दिल्ली HC: शिक्षकों को 10 दिन में मिले सैलरी, वरना अगली सुनवाई पर हाजिर हों चीफ सेक्रेटरी

दिल्ली हाईकोर्ट ने बेहद तल्ख लहजे में दिल्ली सरकार को चेतावनी दी है कि 10 दिन में एमसीडी अध्यापकों की सैलरी दे दे वरना  चीफ सेक्रेटरी और एजुकेशन सेक्रेटरी अगली तारीख पर हाजिर हों.

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फाइल फोटो फाइल फोटो

पूनम शर्मा / सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 29 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 12:28 AM IST

एमसीडी के शिक्षकों को पिछले कई महीनों से सैलरी नहीं मिलने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि अगर इन सभी शिक्षकों को 10 दिन में तनख्वाह नहीं दी गई तो चीफ सेक्रेटरी और एजुकेशन सेक्रेटरी अगली तारीख पर खुद कोर्ट में पेश हों.

कोर्ट ने अगले महीने 10 सितंबर से पहले सभी एमसीडी के शिक्षकों को अब तक का वेतन देने का निर्देश एमसीडी को दिया है और साथ ही दिल्ली सरकार को उससे पहले एमसीडी को फंड ट्रांसफर करने को कहा है.

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एमसीडी शिक्षकों को मई के महीने से सैलरी नहीं मिलने पर दिल्ली सरकार को हाईकोर्ट ने कड़ी फटकार लगते हुए कहा कि हाईकोर्ट इस मामले में इसी साल अप्रैल में अपना जजमेंट दे चुका है  कि एमसीडी के सभी शिक्षकों को फोर्थ फाइनेंस कमीशन के हिसाब से हर महीने उनकी सैलरी महीने के आखिर में दी जाएगी.

फिर कोर्ट के इस आदेश का पालन क्यों नहीं किया जा रहा. कोर्ट ने साफ-साफ लफ्जों में दिल्ली सरकार को कहा कि अगर आपने हमारे अप्रैल 2018 के आदेश का पालन नहीं करते हुए 10 दिन के भीतर सैलरी नहीं दी तो आपके खिलाफ अवमानना की कारवाई की जाएगी.

दरअसल, एमसीडी कर्मचारियों और शिक्षकों को समय पर तनख्वाह ना मिलने को लेकर पहले भी कई याचिका लगाई जा चुकी हैं जिनका वक्त वक्त पर कोर्ट निपटारा कर चुकी है हाल ही में कोर्ट ने अप्रैल में भी एक विस्तृत जजमेंट देते हुए साफ कर दिया था कि दिल्ली सरकार को एमसीडी को वो पूरा फंड देना होगा जिससे वह समय पर एमसीडी कर्मचारियों को तनख्वाह दे सकें.

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एमसीडी के स्कूलों के शिक्षकों के साथ-साथ एमसीडी के सफाई कर्मचारियों और एमसीडी के अस्पतालों में कार्यरत डॉक्टर और नर्स को भी समय पर तनख्वाह ना मिलने से कई दफा वह विरोध-प्रदर्शन और कई बार सड़क पर हड़ताल भी कर चुके हैं लेकिन दिल्ली सरकार और बीजेपी की कब्जे वाले एमसीडी में अक्सर फंड के ट्रांसफर को लेकर तलवारें खिंची रहती हैं और इसी कारण इसका सबसे बड़ा नुकसान एमसीडी के उन कर्मचारियों और शिक्षकों को उठाना पड़ता है जिन्हें समय पर तनख्वाह नहीं मिलती.

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