रायबरेली में BJP का बढ़ता वोट प्रतिशत राहुल गांधी के लिए बनेगा चुनौती? जानें क्या है 17 फीसदी का फैक्टर

राहुल गांधी अमेठी छोड़कर रायबरेली क्यों आए? इस सवाल के जवाब में कांग्रेस कहती है कि रायबरेली सिर्फ़ सोनिया गांधी की नहीं, इंदिरा गांधी की सीट रही है. कांग्रेस बताती है कि ये विरासत नहीं ज़िम्मेदारी है, कर्तव्य है. वहीं, राहुल गांधी ने कहा कि रायबरेली से नामांकन करना भावुक पल था. मां ने भरोसे के साथ परिवार की कर्मभूमि सौंपी है. अमेठी और रायबरेली उनके लिए अलग-अलग नहीं हैं, दोनों ही परिवार हैं.

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राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन दाखिल कर दिया है (फाइल फोटो- पीटीआई) राहुल गांधी ने रायबरेली से नामांकन दाखिल कर दिया है (फाइल फोटो- पीटीआई)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2024,
  • अपडेटेड 12:05 AM IST

उत्तर प्रदेश में साल 2012 में विधानसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था, राहुल गांधी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बैठे थे, सवाल हुआ कि कांग्रेस क्या वापसी कर पाएगी? इस पर राहुल गांधी एकदम कुर्सी से खड़े हुए और कहा कि कांग्रेस ऐसे खड़ी हो जाएगी, जैसे मैं उठा हूं. इस बात को 12 साल बीत गए, कांग्रेस ना यूपी के चुनाव में उठ पाई. ना लोकसभा चुनाव में. 2004 में अमेठी से राहुल गांधी ने राजनीति शुरू की, लेकिन 5 साल पहले यानी 2019 में अमेठी ने राहुल की झोली में जीत नहीं डाली. अब राहुल गांधी ने अमेठी छोड़ दी और मां सोनिया गांधी की छोड़ी हुई सीट रायबरेली को चुन लिया, लेकिन क्या रायबरेली राहुल के लिए उत्तर प्रदेश में सुरक्षित है या फिर मुश्किल?

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महीनेभर से ज्यादा वक्त से अमेठी और रायबरेली पर चल रहे सियासी सस्पेंस को विराम देने वाला फैसला 3 मई को हुआ. कांग्रेस ने रायबरेली सीट से राहुल गांधी को कैंडिडेट बनाया है, जबकि अमेठी से किशोरी लाल शर्मा पर कांग्रेस ने भरोसा जताया है. रायबरेली में फुर्सतगंज की हवाई पट्टी पर शुक्रवार को चार्टर्ड प्लेन उतरा. इससे राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी समेत कई कांग्रेस नेता उतरे. इसके बाद राहुल गांधी ने रायबरेली सीट से नामांकन का पर्चा भर दिया. जबकि अमेठी सीट को इस बार परिवार के पुराने साथी और अब तक मां सोनिया के सांसद प्रतिनिधि रहे किशोरी लाल शर्मा के लिए छोड़ दिया. 

प्रियंका बोलीं- दोनों सीटों से जीतेंगे राहुल

प्रियंका गांधी ने कहा कि भैया के लिए बहुत खुश हूं, भैया यहां से लड़ रहे हैं, वह दोनों सीटों (वायनाड और रायबरेली) से पक्का जीतेंगे. वहीं, बीजेपी कह रही है कि अमेठी में फिर से स्मृति ईरानी से उन्हें हार का डर था, इसलिए अमेठी छोड़ रायबरेली लड़ने चले गए.

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नामांकन के बाद क्या बोले राहुल गांधी?

राहुल गांधी ने कहा कि रायबरेली से नामांकन करना भावुक पल था. मां ने भरोसे के साथ परिवार की कर्मभूमि सौंपी है. अमेठी और रायबरेली उनके लिए अलग-अलग नहीं हैं, दोनों ही परिवार हैं. बता दें कि रायबरेली वो सीट है, जो 2014 की मोदी लहर में भी कांग्रेस नहीं हारी. इतना ही नहीं, 2019 के चुनाव में भी जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताया और यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस सिर्फ इसी सीट पर चुनाव जीती थी. रायबरेली वो सीट है, जहां 72 साल के इतिहास में 66 साल कांग्रेस के सांसद रहे हैं. अब तक हुए 20 चुनाव में 17 बार कांग्रेस को जीत मिली है. 72 साल में गांधी परिवार से 7 लोग सांसद का चुनाव लड़े. इसमें 5 सदस्य सांसद बने. 20 साल से रायबरेली ने सोनिया गांधी को सांसद चुना है. 

ये है 17 फीसदी का फैक्टर

ऐसे में सवाल ये है कि बीजेपी को आखिर ये भरोसा क्यों है कि कांग्रेस अब रायबरेली भी अमेठी की तरह हार सकती है, जबकि प्रियंका गांधी, मां सोनिया के हवाले से लिखती हैं कि ये परिवार दिल्ली में अधूरा है, जो रायबरेली आकर पूरा होता है, तो जिस रायबरेली को गांधी परिवार अपने साथ चट्टान की तरह जुड़ा हुआ मानता है, वहां क्या वोट टूट रहा है? 

