बिहार विधानसभा चुनावों के लिए शह और मात का खेल हर रोज चल रहा है. विपक्ष ने मतदाता सूची पुनरीक्षण की बात को बहुत बड़ा मुद्दा बना दिया है. जाहिर है कि अगर इसी मुद्दे को आधार बनाकर आरजेडी नेता और प्रदेश के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव विधानसभा चुनावों के बहिष्कार की बात करते हैं तो निश्चित ही वह एनडीए के लिए चिंता का विषय हो जाएगा. तेजस्वी ने मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों को लेकर सवाल उठाए हैं, जैसे कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में दस्तावेजों का नुकसान और बीजेपी पर मतदाता सूची में हेरफेर का आरोप.
इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि तेजस्वी यादव का यह बयान विपक्षी एकजुटता को मजबूत करने और चुनाव आयोग की प्रक्रिया, खासकर मतदाता सूची संशोधन (SIR) पर सवाल उठाने का प्रयास है. उन्होंने कहा कि अगर जनता और विपक्षी दल इस दिशा में सहमत होते हैं, तो बहिष्कार पर विचार हो सकता है.जाहिर है कि तेजस्वी का यह बयान लोकतंत्र में निष्पक्षता को लेकर जनता का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश है. तेजस्वी के बयान पर महागठबंधन एकजुट नजर नहीं आ रहा है. कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों ने अभी तक कोई बयान ऐसा नहीं दिया है जिससे स्थिति स्पष्ट हो सके.
तेजस्वी के बयान में कितनी गंभीरता
हालांकि जिस तरह तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनावों के बॉयकॉट की बात कही है उसमें बहुत गंभीरता नहीं नजर आ रही थी. पर तेजस्वी का राजनीतिक कद आज बिहार की राजनीति में इतना बड़ा हो चुके है कि उनके किसी छोटी सी बात को गंभीरता से ही लिया ही जाएगा. देश की राजनीति में अभी तक बहुत से मुद्दे सामने आए पर कभी किसी राजनीतिक दल ने पूरे चुनाव के बहिष्कार की बात नहीं की. यहां तक कि ईवीएम के दुरुपयोग के मुद्दे पर भी विपक्ष कभी इस निर्णय पर नहीं पहुंचा कि वो चुनावों का बहिष्कार के फैसला कर सके.जाहिर है कि सवाल तो उठेंगे ही. युद्ध के मैदान से चाहे आप जिस भी कारण बाहर जाएं ,कहा तो बहाना करना ही जाता है. पर सवाल यह है तेजस्वी इस बहाने का सहारा क्यों ले रहे हैं. क्या तेजस्वी को बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन की स्थिति एनडीए के आगे कमजोर लग रही है?
तेजस्वी की रणनीति और हार की आशंका
वैसे तो तेजस्वी का विधानसभा चुनावों के बहिष्कार का बयान शुद्ध रूप से एक रणनीतिक कदम है. यह केवल मतदाता सूची पुनरीक्षण को लेकर जनता को सरकार के खिलाफ एकजुट करना है.पर अगर विपक्ष इसे सीरियसली लेता है और चुनावों से अलग होने का एलान करता है तो निश्चित संदेश जाएगा कि उसे हार स्पष्ट दिख रही है. क्योंकि अगर जीत दिख रहा होता तो कोई भी दल मैदान छोड़ने की बात नहीं करता. अब सवाल उठता है कि आखिर वो कौन से कारण हैं जिसके चलते तेजस्वी को लग रहा है कि आगामी चुनावों में उन्हें शिकस्त मिल सकती है.
जैसा कि हम जानते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों में महागठबंधन को केवल 9 सीटें मिलीं, जबकि एनडीए 31 सीटें जीतने में सफल हुई थी. ऐसे समय में जब एनडीए का प्रदर्शन यूपी में खराब हुआ बिहार में उम्मीद से बेहतर किया.जाहिर है कि इसका सीधा मतलब है कि महागठबंधन की स्थिति बिहार में कमजोर हुई है. सी-वोटर सर्वे में भी यही बात सामने आई है.तेजस्वी की लोकप्रियता 41% से घटकर 35% हो गई है, जबकि नीतीश कुमार के काम से 58% लोग संतुष्ट हैं. हाल फिलहाल में नीतीश कुमार अपने कई फैसलों से अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने में सफल हुए हैं.
वोटर लिस्ट पुनरीक्षण होने से भी महागठबंधन के कमजोर होने की आशंका बल पकड़ रही है. तेजस्वी यूं ही नहीं मतदाता सूची संशोधन पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि सरकार वोटर चुन रही है. दरअसल जो 53 लाख वोट कैंसल हो रहे हैं उनमें 90 प्रतिशत ऐसे वोटर्स हैं जिन्हें सीधे सीधे महागठबंन का वोट कहा जा सकता है. इसके ठीक विपरीत बिहार में एनडीए की स्थित लगातार मजबूत हो रही है. नीतीश कुमार की विकास-केंद्रित छवि और 35% महिला आरक्षण जैसे कदमों ने उनकी स्थिति को और मजबूत किया है. बीजेपी ने तेजस्वी को क्रेडिट चोर कहकर उनके दावों को कमजोर करने की कोशिश की है.
क्या तेजस्वी का यह तीर चुनावों में कारगर होगा?
तेजस्वी का यह बयान मुख्य रूप से एक राजनीतिक रणनीति ही लगता है. जिसका एक मात्र लक्ष्य एनडीए सरकार और चुनाव आयोग पर सवाल उठाकर विपक्षी गठबंधन को एकजुट करना. इसके साथ ही अपने कोर वोट बैंक यादव, मुस्लिम, और ओबीसी समुदाय को अपने पक्ष में मोबलाइज करना है. मतदाता सूची में कथित हेरफेर का मुद्दा उठाकर तेजस्वी बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जनता का जबरदस्त समर्थन हासिल कर सकते हैं.
विपक्ष अगर चुनावों का बहिष्कार करता है तो हमेशा से सत्ता पक्ष के सामने परेशानी खड़ी होती रही है. जाहिर है कि तेजस्वी अगर अपने फैसले पर अडिग रहते हैं और उन्हें उनके सहयोगी दलों का भी इस मुद्दे पर सपोर्ट मिलता है तो एनडीए असहज हो सकता है. एनडीए नेताओं को पहले से ही लग रहा है कि मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर पहले ही जनता नाराज हो रही है.
बिहार में ग्रामीण और गरीब वर्ग मतदान को अपने अधिकार के रूप में देखती है. तेजस्वी का बहिष्कार वाला बयान उनमें असंतोष जगा सकता है. पर तेजस्वी के लिए मुश्किल यह है कि इस रणनीति की सफलता के लिए महागठबंधन में एकजुटता जरूरी है. लेकिन कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों ने अभी तक इस बयान पर स्पष्ट समर्थन नहीं दिखाया है. अगर विपक्ष एकजुट नहीं हो पाता, तो यह बयान केवल प्रतीकात्मक रह जाएगा. तेजस्वी को अगर बहिष्कार को अपना हथियार बनाना है तो अपने सहयोगियों को पहले एकजुट करना होगा.
संयम श्रीवास्तव