मुंबई पर टिकी है उद्धव की पूरी सियासत... अगर बीएमसी चुनाव हारे तो भंवर में फंस जाएगा सियासी फ्यूचर

मुंबई की बीएमसी सहित 29 नगर निगम चुनाव के लिए 15 जनवरी को वोटिंग है. बीएमसी पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना का 1996 से कब्जा है, लेकिन बदली ही राजनीति में उद्धव के लिए बीएमसी चुनाव किसी सियासी संजीवनी से कम नहीं है. अगरे जीते वापसी की संभावना बनी रहेगी और हारे भंवर में फंस जाएगा सियासी फ्यूचर?

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बीएमसी चुनाव उद्धव ठाकरे के लिए कितना अहम (Photo-PTI) बीएमसी चुनाव उद्धव ठाकरे के लिए कितना अहम (Photo-PTI)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 19 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:28 PM IST

महाराष्ट्र में अब बारी 74 हज़ार करोड़ रुपए के बजट वाली बीएमसी चुनाव की है. चुनाव आयोग ने मुंबई के बीएमसी सहित सभी 29 नगर निगम के लिए चुनाव का ऐलान कर दिया है. 15 जनवरी को मतदान होगा और 16 जनवरी को नतीजे आएंगे. बीएमसी पर उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना का 1996 से कब्जा है.

उद्धव ठाकरे के सामने अपना आखिरी किला बचाए रखने की चुनौती है, क्योंकि महाराष्ट्र की सत्ता पहले ही गंवा चुके हैं. सिर्फ सत्ता ही नहीं बल्कि पार्टी और बालासाहेब ठाकरे की विरासत भी उनके हाथों से निकल गई है. वहीं, महाराष्ट्र की सत्ता पर पूरी तरह से काबिज होने के बाद बीजेपी की नजर बीएमसी पर है. इस बहाने मुंबई की सियासत पर अपना दबदबा बीजेपी कायम रखना चाहती है.

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बीएमसी की 227 पार्षद सीटें हैं, मेयर बनाने के लिए 114 सीटों की जरूरत है. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के साथ रहते हुए बीजेपी मुंबई की सियासत पर अपना वर्चस्व कायम नहीं कर सकी, लेकिन अब एकनाथ शिंदे के सहारे फतह करने का प्लान बनाया है. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने अपना आखिरी सियासी दुर्ग को बचाए रखने के राज ठाकरे से हाथ मिला लिया है. ऐसे में देखना है कि बीएमसी चुनाव में 'ठाकरे ब्रदर्स' कैसे फडणवीस-शिंदे की जोड़ी से पार पाते हैं?

बीएमसी पर उद्धव का एकक्षत्र राज

बीएमसी की सत्ता साढ़े तीन दशक से उद्धव ठाकरे की शिवसेना के हाथों है. महाराष्ट्र की सत्ता बदलती रही, लेकिन मुंबई की राजनीति पर उद्धव का कब्जा बरकरार रहा. 1996 से लेकर 2022 तक शिवसेना (यूबीटी) का मेयर चुना जाता रहा. इसकी वजह यह रही कि शिवसेना की सियासत मुंबई से शुरू हुई और सियासी आधार भी यहीं पर है.

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2022 में शिंदे ने उद्धव ठाकर के खिलाफ बगावत कर बीजेपी के साथ गए तो मुंबई से बाहर के नेताओं का साथ मिला. मुंबई के नेता और ज्यादातर विधायक उद्धव ठाकरे के साथ खड़े रहे. इस तरह मुंबई पर सियासत पर उद्धव की पकड़ बनी रही, लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) को झटका दिया. ऐसे में उद्धव ठाकरे मुंबई पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं. शिवसेना को बीएमसी की सत्ता से हटाकर ही असली चोट देने के फिराक में बीजेपी है.

उद्धव के लिए अस्तित्व की लड़ाई

उद्धव ठाकरे के लिए बीएमसी (BMC) चुनाव जीतना केवल एक नगर निकाय का चुनाव नहीं, बल्कि उनके लिए राजनीतिक अस्तित्व और विरासत की सबसे बड़ी लड़ाई है. करीब तीन दशकों तक बीएमसी पर अविभाजित शिवसेना का कब्जा रहा है, लेकिन 2022 के विभाजन के बाद स्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं

एकनाथ शिंदे की बगावत और चुनाव आयोग द्वारा उन्हें 'असली शिवसेना' और 'धनुष-बाण' का प्रतीक दिए जाने के बाद, उद्धव ठाकरे के लिए यह साबित करना जरूरी है कि जनता का समर्थन अभी भी ठाकरे परिवार के साथ है. बीएमसी का चुनाव जीतकर यह उद्धव ठाकरे संदेश देना चाहेंगे कि मुंबई का शिवसैनिक अभी भी 'मातोश्री' के प्रति वफादार है.

