मुस्लिम कयादत या इमेज बिल्डिंग? मदनी और ओवैसी की सियासी अदावत के क्या हैं मायने

मौलाना महमूद मदनी और उससे पहले मौलाना अरशद मदनी ने बयान देकर सियासी भूचाल ला दिया है. बिहार चुनाव के बाद मौलाना मदनी के बयान को असदुद्दीन ओवैसी के बढ़ते सियासी कद से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसे में मुस्लिम कयादत या फिर इमेज बिल्डिंग का सवाल है.

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मुस्लिम लीडरशिप पर फाइट: असदुद्दीन ओवैसी बनाम मौलाना महमूद मदनी (Photo-ITG) मुस्लिम लीडरशिप पर फाइट: असदुद्दीन ओवैसी बनाम मौलाना महमूद मदनी (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 02 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:57 PM IST

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी का कहना है कि अगर ज़ुल्म होगा तो जिहाद होगा. भोपाल में अपने एक कार्यक्रम के दौरान महमूद मदनी ने कहा कि इस्लाम के दुश्मनों ने जिहाद जैसे इस्लाम के पवित्र विचार को गलत और हिंसा में बदल दिया है. इसीलिए कहता हूं जब-जब ज़ुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा.

महमूद मदनी ही नहीं बल्कि उनके चाचा मौलाना अरशद मदनी ने भी हाल ही में कहा था कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी पर हुई कार्रवाई शिक्षा पर हमला नहीं बल्कि मुस्लिम संस्थानों को डराने की राजनीति है. उन्होंने कहा कि अमेरिका के न्यूयॉर्क और लंदन जैसे बड़े शहरों में मुसलमान मेयर बन सकते हैं, लेकिन भारत में अपनी बनाई हुई किसी यूनिवर्सिटी का चांसलर भी मुस्लिम नहीं बन सकता.

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अरशद मदनी और महमूद मदनी के बयान ऐसे समय आए हैं, जब देशभर में सीएए (CAA) की प्रक्रिया चल रही है. बिहार विधानसभा चुनाव में मदनी परिवार के विरोध के बावजूद असदुद्दीन ओवैसी पहले से ज्यादा ताकतवर बनकर उभरे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या मुस्लिम क़यादत के लिए आक्रामक तेवर अपनाया है या फिर मुसलमानों के बीच अपनी इमेज बिल्डिंग को सुधारने का चाचा-भतीजे का दांव है?

मुसलमानों की कयादत क्या बदल रही है?

मुस्लिम क़यादत का मतलब मुस्लिम नेतृत्व यानी मुसलमानों का लीडर. देश में मुसलमानों की आबादी करीब 15 फीसदी है. आज़ादी के बाद से मुस्लिमों की क़यादत कभी किसी राजनीतिक व्यक्ति के हाथों में नहीं थी बल्कि मुस्लिम संगठनों और उलेमाओं के पास रही.

जमात-ए-इस्लामी हिंद, जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे संगठनों की पकड़ रही. इन्हीं संगठनों ने मुस्लिम राजनीति की दशा और दिशा तय की है, लेकिन नरेंद्र मोदी के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद मुस्लिम सियासत पूरी तरह से बदल गई है. असदुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद के चार मीनार के इलाके से निकलकर देशभर के मुसलमानों की राजनीतिक क़यादत करने का नया सियासी दांव चला.

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ओवैसी देखते ही देखते मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय होने लगे, पहले महाराष्ट्र और अब उत्तर भारत के इलाके में भी अपने सियासी पैर पसारने शुरू कर दिए हैं. बिहार के सीमांचल में दूसरी बार 5 सीटें जीतने में कामयाब रहे हैं. अलग-अलग फिरकों में बंटे मुसलमानों की दीवार को तोड़कर अपनी जगह बना रहे हैं और मुसलमानों से जुड़े हर मुद्दे पर मुखर होकर आ रहे हैं, जैसे एक समय देश के मौलाना और उलेमा नजर आते थे. 

