2-3 दिन पहले मिली चेतावनी फिर भी इजरायल का हमला क्यों नहीं रोक पाया ईरान?

इज़राइल ने नतांज पर हमला किया. 2-3 दिन पहले चेतावनी दी गई थी. ईरान की एस-300 और बवर-373 वायु रक्षा प्रणाली, स्टील्थ F-35 और साइबर हमलों के आगे विफल रहीं. तैयारी की कमी और तकनीकी खामियों ने उसे कमजोर किया. बदला लेने की धमकी दी गई है.

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इजरायल ने ईरान के कई शहरों को निशाना बनाया लेकिन ईरान के एयर डिफेंस सिस्टम काम नहीं कर पाए. (फोटोः AP/AFP/Reuters) इजरायल ने ईरान के कई शहरों को निशाना बनाया लेकिन ईरान के एयर डिफेंस सिस्टम काम नहीं कर पाए. (फोटोः AP/AFP/Reuters)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 13 जून 2025,
  • अपडेटेड 11:34 AM IST

मध्य पूर्व में ईरान और इज़राइल के बीच तनाव चरम पर है. इज़राइल ने ईरान के नतांज परमाणु संयंत्र और अन्य सैन्य ठिकानों पर हमला किया, जिसके बारे में ईरान को 2-3 दिन पहले चेतावनी मिली थी. फिर भी, ईरान अपने हवाई रक्षा प्रणाली के बावजूद इस हमले को रोकने में नाकाम रहा. आइए ईरान की वायु रक्षा प्रणाली, इज़राइल की हमले की रणनीति इस असफलता के कारणों को समझते हैं. 

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ईरान की वायु रक्षा प्रणाली: क्या है और कैसे काम करती है?

ईरान ने अपनी हवाई रक्षा को मजबूत करने के लिए कई उन्नत प्रणालियां विकसित की हैं, जो दुश्मन के हवाई हमलों से बचाव के लिए बनाई गई हैं. इनमें शामिल हैं...

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एस-300 (S-300): यह रूस से खरीदा गया एक लंबी दूरी की वायु रक्षा प्रणाली है, जो 150 किलोमीटर तक के लक्ष्यों को निशाना बना सकती है. यह हाई-एल्टीट्यूड (ऊंचाई पर उड़ने वाले) विमानों, मिसाइलों और ड्रोन को रोकने में सक्षम है. ईरान के पास लगभग 4-6 एस-300 बैटरी हैं, जो प्रमुख शहरों और सैन्य ठिकानों की रक्षा करती हैं. 

बवर (Bavar-373): यह ईरान की स्वदेशी वायु रक्षा प्रणाली है, जो एस-300 का विकल्प मानी जाती है. यह 200-250 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य को मार गिराने में सक्षम है और ऊंचाई पर उड़ने वाली मिसाइलों को भी शाना बना सकती है. इसे 2019 में तैनात किया गया था, लेकिन इसकी प्रभावशीलता पर सवाल उठते रहे हैं.

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खोरदाद-3 और 15: ये मध्यम दूरी की प्रणालियां हैं, जो 75-150 किलोमीटर की दूरी तक काम करती हैं. ये ड्रोन और कम ऊंचाई पर उड़ने वाले विमानों को रोकने के लिए डिज़ाइन की गई हैं.

शाहीन और तिरान: ये छोटी दूरी की प्रणालियां हैं, जो 20-40 किलोमीटर की दूरी तक काम करती हैं. स्थानीय रक्षा के लिए उपयोगी हैं.

ईरान ने इन प्रणालियों को नतांज जैसे संवेदनशील ठिकानों के चारों ओर तैनात किया था, ताकि किसी भी हवाई हमले को रोका जा सके. साथ ही ईरान ने अपने रडार सिस्टम और इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग तकनीक को भी मजबूत किया है, जो दुश्मन के संचार को बाधित करने में मदद करती है.

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इज़राइल की हमले की रणनीति: सटीक और चुपके से

इज़राइल ने ईरान पर हमला करने के लिए एक बहुत ही सोची-समझी रणनीति अपनाई, जो ईरान की वायु रक्षा को चकमा देने में सफल रही. इसकी मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं...

स्टील्थ तकनीक (Stealth Technology): इज़राइल ने अपने F-35 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया, जो स्टील्थ तकनीक से लैस हैं. ये विमान रडार पर कम दिखाई देते हैं, जिससे ईरान के रडार इन्हें आसानी से पकड़ नहीं पाए. F-35 विमानों की गति और ऊंचाई बदलने की क्षमता ने ईरान की वायु रक्षा को भ्रमित किया.

