आज से ठीक 126 साल पहले 7 जून को देश के एक बैरिस्टर को साउथ अफ्रीका में ट्रेन से धक्का देकर उतारा गया था. 7 जून 1893 के दिन स्टेशन से उठकर गांधी ने पूरी रात वेटिंग रूम में बिताई और वहीं से सत्याग्रह की नींव रख दी.
उस दौरान गांधीजी गुजरात के राजकोट में वकालत करते थे. वो इतने बड़े वकील थे कि उन्हें दक्षिण अफ्रीका से सेठ अब्दुल्ला ने एक मुकदमा लड़ने के लिए बुलाया था. वो पानी के जहाज से दक्षिण अफ्रीका के डरबन पहुंचे. यहां 7 जून को उन्होंने प्रीटोरिया के लिए ट्रेन पकड़ी.
उस दिन गांधी जी के पास उसी ट्रेन का फर्स्ट क्लास का टिकट था. वो जाकर
अपनी बर्थ में बैठ गए. यहां से ट्रेन पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पहुंचने को थी
तभी उनसे थर्ड क्लास डिब्बे में जाने के लिए कहा गया. गांधीजी ने टिकट का
हवाला दिया और जाने से इनकार कर दिया. वहां से ट्रेन जैसे पीटरमारिट्जबर्ग
स्टेशन पर रुकी. उन्हें धक्का देकर नीचे उतार दिया गया. कड़कड़ाती ठंड में वो स्टेशन के वेटिंग रूम में पहुंचे.
उन्होंने वो रात जागकर बिताई, पूरी रात वो सोचते रहे. एक बार ख्याल आया कि वे बिना कोई प्रतिक्रिया दिए भारत वापस लौट जाएं. लेकिन दूसरे ही पहल सोचा कि क्यों न उन्हें अब अपने देश में भारतीयों के खिलाफ हो रहे जुल्म के खिलाफ लड़ना चाहिए.
यह उन पर पहला नस्लभेदी (रेसिस्ट) प्रहार था, जिसे वो बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे. बस उसी रात दक्षिण अफ्रीका के पीटरमारिट्जबर्ग में गांधी के सत्याग्रह की नींव पड़ चुकी थी. उन्हें यह अंदाजा ही नहीं था कि सविनय अवज्ञा आंदोलन की ये शुरुआत अंग्रेजों की सत्ता की नींव हिला देगी.
दक्षिण अफ्रीका में गांधी को एक बार घोड़ागाड़ी में अंग्रेज यात्री के लिए सीट नहीं छोड़ने पर पायदान पर बैठकर यात्रा करनी पड़ी थी. यही नहीं चालक ने उन्हें मारा भी था. फिर जब अफ्रीका में कई होटलों में उनका प्रवेश वर्जित किया गया. ये सब उन्हें याद आ रहा था. यहीं से उन्होंने आंदोलन के बीज बो दिए थे.
उस दिन के बाद से 1914 तक गांधी दक्षिण अफ्रीका में आंदोलन करते रहे. फिर 1915 में वह वतन लौटकर आए और आजादी का आंदोलन छेड़ दिया. आज भी देश की सभी सरकारें गांधी जी के योगदान को याद करती हैं.
हाल ही में अपनी दक्षिण अफ्रीका की आधिकारिक यात्रा पर गई पूूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज उसी स्टेशन पर गई थीं जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ट्रेन से फेंके जाने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई थी. सुषमा स्वराज ने वहां कहा था कि ये दुनिया के इतिहास की वो घटना है जिसने गांधीवादी विचारधारा के बीज बोए थे.
साल 2016 में दक्षिण अफ्रीका दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यात्रा के अंतिम दिन के दौरान एक ऐतिहासिक ट्रेन यात्रा के साक्षी बने. उन्होंने डर्बन से महात्मा गांधी के सत्य अंहिसा के संदेश को एक बार फिर से दोहराया.