बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का दम भरने वाली जेएमएम को महागठबंधन में जगह नहीं मिल सकी, जबकि झारखंड में वह आरजेडी-कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रही है. महागठबंधन में सीट नहीं मिलने के चलते जेएमएम प्रमुख हेमंत सोरेन ने बिहार चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.
जेएमएम के विधायक और झारखंड सरकार में मंत्री सुदिव्य कुमार ने इसके लिए कांग्रेस और आरजेडी को जिम्मेदार बताया है. जेएमएम का दावा है कि आरजेडी और कांग्रेस ने जानबूझकर जेएमएम को सीटें आवंटित नहीं कीं, जिससे उसे चुनाव लड़ने से वंचित होना पड़ा.
सुदिव्य कुमार ने कहा कि मेरे इरादे और योजना के बावजूद जेएमएम बिहार विधानसभा चुनाव का हिस्सा नहीं बन पाएगी. इसका कारण आरजेडी की 'राजनीतिक अपरिपक्वता' है. कांग्रेस को जेएमएम को समायोजित करने के लिए मध्यस्थता करनी चाहिए थी, लेकिन उसने भी कुछ नहीं किया. ऐसे में सवाल उठता है कि यह हेमंत सोरेन की सियासी मजबूरी थी या फिर उन्होंने महागठबंधन के साथ गठबंधन धर्म निभाया?
जेएमएम ने बिहार चुनाव से पीछे खींचे कदम
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हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली जेएमएम काफी दिनों से बिहार चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी, उसकी मंशा महागठबंधन के संग चुनाव लड़ने की थी. ऐसे में जेएमएम लगातार सीट की मांग कर रही थी, लेकिन आरजेडी तैयार नहीं हुई. हालांकि, जेएमएम ने झारखंड में कांग्रेस और आरजेडी को सीट देने की याद भी दिलाई, लेकिन बात नहीं बन सकी. जेएमएम ने बिहार के लिए 20 स्टार प्रचारकों की सूची भी जारी की थी.
महागठबंधन में सीट न मिलने के बाद जेएमएम ने बिहार में अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान तक कर दिया. इसके लिए वह चकाई, धमदाहा, कटारिया, मणिहारी, जमुई और पीरपैंती के छह विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारने की भी बात कही थी, लेकिन सोमवार को नामांकन के अंतिम दिन जेएमएम बिहार चुनाव लड़ने के इरादे से पीछे हट गई.
जेएमएम ने क्या गठबंधन धर्म निभाया?
बिहार चुनाव से पीछे हटने के बाद जेएमएम ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराजगी जाहिर की. जेएमएम विधायक सुदिव्य कुमार ने कहा कि जब झारखंड में गठबंधन मजबूती से चल रहा है, तो बिहार चुनाव में जेएमएम की भागीदारी सुनिश्चित कराने का प्रयास कांग्रेस की तरफ से भी होना चाहिए था, जो नहीं हुआ. आरजेडी के रवैए ने भी दुखी किया है.
सुदिव्य कुमार ने कहा कि आरजेडी और कांग्रेस ने जेएमएम को चुनाव लड़ने से वंचित करने के लिए राजनीतिक साजिश रची. यह महागठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद हमें धोखा देना है. हम इस अपमान का करारा जवाब देंगे और झारखंड में कांग्रेस-आरजेडी के साथ गठबंधन की समीक्षा करेंगे. इससे एक बात तो साफ है कि जेएमएम गठबंधन धर्म के चलते चुनाव से पीछे नहीं हटी, बल्कि सीट शेयरिंग में हिस्सा नहीं मिलने के चलते उसने चुनाव लड़ने का इरादा छोड़ा है. अब इसके लिए वह कांग्रेस और आरजेडी को दोष भी दे रही है.
जेएमएम की क्या सियासी मजबूरी है?
