बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक विधानसभा चुनाव होने हैं और राजनीतिक दलों ने चुनावी तैयारियां तेज कर दी हैं. बिहार के चुनावी दंगल में मुकाबला सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और विपक्षी महागठबंधन के बीच माना जा रहा है, लेकिन कुछ और दल भी हैं जो मुकाबला बहुकोणीय बनाने की कोशिश में हैं.
ऐसी पार्टियों की लिस्ट में चुनाव रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर (पीके) की जन सुराज के साथ ही असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) तक के नाम हैं. क्या ये पार्टियां बिहार चुनाव में इम्पैक्ट प्लेयर साबित हो पाएंगी?
प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज
प्रशांत किशोर एक सफल चुनाव रणनीतिकार रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को अकेले पूर्ण बहुमत के साथ एनडीए की जीत के शिल्पकार माने जाने वाले पीके 2015 के बिहार चुनाव में महागठबंधन की जीत के भी रणनीतिकार रहे. पीके की पार्टी को बीजेपी की बी टीम बता विरोधी दल खारिज करते आए हैं, लेकिन चुनाव करीब आते ही जन सुराज की रणनीति ने एनडीए और महागठबंधन, दोनों को उलझा दिया है.
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बिहार में 25 साल से कम उम्र के युवाओं की आबादी करीब 57 फीसदी है और पीके की पार्टी भी युवाओं पर फोकस करके ही चल रही है. जातियों के मकड़जाल में उलझी बिहार की राजनीति में बदलाव की बात कर चुनाव मैदान में उतरने को तैयार प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी रोजगार और पलायन के साथ ही शिक्षा जैसे युवाओं से जुड़े मुद्दे लगातार उठा रही है. बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा के कथित पेपर लीक के खिलाफ छात्रों के आंदोलन में पीके की सक्रिय भागीदारी को भी युवाओं के बीच जन सुराज की सियासी जमीन बनाने की रणनीति के रूप में ही देखा गया.
चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप की जन सुराज में एंट्री को भी यूथ फोकस्ड पॉलिटिक्स से जोड़कर ही देखा जा रहा है. कभी एनडीए का कोर वोटर रहे युवाओं के बीच पिछले चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की अगुवाई वाले महागठबंधन को भी अच्छा समर्थन मिला था. जातीय गणित की बात करें तो प्रशांत किशोर खुद ब्राह्मण वर्ग से आते हैं. राजपूत चेहरे उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह जन सुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और दलित नेता मनोज भारती प्रदेश अध्यक्ष.
सवर्ण और दलित चेहरे संगठन में शीर्ष पदों पर हैं. पीके की नजर कुर्मी और मुस्लिम मतदाताओं पर भी है. सवर्ण, कुर्मी और दलित मतों में पीके सेंध लगा पाए तो नुकसान एनडीए को होगा. मुस्लिम और युवा मतदाताओं के बीच जन सुराज ने पैठ बनाई, तो यह आरजे़डी और महागठबंधन के लिए टेंशन बढ़ाने वाली बात होगी.
केजरीवाल की आम आदमी पार्टी
अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी ने भी बिहार चुनाव में किसी से गठबंधन किए बगैर अकेले ही चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान किया है. कुछ ही महीने पहले हुए दिल्ली चुनाव में हार के साथ केंद्र शासित प्रदेश की सत्ता से बाहर हुई आम आदमी पार्टी की फिलहाल पंजाब में सरकार है.
आम आदमी पार्टी की चुनावी राह में बिहार का अलग सियासी मिजाज और जातीय गणित के साथ ही लोकल लेवल पर बड़े कद के परिपक्व नेताओं की कमी मुश्किलें उत्पन्न कर सकती हैं. अरविंद केजरीवाल की पार्टी बिहार में शिक्षा के दिल्ली मॉडल, मोहल्ला क्लिनिक जैसी योजनाओं को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी में है. हालांकि, आम आदमी पार्टी बिहार के शहरी इलाकों और युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रिय भी है. आम आदमी पार्टी करीबी फाइट वाली सीटों पर अंतर उत्पन्न कर सकती है.
असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम बिहार के मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल में मजबूत पकड़ रखती है. बिहार चुनाव 2020 में एआईएमआईएम ने 20 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. पार्टी को 1.13 फीसदी वोट मिले थे और पांच सीटों पर उसके उम्मीदवार जीते थे. चार सीटों पर पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी.
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चुनाव से पहले चल रहे वोटर लिस्ट के गहन पुनरीक्षण और सत्यापन के खिलाफ चुनाव आयोग पहुंच शिकायत दर्ज कराने वाले असदुद्दीन ओवैसी प्रवासी मजदूरों की समस्याओं को लेकर भी मुखर रहे हैं. ओवैसी की पार्टी का कोर वोटर मुस्लिम है, जो आरजेडी के एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण का भाग है. ओवैसी की पार्टी के उतरने से आरजेडी को मुस्लिम वोट का नुकसान हो सकता है.
एनडीए और महागठबंधन, दोनों के लिए टेंशन
प्रशांत किशोर की जन सुराज, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम, ये तीनों पार्टियां कई सीटों पर एनडीए और महागठबंधन का चुनावी गणित बिगाड़ सकती हैं. पीके की पार्टी के चुनाव मैदान में उतरने के बाद एनडीए के सामने अपने वोट बैंक को एकजुट बनाए रखने की चुनौती होगी.
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ओवैसी की पार्टी महागठबंधन की राह मुश्किल कर सकती है. आम आदमी पार्टी युवा वोट बैंक में सेंध लगा पाती है, तो चुनौती दोनों गठबंधनों के लिए कड़ी होगी. ये दल कितनी सीटें जीत पाएंगे या नहीं जीत पाएंगे, यह अलग विषय है लेकिन इतना जरूर है कि करीबी लड़ाई वाली सीटों पर इम्पैक्ट प्लेयर की भूमिका जरूर निभा सकते हैं.
बिकेश तिवारी