आज जब पूरा देश World Yoga Day 2019 मना रहा था, तभी सोशल मीडिया में सेना के डॉग यूनिट की योगासन में फोटो वायरल हो गई. फिर यही फोटो शेयर करके कांग्रेस पार्टी के प्रमुख राहुल गांधी ट्रोल भी हो गए. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर डॉग यूनिट के ये डॉग क्यों हैं खास, क्यों बटोर रहे इतनी सुर्खियां. विस्तार से जानें.
साल 1970 में बीएसफ एकेडमी में National Ttraining Center for Dogs की स्थापना की गई थी. ये सेंटर केंद्रीय पुलिस संगठनों, राज्य पुलिस बलों और भारत और अन्य विदेशी राष्ट्रों की अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कुत्तों और संचालकों को प्रशिक्षण देता है.
ये सेंटर BSF बीएसएफ के अलावा देश की तमाम सुरक्षा एवं कानून-प्रवर्तन एजेंसियों के लिए डॉग्स् को ट्रेंड करता है. यहां कुत्तों के हैंडलर्स को भी प्रशिक्षित किया जाता है. यहां डॉग्स को ब्रीडिंग के लिए भी प्रशिक्षित किया जाता है.
छह से नौ महीने से शुरू होती है ट्रेनिंग
डॉग का प्रशिक्षण छह से नौ महीने की उम्र में शुरू होता है. यही उनकी एक तरह से आर्मी में भर्ती होती है. यहां कुत्तों और उनके हैंडलर्स को संबंधित विभागों की मांग के अनुसार अलग-अलग विषयों में प्रशिक्षण दिया जाता है. यहां डॉग और हैंडलर के प्रशिक्षण के दौरान किसी भी प्रकार की कोई छुट्टी की अनुमति नहीं है. कोर्स के दौरान केवल 5-7 दिनों का मिडटर्म ब्रेक (कोर्स की अवधि के आधार पर) मिलता है. बाद में हैंडलर को लिखित और व्यावहारिक परीक्षा में अर्हता प्राप्त करनी होती है. वहीं डॉग को भी फिजिकल टेस्ट से गुजरना होता है. यदि इस दौरान किसी भी स्तर पर डॉग या हैंडलर का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है, तो प्रशिक्षण अवधि (न्यूनतम 12 सप्ताह) बढ़ाई जा सकती है.
सिर्फ ये पांच ब्रीड हैं खास
बीएसएफ इन कुत्तों को खास ट्रेनिंग देती है. इनकी बम सूंघने और खतरा पकड़
लेने की क्षमता बहुत तेज होती है. यहां सिर्फ Labrador Retriever, Doberman
Pinscher, German Shepherd, Cocker Spaniel, Belgin Malinois ब्रीड के
कुत्तों को ट्रेन किया जाता है. जैसे ही ये छह से नौ माह के होते हैं इनकी
ट्रेनिंग का दौर शुरू हो जाता है.
रक्षा सेनाओं में हैं घोड़े भी
सेना का घुड़सवार दस्ता माउंटेन
रेजिमेंट काफी चर्चित है. ऊंचाई के क्षेत्रों में माल वगैरह ढोने में सेना
में घोड़े, खच्चरों का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा अन्य कामों में भी इनका
इस्तेमाल होता है. लेकिन सबसे ज्यादा डॉग यूनिट गश्त और विस्फोटक की पहचान
में आगे रहती हैं.
(योग मुद्रा मेफोटो आईटीबीपी अरुणांचल प्रदेश की)
24 आर्मी डॉग यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल रमन जोशी ने इसी साल एक मई को एएनआई को दिए इंटरव्यू में इन डॉग के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि ये ये भारतीय सेना के खास योद्धा हैं जो साइलेंट रहकर सेवा में लगे हैं. जम्मू-कश्मीर में बहुत सक्रिय लाइन ऑफ कंट्रोल में वे कई आर्मी यूनिटों की आंखें और कान हैं, जो LOC में सेवा कर रहे हैं और यहां तक कि भीतरी इलाकों में भी इन योद्धाओं ने कई ज़िंदगियां बचाई हैं.
ऐसे होती है भर्ती, मिलती है पहचान
कर्नल रमन के मुताबिक इन डाग्स को सेंटर से उनकी ब्रीड और इंटेलीजेंस की परख करने के बाद चुना जाता है. एक obedience test के बाद उन्हें अनुशान और फिर तकनीकी ट्रेनिंग दी जाती है. फिर इनकी ट्रेनिंग के बाद इनकी पहचान इनफैंट्री पैट्रोल डॉग्स, माइन डिटेक्शन डॉग्स, सर्च एंड रेस्क्यू डॉग्स और गार्ड डॉग्स के तौर होती है.
ये होती है रूटीन
सेना में उन्हें अनुशासन के साथ प्रॉपर रूटीन फॉलो करनी होती है. इनकी डाइट से लेकर रेगुलर मेडिकल चेकअप, वैक्सीनेशन और एक्सरसाइज का ध्यान रखा जाता है. एलओसी में इन्हें खास सुरक्षा मिलती है. कश्मीर सहित तमाम बॉर्डर एरिया में इन डॉग्स ने कई बार विस्फोटकों का पता लगाकर लोगों की जानें बचाई हैं.