 मुस्लिम सियासत के नए चेहरा ओवैसी

असदुद्दीन ओवैसी भारतीय राजनीति में खुद को मुस्लिम चेहरे के तौर पर स्थापित करने में जुटे हैं. 2014 के बाद से देशभर में ओवैसी का ग्राफ तेजी से बढ़ा है. 2019 में ओवैसी हैदराबाद सीट से खुद जीतने के साथ-साथ महाराष्ट्र के औरंगाबाद सीट से इम्तियाज जलील (AIMIM से) को जीतने में कामयाब रहे थे, जो इस बार चुनाव हार गए. हालांकि, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में तीसरी बार उनकी पार्टी जीतने में सफल रही.

बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में पांच सीटें जीतने में सफलता हासिल की. 2020 में भी ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटें जीती थीं, जिसमें से चार विधायक आरजेडी के खाते में चले गए थे. अख्तरुल ईमान ही इकलौते AIMIM विधायक थे., 2025 में ओवैसी ने अपनी पाxचों पुरानी सीटें दोबारा से जीत ली हैं.

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ओवैसी का राजनीतिक तौर-तरीका पूरी तरह से मुस्लिम उलेमाओं की तरह नजर आता है. ऐसे में मुस्लिम समुदाय के बीच बढ़ते ओवैसी के सियासी ग्राफ से मौलाना महमूद मदनी चिंतित नजर आए थे. इसके लिए उन्होंने खुलकर बयान भी दिया था.

ओवैसी बनाम मदनी में छिड़ी अदावत

मौलाना महमूद मदनी ने पिछले दिनों AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी को लेकर ऐसा बयान दिया था, जिसके बाद मुस्लिम खेमा दो खेमों में बंट गया था. एक खेमा ओवैसी के पक्ष में खड़ा होकर महमूद मदनी की विचारधारा पर सवाल खड़े करने लगा था. इन पक्ष में मुस्लिम लीग और दारुल उलूम जैसे बड़े मुस्लिम संगठन भी शामिल थे.

महमूद मदनी ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैं असदुद्दीन ओवैसी साहब को जहां तक जानता हूं, मैं उनकी सियासत और राजनीतिक विचारधारा से सहमत नहीं हूं, उनकी राजनीति बांटने वाली है. उससे उन्हें भी फायदा होता है. दूसरों को उससे ज़्यादा फायदा होता है, लेकिन उससे मुस्लिमों को नुकसान है.'

ओवैसी की रैली में जुटने वाली भीड़ पर मदनी ने कहा था कि यह पागल लोगों का मजमा है. यूपी के मुस्लिम ओवैसी को अपना नेता नहीं मानते हैं. उनकी राजनीति को यूपी में पनपने नहीं दूंगा. मौलाना महमूद मदनी के द्वारा दिए गए बयान को लेकर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी और समर्थकों ने मोर्चा खोल दिया था.

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ओवैसी का सियासी इम्पैक्ट से चिंतित

मालेगांव से AIMIM विधायक मुफ्ती इस्माइल ने कहा, "महमूद  मदनी ने जो कुछ भी असदुद्दीन ओवैसी के लिए कहा, वो सही नहीं है. देश में आज मुसलमानों के लिए बोलने वाला कोई नहीं है. मुसलमानों के मुद्दे पर खामोश हैं, मौलाना मदनी भी नहीं बोलते, जैसा ओवैसी बोलते हैं, लेकिन जो हरकत उन्होंने की है, वह ठीक नहीं है. उनकी नादानियों की वजह से ही जमीयत दो गुटों में बंट गई है.

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मुस्लिम सियासत पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि मुस्लिम राजनीति अब बदल गई है और उलेमाओं और मुस्लिम संगठनों की पकड़ से बाहर निकली है और ओवैसी मुस्लिम के बीच नए चेहरे के तौर पर उभरे हैं. बिहार चुनाव के नतीजे बता रहे हैं कि मुस्लिमों के बीच ओवैसी की पकड़ मजबूत हो रही है और उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद अपनी छवि को मुस्लिम राष्ट्रवादी नेता के तौर पर भी स्थापित किया है. 