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इस सवाल की वजह समझिए... 2009 में सोनिया गांधी को 72.23% वोट मिले थे. जबकि बीजेपी को सिर्फ 3.82% वोट मिला. बीजेपी और कांग्रेस के बीच तब वोटों का अंतर 68.41% का था. इसके बाद 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी को 63.80% वोट मिले और बीजेपी को 21.05% वोट मिले. यानी कांग्रेस को (-8.43%) वोट का नुकसान हुआ और बीजेपी को (+17.23%) वोट का फायदा. दोनों पार्टियों के वोट का अंतर घटकर 42.75% फीसदी हो गया. 2019 में सोनिया गांधी को 55.78% वोट मिले और बीजेपी को 38.35% वोट मिले, यानी कांग्रेस को (-8.02%) का नुकसान हुआ और बीजेपी को (+17.3%) का फायदा. जीत हार का अंतर घटकर 17.43% फीसदी रह गया है. अब चौथी अहम बात ये है कि रायबरेली में पिछली बार बीजेपी 17.43 फीसदी वोट के अंतर से हारी है और लगातार दो चुनाव में 17% से ज्यादा वोट बढ़ाती आ रही है. 

राहुल के रायबरेली से चुनाव लड़ने पर ये बोली कांग्रेस 

राहुल गांधी अमेठी छोड़कर रायबरेली क्यों आए? इस सवाल के जवाब में कांग्रेस कहती है कि रायबरेली सिर्फ़ सोनिया गांधी की नहीं, इंदिरा गांधी की सीट रही है. कांग्रेस बताती है कि ये विरासत नहीं ज़िम्मेदारी है, कर्तव्य है. लेकिन क्या अबकी बार अमेठी छोड़कर रायबरेली में जिम्मेदारी और कर्तव्य निभाने आए राहुल गांधी के लिए दिक्कत इसलिए भी बढ़ सकती है, क्योंकि इसी रायबरेली में आने वाली 5 विधानसभा सीट में से 3 पर कांग्रेस की जमानत तक विधानसभा चुनाव में जब्त हो चुकी है.

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क्या है रायबरेली का सियासी समीकरण?

रायबरेली लोकसभा में पांच विधानसभा सीट आती हैं. यहां की शहर वाली सीट से बीजेपी की अदिति सिंह विधायक हैं, जबकि बाकी चार विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक हैं. उनमें भी ऊंचाहार सीट से एसपी के विधायक मनोज पांडेय को बीजेपी राज्यसभा चुनाव के दौरान अपने समर्थन में ला चुकी है. 2 साल पहले विधानसभा चुनाव के आईने में रायबरेली का समीकरण समझिए. रायबरेली की 5 विधानसभा में कांग्रेस को केवल 1,40,706 वोट मिले थे, बीजेपी को रायबरेली लोकसभा के भीतर की 5 असेंबली सीट पर 2022 में 3,81,625 वोट मिले थे. समाजवादी पार्टी को 2022 में सबसे ज्यादा 4,02,179 वोट मिले. यानी अगर समाजवादी पार्टी का वोट ट्रांसफर होता है, तभी रायबरेली में राहुल गांधी की जीत आसान होगी.

रायबरेली-अमेठी से गांधी परिवार का राजनीतिक रिश्ता कैसे शुरू हुआ? 

देश के पहले लोकसभा चुनाव में लाल नेहरू प्रयागराज (पहले इलाहाबाद) से जुड़ी फूलपुर लोकसभा सीट से लड़े. फिरोज गांधी तब रायबरेली से लड़े, कहा जाता है कि तब कांग्रेस के दिग्गज नेता रफी अहमद किदवई ने फिरोज गांधी से रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने को कहा था. स्वीडिश लेखक Bertil Falk की किताब Feroze: The Forgotten Gandhi में इस बात का जिक्र है. फिर 1967 में अमेठी लोकसभा सीट बनी. रायबरेली से सटी होने की वजह से यहां से संजय गांधी ने अपनी सियासी पारी शुरू की. 1980 से 2019 के बीच जहां 40 साल में 31 साल गांधी परिवार के सदस्य सांसद बनते रहे. उसी अमेठी को अबकी बार राहुल गांधी ने छोड़ दिया है. 2004 में अमेठी से पहली बार चुनाव लड़ने उतरे राहुल गांधी नामांकन भरने निकले तो उनकी कार चलाने की जिम्मेदारी राजीव गांधी के समय में रायबरेली-अमेठी लाए गए किशोरी लाल शर्मा निभा रहे थे. उन्हीं किशोरी लाल शर्मा को अब अमेठी से कांग्रेस ने प्रत्याशी बना दिया है. गांधी परिवार के करीबी पहले भी इस सीट से उतरते रहे हैं, जब परिवार से कोई नहीं उतरा हो. 

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(रिपोर्ट- आजतक ब्यूरो)

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