बारिश से 'पानी-पानी' हुए दिल्ली-गुरुग्राम, आखिर इन शहरों का क्यों हुआ ऐसा हाल

पिछले दो दिनों से हो रही बारिश ने पहाड़ों से लेकर मैदानी इलाकों तक कहर बरपाया है. हर तरफ सड़कों पर जलभराव है. दिल्ली और गुरुग्राम जैसे हाइटेक शहरों में भी स्थिति बदतर है. सड़कों पर गड्ढे और पानी का सैलाब है. आखिर हर साल इन शहरों में क्यों स्थिति ऐसी ही रहती है. ये सवाल हर बार उठता है.

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दिल्ली और गुरुग्राम में बारिश से हालात बदतर हैं दिल्ली और गुरुग्राम में बारिश से हालात बदतर हैं

राम किंकर सिंह / नीरज वशिष्ठ

  • नई दिल्ली,
  • 10 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 6:59 AM IST

दो दिन की बारिश में दिल्ली का हाल बेहाल है. आलम ये है कि जगह-जगह सड़कों पर जलभराव है. वहीं सड़कों में गड्ढे हो गए हैं और लोग अपने घरों में बंद हो गए हैं. इससे दिल्ली के बाजारों को भी बहुत नुक़सान हुआ है. खराब सीवर व्यवस्था होने से सड़कों पर कई फीट पानी भरा और देखते ही देखते पानी दुकानों में भी चला गया, जिससे दुकानों में रखा सामान खराब हो गया है. वहीं यमुना खतरे के निशान से ऊपर बह रही है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ जैसे हालात बने हुए हैं.

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राजधानी में विधायी हक के लिए दिल्ली और केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में हैं लेकिन दो दिनों की बारिश के बाद हालात इतने बदतर हुए तो जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है. दुनियाभर में दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस और खान मार्किट जैसे इलाकों में भी सड़कों पर सैलाब नजर आ रहा है. एक आंकड़े के मुताबिक दिल्ली का इंफ्रा 50 मिमी से ज्यादा बारिश नहीं झेल सकता और दो दिनों में हुई 155 मिमी बारिश से पूरी दिल्ली में चौतरफा सैलाब जैसा मंज़र छा गया है. 

लुटियंस दिल्ली और सेंट्रल जोन का ड्रेनेज सिस्टम ब्रिटिश कालीन है. कम बारिश होने पर पीडब्लूडी, एमसीडी जलबोर्ड और फ्लड विभाग जून जुलाई के आसपास नाले साफ करवाते हैं और मॉनसून की तैयारियां करते हैं. लेकिन इधर बारिश का पैटर्न बहुत तेज़ी से बदला और अब मॉनसून ही नहीं, गर्मी-सर्दी के मौसम में भी बारिश होने पर भयंकर जलजमाव दिल्ली को प्रभावित करने लगा है. 

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शहरी मामलों के जानकार जगदीश ममगाई का कहना है कि दिल्ली की सीवरेज और पाइपलाइन लगभग 6 इंच की औसतन थी. कहीं जायदा या कम. लेकिन अधिकतर पाइपलाइन पुरानी हो चुकी हैं, डैमेज होने पर रिपेयर होती हैं.

दिल्ली में क्यों होता है जलभराव?

इस पर जगदीश का कहना है कि पानी के आउटफ्लो के लिए इंतजाम उस वक्त की जनसंख्या के हिसाब से था. अब ढांचा भी उसी पर निर्भर है तो वह प्रभावित होगा. दिल्ली के नए नवेले कर्तव्य पथ और सेंट्रल वर्ज भी पानी से भर गए तो इसके पीछे पानी की मात्रा ज्यादा थी. दिल्ली के पास जगह की कमी है. अधिकतर नाले यमुना की तरफ गिरते हैं. हरियाणा ने 1 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी हथिनी कुंड बैराज से छोड़ा और यमुना खतरे के निशान को पार कर गई. 

उन्होंने बताया कि बारिश के पानी से यमुना ओवरफ्लो हो जाती है तो उससे जुड़ने वाले नाले बैक फ्लो करते हैं. इस आउटफ्लो से बचने के लिए सिस्टम को बदलना होगा. बड़े ड्रेनेज सिस्टम बनाने होंगे. जगदीश का दावा है कि 2041 के मास्टर प्लान में वाटर के इवैकुएशन (निकासी) के लिए अलग से प्लान होना चाहिए. ये कई बार लिखा गया है, लेकिन एजेंसीज का ध्यान नहीं गया. 

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उधर कन्फ़ेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने दिल्ली के उपराज्यपाल से मांग की है कि दिल्ली के सीवर एवं ड्रेनेज सिस्टम का तकनीकी ऑडिट किया जाए. साथ ही पिछले सालों में दिल्ली के ड्रेनेज एवं सीवर सिस्टम पर दिल्ली जल बोर्ड, दिल्ली नगर निगम, दिल्ली सरकार, नई दिल्ली नगर परिषद एवं अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा खर्च किए गए धन की जांच की जाए, ताकि पता लगे कि जो धन इन पर पिछले वर्षों में खर्च किया गया, वो कहां गया. यदि वास्तव में ड्रेनेज एवं सीवर पर खर्च हुआ तो फिर केवल दो दिन में ही दिल्ली नदी क्यों बन गई.

गुरुग्राम में भी करोड़ों खर्च होकर नहीं हुआ फायदा

मिलेनियम सिटी कहे जाने वाले गुरुग्राम में साल 2016 के महाजाम के बाद से ड्रेनेज और सीवरेज, अंडर पास फ्लाईओवर आदि पर करोड़ों खर्च किये जा चुके हैं. लेकिन हर मॉनसूनी बारिश में साइबर सिटी को वाटर लॉगिंग जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है. निशांत कुमार यादव डीसी गुरुग्राम की मानें तो मॉनसून को लेकर अधिकारियों की बैठक ली गई है और जहां-जहां रविवार को जल भराव देखने को मिला, वहां मोटर पम्प्स की व्यवस्था की जा रही है ताकि आगे कभी ऐसी स्थिति में नागरिकों को वाहन चालकों को मुश्किलात का सामना न कड़ना पड़े.

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दरअसल, 2010 में बादशाहपुर ड्रेन को बनाने का काम शुरू किया गया था. 26 किलोमीटर लंबी इस ड्रेनेज के निर्माण में उस वक़्त तकरीबन 294 करोड़ की राशि मंजूर की गई थी. लेकिन 2016 के महाजाम में हुई फजीहत के बाद बादशाहपुर बॉक्स ड्रेन के निर्माण राशि बढ़ा कर तकरीबन 400 करोड़ रुपये कर दी गई. हैरानी की बात है कि 13 साल बाद भी इस ड्रेन को बनाने का काम पूरा नहीं किया जा सका है. मौजूदा वक़्त में 23 किलोमीटर लंबे ड्रेन का काम पूरा हो चुका है जबकि 3 किलोमीटर के ड्रेन का निर्माण अभी अधूरा ही है.

डीसी निशांत का कहना है कि सामान्य से बहुत ज्यादा हुई बारिश के कारण शहर भर में जल भराव हुआ. 200 MM बारिश की वजह से नजफगढ़ ड्रेन ओवरफ्लो हो गया और भारी जल भराव हो गया. कुछ और ड्रेन बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है. प्लानिंग में नहीं बल्कि बेहतरीन एग्जीक्यूशन से होगा वाटर लॉगिंग जैसी समस्या का हल. अब प्रशासन उन नोडल अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करेगा जो मौके से नदारद रहे.

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