सैय्यद कासिम कहते हैं कि ओवैसी के बढ़ते कद के चलते ही मौलाना महमूद मदनी हों या फिर मौलाना अरशद मदनी दोनों बेचैन हैं, क्योंकि अभी तक मुस्लिम क़यादत पर इनकी मजबूत दावेदारी हुआ करती थी. अब एक नई मुस्लिम राजनीति खड़ी हो रही है, जो उनकी पकड़ से बाहर है. 

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मदनी की सरकार परस्त बनती छवि

मोदी सरकार आने के बाद से महमूद मदनी की छवि सरकार परस्त बन गई थी. मुसलमानों के विरोध के बावजूद महमूद मदनी ने कहा था कि सरकार चाहे तो CAA और NRC लागू कर सकती है. उन्होंने कहा था कि देश में NRC जरूर आनी चाहिए, जमीयत असम में काफी सालों से यह मांग कर रही थी. हम नहीं डरते, आप हमें घुसपैठिया मत बताइए. इतना ही नहीं महमूद मदनी ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने के कदम का भी समर्थन किया था.

वहीं, जमीयत-उलेमा-ए-हिंद प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को हिंदू समुदाय का वैध प्रतिनिधि संगठन घोषित कर दिया था. हिंदू-मुस्लिम एकता पर चर्चा के लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत से मुलाक़ात करने दिल्ली के संघ कार्यलय पहुंच गए थे. इस तरह से संघ के साथ उनकी बढ़ती नजदीकियों को लेकर मुस्लिम समुदाय में सवाल उठने लगे थे. इसके अलावा यह भी कहा जा रहा था कि मुस्लिमों के मुद्दे पर खामोशी से भी कई सवाल खड़े होने लगे थे. 

इमेज बिल्डिंग की एक्सरसाइज है?

मुस्लिम सियासत पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार खुर्शीद रब्बानी कहते हैं कि महमूद मदनी ने जिस तरह से सीएए-एनआरसी और धारा 370 पर सरकार का समर्थन किया है, उसके चलते मुस्लिम समुदाय के बीच उनकी छवि को झटका लगा है. ऐसे में अब उन्होंने जिस तरह से बयान दिया है, उसके पीछे एक बड़ी वजह मुसलमानों के बीच अपनी इमेज बिल्डिंग को बेहतर बनाने की एक कोशिश हो सकती है.

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खुर्शीद रब्बानी कहते हैं कि देश में आज मुस्लिमों की हालत किसी से भी छिपी नहीं है, देश में मस्जिदें-मदरसे सुरक्षित नहीं हैं. उनके जानमाल के साथ खेला जा रहा है. इसके बावजूद मुस्लिमों के लिए कोई भी बोलने को तैयार नहीं है. ऐसे में महमूद मदनी ने आक्रामक और सख्त तेवर अपनाकर एक सियासी संदेश देने की कवायद की है कि मुसलमानों के साथ खड़े हैं और उनके मुद्दों को उठाने से पीछे नहीं हटेंगे. 

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सैयद कासिम भी मानते हैं कि मुसलमानों की समस्याओं पर देशभर में एक खामोशी है, जिसमें सिर्फ असदुद्दीन ओवैसी ही खुलकर बोल रहे थे. इसके चलते मुस्लिम उलेमाओं पर, खासकर जो लोग पहले मुस्लिम मुद्दे पर आक्रामक रहा करते थे, उन पर सवाल खड़े हो रहे थे. ओवैसी ने भी महाराष्ट्र चुनाव के बाद उलमाओं को निशाने पर लिया है. कुछ मौलाना को लिफाफे वाला बता रहे थे, 

बिहार चुनाव के नतीजे के बाद मुझे लगता है कि मुस्लिम कयादत का दावा करने लोगों ने समझा कि अगर खामोश रहे तो फिर पूरी मुस्लिम सियासत ही उनके पकड़ से निकल जाएगी. इसीलिए वो आजकल सख्त तेवर अपना कर मैसेज दे रहे हैं. इस तरह से अपनी छवि को मुस्लिम परस्त बनाने की है. 

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