पटना से करीब 100 किलोमीटर दूर मोकामा विधानसभा क्षेत्र में गुरुवार को दुलारचंद यादव की हत्या कर दी गई, जिसका आरोप जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) उम्मीदवार बाहुबली अनंत सिंह के ऊपर लगा है. इस हत्या ने मोकामा ही नहीं बल्कि बिहार के सियासी माहौल को गरमा दिया है.
अनंत सिंह ने दुलारचंद यादव की हत्या के पीछे अपने विरोधी बाहुबली सूरजभान सिंह का हाथ बताया है. सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी मोकामा से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. दुलारचंद की छवि भी एक दबंग नेता की थी, जो कभी लालू यादव के करीबी रहे हैं, लेकिन बाद में अनंत सिंह के साथ हो गए थे. हालांकि, इस चुनाव में वह उनके विरोध में थे.
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में दुलारचंद जन सुराज पार्टी के पीयूष प्रियदर्शी को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे. मोकामा के टाल इलाके में दुलारचंद का सियासी दबदबा माना जाता है और उसी इलाके में उनकी हत्या कर दी गई. इससे बिहार का सियासी पारा बढ़ गया है, लेकिन मोकामा की सियासी लड़ाई बाहुबलियों के इर्द-गिर्द तीन दशक से सिमटी हुई है.
मोकामा में अनंत सिंह का दबदबा
बिहार चुनाव की विस्तृत कवरेज के लिए यहां क्लिक करें
बिहार विधानसभा की हर सीट का हर पहलू, हर विवरण यहां पढ़ें
मोकामा विधानसभा क्षेत्र की सियासत साढ़े तीन दशक से अनंत सिंह और उनके परिवार के हाथों में है. 1990 में अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह जनता दल के टिकट पर विधायक चुने गए और 1995 में दूसरी बार भी जीतने में कामयाब रहे. 2000 में दिलीप सिंह चुनाव हार गए, उन्हें बाहुबली सूरजभान सिंह ने चुनाव हराया था. पांच साल बाद 2005 में अनंत सिंह की सियासी एंट्री होती है। वह जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं और जीतकर विधानसभा पहुंचते हैं.
2005 से लेकर 2020 तक लगातार अनंत सिंह जीत रहे हैं, जिसमें तीन बार जेडीयू के टिकट पर विधायक बने। 2015 में निर्दलीय चुने गए और 2020 में आरजेडी के टिकट पर विधायक बने. 2022 में सजा होने के चलते अनंत सिंह की सदस्यता चली गई। इसके बाद अनंत सिंह ने अपनी पत्नी नीलिमा देवी को उपचुनाव लड़ाया और वह विधायक बनीं. अब अनंत सिंह फिर से जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
मोकामा में भूमिहारों का वर्चस्व
अनंत सिंह भूमिहार समुदाय से आते हैं और उनकी अपने सजातीय वोटों पर जबरदस्त पकड़ है. बिहार की दबंग जातियों में भूमिहार का नाम आता है। मोकामा क्षेत्र को भूमिहारों की राजधानी कहा जाता है, क्योंकि 30 फीसदी से ज्यादा आबादी यहां पर भूमिहारों की है। यही वजह है कि 1952 से लेकर अभी तक जितने विधायक बने हैं, वो सभी भूमिहार समाज से रहे हैं.
मोकामा से सबसे पहले जगदीश नारायण सिंह विधायक चुने गए थे, उसके बाद सरयू नारायण प्रसाद सिंह, कामेश्वर प्रसाद सिंह, कृष्णा शाही से लेकर दिलीप सिंह, सूरजभान सिंह और अनंत सिंह विधायक बने. ये सभी नेता भूमिहार समाज से रहे हैं। भूमिहारों को यहां पर भूमिहार नेता ही चुनौती देते रहे हैं, लेकिन इसमें अगर कोई दूसरा खड़ा होने की कोशिश किया तो सफल नहीं हो सका.
यादवों से मिलती रही चुनौती
मोकामा का इलाका हमेशा से जातीय और सामाजिक समीकरणों के आधार पर प्रभावित होता रहा है. यहां पर भूमिहार 30 फीसदी से ज्यादा हैं तो यादव 20 फीसदी हैं. इसके अलावा राजपूत 10 फीसदी, कुर्मी, कोइरी जैसी अतिपिछड़ी जातियां 20 से 25 फीसदी हैं तो दलित 16 से 17 फीसदी हैं तो मुस्लिम 5 फीसदी हैं। यादव, भूमिहार, कुशवाहा, मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक भूमिका निभाती है.