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ड्रोन और मिसाइल का संयोजन: इज़राइल ने ड्रोन और क्रूज मिसाइलों का इस्तेमाल किया, जो कम ऊंचाई पर उड़ते हैं और रडार से बचते हैं. इन मिसाइलों को कई दिशाओं से एक साथ लॉन्च किया गया, जिससे ईरान की वायु रक्षा प्रणाली पर दबाव बढ़ गया. 

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साइबर हमले: इज़राइल ने ईरान के रडार और संचार सिस्टम पर साइबर हमले किए, जिससे उनकी वायु रक्षा अस्थायी रूप से निष्क्रिय हो गई. इससे ईरान को यह पता ही नहीं चला कि हमला कब और कहां से हो रहा है.

सटीक निशाना: इज़राइल ने चेतावनी देने के बावजूद हमले को अचानक और सटीक तरीके से अंजाम दिया. नतांज पर हमला सुबह के समय किया गया, जब रक्षा प्रणाली ऑपरेटर कम सतर्क होते हैं.  बंकर-बस्टर बमों का इस्तेमाल किया गया, जो भूमिगत सुविधाओं को नष्ट करने में सक्षम हैं. 

अंतरराष्ट्रीय समर्थन: खुफिया जानकारी के लिए अमेरिका और कुछ अन्य देशों के साथ मिलकर काम किया गया, जिससे इज़राइल को ईरान की कमजोरियों का सटीक आकलन हो सका.

चेतावनी के बावजूद असफलता के कारण

ईरान को 2-3 दिन पहले चेतावनी मिली थी कि इज़राइल हमला कर सकता है, फिर भी वह इसे रोकने में नाकाम रहा। इसके कई कारण हो सकते हैं...

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तकनीकी सीमाएं: ईरान की वायु रक्षा प्रणालियां, जैसे बवर-373 और खोरदाद-15, आधुनिक स्टील्थ तकनीक के सामने कमजोर साबित हुईं. इन प्रणालियों का परीक्षण युद्ध के हालात में नहीं हो पाया था. रडार सिस्टम पुराने थे और F-35 जैसे उन्नत विमानों को पकड़ने में असफल रहे.

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तैयारी में देरी: चेतावनी मिलने के बावजूद ईरान ने अपनी रक्षा को पूरी तरह सक्रिय करने में समय बर्बाद किया. सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि रक्षा प्रणाली को अलर्ट मोड में लाने में कम से कम 24-48 घंटे लगते हैं. नतांज के आसपास अतिरिक्त बलों की तैनाती भी अधूरी रही. 

साइबर हमले का प्रभाव: इज़राइल के साइबर हमले ने ईरान के संचार और रडार को निष्क्रिय कर दिया, जिससे रक्षा प्रणाली बेकार हो गई. ईरान के पास साइबर हमलों से निपटने की पर्याप्त तकनीक नहीं थी. 

अनुभव की कमी: ईरान ने पिछले कुछ दशकों में बड़े पैमाने पर हवाई हमले का सामना नहीं किया था. इससे उसकी सेना को वास्तविक युद्ध की स्थिति में जवाब देने का अनुभव नहीं था. इज़राइल जो अक्सर सीरिया और गाजा में अभियान चलाता है, इस तरह के ऑपरेशन में अधिक अनुभवी है. 

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आंतरिक कमजोरियां: ईरान में आर्थिक प्रतिबंधों और सैन्य संसाधनों की कमी ने इसकी तैयारी को प्रभावित किया. नई प्रणालियों को अपग्रेड करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था. 

हमले का असर और भविष्य

इस हमले में नतांज संयंत्र को नुकसान पहुंचा है. इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के कई वरिष्ठ अधिकारी मारे गए हैं. ईरान ने इसे "आतंकवादी हमला" करार दिया है. बदला लेने की धमकी दी है. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की वायु रक्षा में सुधार के बिना यह तनाव और बढ़ सकता है.

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इज़राइल की रणनीति ने दिखाया कि आधुनिक युद्ध में तकनीक और गुप्तचर जानकारी कितनी महत्वपूर्ण है. दूसरी ओर ईरान को अपनी रक्षा प्रणाली को अपग्रेड करना होगा, खासकर स्टील्थ विमानों और साइबर हमलों के खिलाफ. ईरान इज़राइल के हमले को रोकने में असफल रहा, क्योंकि उसकी वायु रक्षा प्रणाली आधुनिक तकनीक और सटीक रणनीति के सामने कमजोर साबित हुई.

चेतावनी के बावजूद तैयारी और संसाधनों की कमी ने इसे नुकसान पहुंचाया. आने वाले दिनों में ईरान की प्रतिक्रिया और इज़राइल की अगली चाल इस क्षेत्र में शांति के लिए महत्वपूर्ण होगी.

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