भारतीय वायुसेना (IAF) के इतिहास में एक नया दौर शुरू हो रहा है. 1963 में शामिल हुए रूसी मिग-21 लड़ाकू विमान, जो 62 साल तक देश की सेवा करते रहे, अब 26 सितंबर 2025 को रिटायर हो जाएंगे. इसकी जगह लेगा भारत का स्वदेशी तेजस फाइटर जेट, जो आधुनिक तकनीक का प्रतीक है.
मिग-21 को 'फ्लाइंग कॉफिन' (उड़ते ताबूत) कहा जाता था, क्योंकि इसकी 400 से ज्यादा दुर्घटनाओं में 200 से ज्यादा पायलट शहीद हुए. लेकिन तेजस सुरक्षित, बहुमुखी और आत्मनिर्भर भारत का सपना है.
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मिग-21 को सोवियत संघ (अब रूस) ने 1950 के दशक में बनाया था. भारत ने 1963 में पहला स्क्वाड्रन शामिल किया. 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने पाकिस्तानी सेबर जेट्स को मार गिराया. कारगिल युद्ध (1999) में भी सक्रिय रहा. कुल 874 मिग-21 खरीदे गए, जिनमें से आखिरी अपग्रेडेड 'बाइसन' वर्जन 2013 में आया.
लेकिन उम्रदराज होने से समस्याएं बढ़ीं. पुराना इंजन, कम रखरखाव और खराब मौसम में कमजोर रडार ने दुर्घटनाएं बढ़ाईं. 2025 तक सभी स्क्वाड्रन बंद हो जाएंगे. मिग-21 ने इतिहास रचा, लेकिन अब तेजस जैसी नई पीढ़ी की जरूरत है.
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तेजस का विचार 1980 के दशक में आया, जब भारत ने स्वदेशी लड़ाकू विमान बनाने का फैसला लिया. एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी (एडीए) ने डिजाइन किया, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने बनाया. पहली उड़ान 2001 में हुई, लेकिन देरी से 2015 में ऑपरेशनल क्लियरेंस मिला.
तेजस एमके-1ए इसका अपग्रेडेड वर्जन है. इसमें एईएसए रडार, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम और ज्यादा हथियार हैं. जुलाई 2025 में पहला एमके-1ए उड़ा. वायुसेना ने 83 विमानों का ऑर्डर दिया, जिनमें से दो स्क्वाड्रन पहले से सक्रिय हैं. स्वदेशी हिस्सा 70% से ज्यादा है, जो 'आत्मनिर्भर भारत' को मजबूत करता है. विकास में 20 साल लगे, लेकिन अब यह राफेल जैसे जेट्स के साथ काम करेगा.
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विशेषज्ञ कहते हैं, तेजस 4.5 जेन है, जबकि मिग 3.5 जेन. तेजस पाकिस्तान के जेएफ-17 से भी बेहतर है.
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2025 तक 83 तेजस एमके-1 मिलेंगे, जो 4 स्क्वाड्रन बनाएंगे. एमके-2 और नौसेना वर्जन पर काम चल रहा. वायुसेना 42 स्क्वाड्रन का लक्ष्य रखेगी, जिसमें तेजस अहम होगा. एक्सपोर्ट के लिए भी प्रयास है- जैसे मलेशिया को बेचना. मिग-21 ने भारत को युद्ध सिखाया, लेकिन तेजस आत्मनिर्भरता सिखाएगा. यह बदलाव न सिर्फ तकनीकी, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का है.
ऋचीक मिश्रा