ने पहले कांग्रेस की इंदिरा गांधी सरकार का सपोर्ट किया, लेकिन बाद में राह बदली और लेफ्ट एकता चल पड़ी. 1990 और फिर 2000 वाले दशक में एक दौर ऐसा भी आया जब CPI देवेगौड़ा, गुजराल और फिर पहली यूपीए सरकार में शामिल हुई.

जब सीपीआई पर पाबंदी लगी

सीपीआई पर 1934 से 1942 तक पाबंदी लगी रही, और उसके बाद 1945 से 1947 के बीच भी हालात प्रतिबंधन लगने जैसे ही रहे. उन्हीं दिनों पीसी जोशी सीपीआई के महासच‍िव बने, और उनकी सूझबूझ और कोशिशों की बदौतल पार्टी को नई द‍िशा भी म‍िली. 

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प्रतिबंधों की बात करें तो RSS को भी ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ा. पहली बार 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद. इमरजेंसी के दौरान 1975 में और 1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद. कुछ दिनों बाद ये प्रतिबंध हटा भी लिए गए थे. 

सीपीआई आज कहां, और कितने पानी में है

राज्यसभा में फिलहाल सीपीआई के दो सांसद हैं, और लोकसभा में भी दो ही सदस्य हैं. लोकसभा के दोनों सदस्य तमिलनाडु से हैं. राज्यसभा को दोनों सदस्य केरल से हैं. 

केरल से राज्यसभा सदस्य पी. संतोष कुमार का कार्यकाल अप्रैल, 2028 तक है, जबकि पीपी सुनीर का कार्यकाल जुलाई, 2030 तक है. देश के तीन राज्यों में सीपीआई के कुल 20 विधायक हैं, बिहार और तेलंगाना में एक-एक विधान परिषद सदस्य भी हैं. 

केरल, तमिलनाडु और मणिपुर में सीपीआई को चुनाव आयोग से स्टेट पार्टी की मान्यता है. केरल की तरह तमिलनाडु में भी सीपीआई सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है. 1996 से 1998 के बीच सीपीआई एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल की केंद्र सरकार में शामिल थी, और 2004 से 2008 तक यूपीए की पहली सरकार में भी सीपीएम के साथ लेफ्ट फ्रंट का हिस्सा थी, लेकिन न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर सपोर्ट वापस ले लिया था. 

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अगर सीपीआई की तुलना में आरएसएस की बात करें तो उसका अलग टार्गेट पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव है, जहां 34 साल तक (1977-2011) लेफ्ट फ्रंट की सरकार रही है. 2026 में पश्चिम बंगाल के अलावा केरल और तमिलनाडु में भी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. आरएसएस केरल और तमिलनाडु में भी जमीनी स्तर पर काम कर रहा है. 

सीपीआई के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती केरल और तमिलनाडु के चुनाव ही हैं, जहां वो सत्ताधारी गठबंधन का हिस्सा है.

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