जेएमएम के आरोपों का केंद्र बिंदु महागठबंधन में सीट बंटवारे की असफलता है. ऐसे में यह साजिश से ज़्यादा रणनीतिक चूक है. एक ओर जहां आरजेडी तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाने पर अड़ा हुआ है, वहीं कांग्रेस असमंजस में है. वामपंथी दल जैसे छोटे सहयोगी भी कुछ सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतार रहे हैं, जिससे गठबंधन की एकजुटता पर सवाल उठ रहे हैं. जेएमएम की मांग 12 सीटों की थी, लेकिन उसे महज़ 4-6 सीटें मिलने की संभावना थी, जो पार्टी को स्वीकार नहीं थी.
कांग्रेस ने गुरुवार को अपनी पहली सूची जारी की थी, जिसमें 48 उम्मीदवारों के नाम थे. महागठबंधन में सीटों को लेकर कांग्रेस का आरजेडी के साथ टकराव बढ़ गया है, एक दर्जन सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवार आमने-सामने हैं. जेएमएम भले ही कहे कि सियासी टकराव में उसकी मांगें दब गईं, लेकिन असल वजह झारखंड में चल रही सोरेन सरकार की मजबूरी मानी जा रही है.
झारखंड की सोरेन सरकार आरजेडी और कांग्रेस की बैसाखी पर टिकी हुई है. राज्य में कुल 81 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें जेएमएम के पास खुद के 30 विधायक हैं. जेएमएम बहुमत से 11 सीटें कम है. कांग्रेस के 16, आरजेडी के 4 और सीपीआई माले के 2 विधायकों के समर्थन से सोरेन सरकार चल रही है. माना जा रहा है कि इसी सियासी मजबूरी में कहीं जेएमएम ने बिहार चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं?
झारखंड में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी का गठबंधन सत्ता में है, और आगामी विधानसभा चुनावों से पहले यह दरार गठबंधन के लिए खतरे की घंटी है. पार्टी ने संकेत दिया है कि बिहार चुनाव के बाद झारखंड में भी 'करारा जवाब' दिया जाएगा, जिसका मतलब सीट बंटवारे में कटौती या यहां तक कि गठबंधन तोड़ना हो सकता है.
बिहार चुनाव में महागठबंधन को न हो जाए नुकसान
जेएमएम ने स्पष्ट किया कि पार्टी आने वाले समय में महागठबंधन के राजनीतिक दलों के क्रियाकलाप के आधार पर समीक्षा करेगी और संगठन के हित के अनुरूप निर्णय लेगी. साथ ही जेएमएम ने कहा कि उसने तेजस्वी यादव को उन 28 सीटों के बारे में बताया था जहां आदिवासी वोट महत्वपूर्ण हैं, जिनमें से 22 सीटें राजद पिछले चुनाव में मामूली अंतर से हार गई थी. जेएमएम का मानना है कि उनकी भागीदारी से इन सीटों पर महागठबंधन का प्रदर्शन बेहतर हो सकता था, लेकिन अब उसके चुनाव से हट जाने के चलते नुकसान हो सकता है.
जेएमएम के बाहर होने से महागठबंधन का वोट शेयर प्रभावित हो सकता है, खासकर उन छह सीटों पर जहां पार्टी के कार्यकर्ता सक्रिय थे. इनमें कटारिया और मणिहारी जैसी अनुसूचित जनजाति सीटें शामिल हैं, जहां जेएमएम का पारंपरिक वोट बैंक है. एनडीए को इससे फायदा हो सकता है, क्योंकि विपक्ष की एकजुटता टूट रही है.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि हेमंत सोरेन सरकार पर दबाव बढ़ सकता है, क्योंकि केंद्र में बीजेपी की मज़बूत पकड़ के बीच राज्य स्तर पर गठबंधन की मज़बूती ज़रूरी है. फ़िलहाल, जेएमएम ने साफ़ किया है कि बिहार में अब कोई उम्मीदवार नहीं उतारा जाएगा, और पार्टी अपनी ऊर्जा झारखंड चुनावों पर केंद्रित करेगी.
कुबूल अहमद