भूमिहारों के सियासी दबदबे को यादव समुदाय से ही चुनौती मिलती रही है. नब्बे के दशक में लालू यादव का सियासी वर्चस्व आया तो यादवों का बिहार में राजनीतिक दबदबा बढ़ा. इस दौरान दुलारचंद यादव का सियासी उदय होता है. वह पहलवानी से दबंगई शुरू करते हैं.
मोकामा के टाल क्षेत्र में दुलारचंद ने वर्चस्व कायम किया और यादव, ओबीसी और दलित वोटों के सहारे भूमिहारों से सीधे चुनौती लेते रहे. अनंत सिंह और उनके भाई दिलीप सिंह के खिलाफ दुलारचंद कई बार चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके.
दुलारचंद यादव शुरू से बाहुबली अनंत सिंह के मुखर आलोचक रहे हैं. बेखौफ अंदाज और यादवों पर पकड़ की वजह से दुलारचंद यादव को 'टाल का बादशाह' कहा जाता था. 2019 में दुलारचंद को पटना ग्रामीण इलाके में 'कुख्यात गैंगस्टर' बताकर गिरफ्तार किया गया था. दुलारचंद के चुनाव लड़ने के चलते 2000 में अनंत सिंह के भाई दिलीप सिंह को चुनावी हार का सामना करना पड़ा था.
मोकामा में बाहुबलियों की सियासत
मोकामा की सियासत पूरी तरह बाहुबलियों के इर्द-गिर्द सिमटी रही है। सूरजभान सिंह का नाम नब्बे के दशक में अंडरवर्ल्ड और बिहार की सियासत दोनों में गूंजता था. मोकामा विधानसभा सीट से 2000 में सूरजभान सिंह भी विधायक रह चुके हैं. उन्होंने अनंत सिंह के बड़े भाई और तत्कालीन मंत्री दिलीप सिंह को हराया था. इस बार सूरजभान ने अपनी पत्नी वीणा देवी को आरजेडी के टिकट पर मोकामा सीट से उतार दिया है.
मोकामा सीट पर सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी आरजेडी की उम्मीदवार हैं, जिनके सामने जेडीयू के टिकट पर बाहुबली अनंत सिंह पहले से मैदान में ताल ठोक रहे हैं. पटना जिले में मोकामा विधानसभा सीट अब सबसे हॉट सीट बन गई है, क्योंकि यहां दो बाहुबलियों की वर्चस्व की लड़ाई बन गई है. वीणा देवी मुंगेर से लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) की सांसद रह चुकी हैं और मोकामा सीट पर अनंत सिंह के खिलाफ मैदान में हैं. अनंत सिंह और सूरजभान सिंह दोनों भूमिहार समुदाय से आते हैं और इस वर्ग में उनकी अच्छी पकड़ भी है.
बाहुबली बनाम बाहुबली फाइट
2020 में अनंत सिंह आरजेडी से चुनाव मैदान में उतरे तो जेडीयू से राजीव लोचन नारायण सिंह उतरे थे, जिनको मोकामा के सोनू-मोनू गैंग का समर्थन था। इसके बाद 2022 के उपचुनाव में नलिनी रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की पत्नी सोनम देवी को बीजेपी ने उतारा था। ललन सिंह को सूरजभान का करीबी माना जाता है.
ललन सिंह पहले भी अनंत सिंह के खिलाफ चुनावी मैदान में मुकाबला कर चुके हैं। ललन सिंह ने अनंत सिंह के खिलाफ तीन बार चुनाव लड़े हैं. 2015, 2010 और 2005 में अनंत सिंह को ललन सिंह ने तगड़ी टक्कर दी थी और साल 2010 और 2005 में ललन सिंह रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से चुनावी मैदान में उतरे थे.
सूरजभान सिंह के बेहद करीबी ललन सिंह बताए जाते हैं। इसलिए राजनीति में आने के बाद सूरजभान सिंह ने नलिनी रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को दो बार लोजपा से टिकट दिलवाया था। इस बार सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को मोकामा में उनका खुला समर्थन है। इस तरह मोकामा का विधानसभा चुनाव बाहुबली के साये में ही होता रहा और बाहुबली ही जीतकर विधानसभा पहुंचते रहे.
कुबूल अहमद