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उद्धव के लिए आर्थिक पावर हाउस

महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर होने के बाद बीएमसी ही उद्धव ठाकरे के लिए आर्थिक पावर हाउस है. बीएमसी का बजट भारत के कई छोटे राज्यों के कुल बजट से भी अधिक है. बजट 2025-26: बीएमसी का अनुमानित बजट लगभग 74,427 करोड़ रुपये से अधिक है. ऐसे में बीएमसी की सत्ता पर रहने वाले राजनीतिक के लिए भी सियासी तौर पर काफी अहम है.

बीएमसी की वित्तीय शक्ति शिवसेना को अपने जमीनी नेटवर्क (शाखाओं) को चलाने और चुनावी मशीनरी को मजबूत बनाए रखने में मदद करती रही है. सत्ता खोने का मतलब इस आर्थिक आधार का हाथ से निकल जाना होगा. ऐसे में बीएमसी की सत्ता में रहने के चलते उद्धव को अपनी पार्टी में नई ऊर्जा बनाए हुए हैं, उसे अगर बाहर हो जाएंगे तो मुश्किल ै.

'मुंबई' और 'मराठी मानुष' पर पकड़

शिवसेना की पूरी राजनीति मुंबई और मराठी अस्मिता के इर्द-गिर्द घूमती है., मुंबई को 'ठाकरे परिवार का किला' माना जाता है. ऐसे में बीजेपी और शिंदे गुट मिलकर बीएमसी पर कब्जा कर लेता है, तो यह उद्धव ठाकरे के लिए एक बड़ा मनोवैज्ञानिक और राजनीतिक झटका होगा, जिससे उनकी क्षेत्रीय राजनीति का आधार कमजोर हो सकता है.

बीजेपी ने बीएमसी की 227 पार्षद सीटों में से 150 सीटें जीतने का टारगेट रखा है. शिवसेना की किसी समय मुंबई पर जबरदस्त पकड़ थी, लेकिन 2014 से उसकी स्थिति कमजोर हुई है. 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना-बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, जिससे उद्धव ठाकरे को नुकसान और बीजेपी को लाभ हुआ था.

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बीएमसी की 227 सीट में शिवसेना को 84 सीटें और बीजेपी ने 82 सीटों पर कब्जा जमाया था. उद्धव ठाकरे को अपना मेयर बनाने के लिए बीजेपी से हाथ मिलाना पड़ा था, जिसके बाद ही शिवसेना की किशोरी पेडणेकर महापौर बन सकी थी. हालांकि, अब हालत बदल गए हैं. उद्धव के कई पार्षद एकनाथ शिंदे की शिवसेना में शामिल हो गए हैं. उनकी जगह नए चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा. उद्धव ठाकरे के लिए 50 फीसदी सीटों पर नए चेहरे तलाश करने होंगे.

बाल ठाकरे के विरासत बचाने की जंग

बाल ठाकरे ने जिस शिवसेना को खड़ा किया, उसका शक्ति केंद्र हमेशा मुंबई रहा है. उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की सत्ता से बेदखल होने के चलते शिवसेना के लोगों का मनोबल गिरा हुआ है. सत्ता अपने आप में एक अलग ऊर्जा और उत्साह देती है, जो बीजेपी के नेताओं में दिख रहा है. ऐसे में उद्धव ठाकरे ने अपने चचेरे भाई राज ठाकरे के साथ हाथ मिला लिया है.

यह 'विरासत' को बचाने की आखिरी कोशिश मानी जा रही है. उद्धव के लिए यह चुनाव यह दिखाने का मौका है कि विरासत केवल नाम या चुनाव चिह्न से नहीं, बल्कि जनसमर्थन से चलती है.

उद्धव ठाकरे ने खुद इसे अपनी पार्टी के लिए अग्निपरीक्षा बताया है. महायुति की एकजुट घेराबंदी के बीच अगर वे बीएमसी बचा लेते हैं, तो यह 2029 के विधानसभा चुनावों के लिए उनकी बड़ी वापसी का आधार बनेगा. यही वजह है कि उद्धव ठाकरे ने पूरी ताकत बीएमसी के चुनाव पर लगा दी है..

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